The Lallantop
Advertisement

नसबंदी ऑपरेशन के बाद भी गर्भवती हो गई महिला, कोर्ट ने सरकार पर जुर्माना लगा दिया

सरकार बोली- नसबंदी से पहले ही प्रेगनेंट थी महिला. कोर्ट बोला- तब क्यों जांच नहीं किया?

Advertisement
orissa high court
महिला की वकील ने कहा कि ऑपरेशन से पहले जिस स्टैंडर्ड प्रक्रिया का पालन किया जाना था, उसी का पालन नहीं हुआ है (फ़ोटो - File)
pic
सोम शेखर
27 जून 2022 (Updated: 28 जून 2022, 12:06 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

उड़ीसा की एक महिला ने राज्य द्वारा चलाए जा रहे नसबंदी कार्यक्रम में हिस्सा लिया. यानी नसबंदी कराई, लेकिन इसके बाद भी वो प्रेगनेंट हो गईं. फिर मामला पहुंचा कोर्ट. उड़ीसा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को महिला को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं और सही प्रोसेस का पालन न करने के लिए राज्य की आलोचना भी की है.

नसबंदी के बाद प्रेगनेंट कैसे हो गई महिला?

उड़ीसा में 2 जनवरी, 2014 को राज्य की ओर से नसबंदी कार्यक्रम आयोजित किया गया. प्रोसेस के बाद वाले महीने में एक महिला को पीरियड नहीं आया. पीरियड नहीं आना गर्भवती होने का अहम संकेत है.  कुछ दिनों बाद महिला को पता चला कि वो प्रेगनेंट है. इसके बाद महिला ने राज्य सरकार से मुआवजे की अपील की. महिला का कहना था कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. इस वजह से उन्होंने नसबंदी कराने का फैसला किया था. लेकिन नसबंदी के बाद भी उनका गर्भ ठहर गया.

अक्टूबर, 2006 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिला और पुरुष नसबंदी सेवाओं के लिए मानक तय किए थे. महिला की वकील अर्जुन चंद्र बेहरा ने कोर्ट में इन मानकों का हवाला दिया. कहा कि इन गाइडलाइन्स में ये साफ़ तौर पर लिखा है कि ऑपरेशन से पहले महिला की जांच की जानी है. उनके पीरियड्स कब आए थे, इसकी जानकारी ली जानी है. महिला के वकील ने आरोप लगाए कि सरकारी प्रोसेस में इसी में चूक हुई है.

राज्य की ओर से ये दलील आई कि महिला ऑपरेशन के पहले से ही महिला प्रेगनेंट थी. राज्य के वकील शैलजा नंदन दास ने कहा कि महिला के टेस्ट्स से पता चला है कि उसे 22 दिसंबर, 2013 को आख़िरी पीरियड्स आए थे और नसबंदी ऑपरेशन किया गया 2 जनवरी, 2014 को. ऑपरेशन के दिन उनकी प्रेगनेंसी की स्थिति के बारे में कोई रिकॉर्ड ही नहीं था.

कोर्ट ने क्या कहा?

उड़ीसा हाई कोर्ट ने कहा कि सबूतों और दलीलों से ऐसा लगता है कि राज्य द्वारा चूक की गई है. महिला का ऑपरेशन करने से पहले उसकी प्रेगनेंसी की जानकारी सही तरीके से ली नहीं गई. जस्टिस अरिंदम सिन्हा की सिंगल बेंच ने ये भी कहा कि महिला के दावों पर ज़िला के चीफ़ मेडिकल अफ़सर ने जो हलफ़नामा दायर किया, वो बहुत सतही है और इसीलिए महिला के दावों पर विश्वास न करने का कोई उचित कारण नहीं है. जस्टिस सिन्हा ने कहा,

"राज्य ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है. याचिकाकर्ता ने जो अंडरटेकिंग दी है, उसके हिसाब से ये बताने में चूक हुई है कि उसे ऑपरेशन के बाद पीरियड्स नहीं आए."

कोर्ट ने राज्य सरकार को मुआवजे के तौर पर 30,000 रुपये देने के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा 20,000 रुपये का जुर्माना भी राज्य सरकार पर लगाया गया है.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement