'हिंदी में अभी भी गलतियां करती हूं', बुकर वाली गीतांजलि के उपन्यास की अनुवादक डेजी रॉकवेल को जानिए
अमेरिका में रहने वालीं चित्रकार, लेखक और अनुवादक डेजी रॉकवेल ने रेत समाधि को 'हिंदी भाषा के लिए प्रेम पत्र' के रूप में वर्णित किया. कहा, 'हिंदी के साथ मेरा रिश्ता एक लोकल वक्ता से बिल्कुल अलग है. मैं कोई भी भाषा तेज़ी से सीखती हूं, लेकिन मैंने 19 साल की उम्र तक हिंदी सीखना शुरू नहीं किया था.'
25 मई को किताबों की दुनिया का एक बहुत बड़ा अवॉर्ड यानी International Booker Prize मिला हिंदी की लेखिका Geetanjali Shree को. उनके उपन्यास 'रेत समाधि' के लिए. अब बुकर वाले हिंदी में तो किताब पढ़ते नहीं हैं. वो पढ़ते हैं अंग्रेज़ी. इस किताब का अंग्रेज़ी तर्जुमा किया अमेरिकी साहित्यकार डेज़ी रॉकवेल ने. अंग्रेज़ी में किताब का नाम पड़ा 'टूम ऑफ़ सैंड'.
जब से अवॉर्ड मिला है, तब से इसकी खूब चर्चा हो रही है. भारतीयों और हिंदी प्रेमियों में तो एक अलग ही ख़ुशी है. लेकिन सब इतना शांत-सुखद, तो नहीं हो सकता न. सोशल मीडिया के कर्मवीरों ने एक 'ज़बरदस्ती' के विवाद को जन्म दे दिया है. बात चल रही है कि अवॉर्ड 'रेत समाधि' को नहीं, 'टूम ऑफ़ सैंड' को मिला है. आप समझ सकते हैं कि ज़बरदस्ती क्यों लिखा गया है.
अब हम उस विवाद में नहीं पड़ेंगे, लेकिन ये अनुवादक कौन हैं और जीतने के बाद उन्होंने क्या कहा है, ये आपको बता देते हैं.
कौन हैं Daisy Rockwell?अमेरिका में एक जगह है- उत्तरी न्यू इंग्लैंड. हां, अमेरिकी में इंग्लैंड. इसी जगह की रहने वाली हैं डेज़ी रॉकवेल. एक कलाकार, लेखक और अनुवादक. पश्चिमी मैसेचुसेट्स में कलाकारों के एक परिवार में पली-बढ़ीं. मां-पिता दोनों कलाकार थे. दादा, नॉर्मन रॉकवेल, महान चित्रकार और लेखक थे, जिन्होंने अमेरिकी साहित्य और इतिहास पर बारीकी से काम किया. उन्हें शुरुआती जीवन में अपने क्रिएटिव पर्सूट्स को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. वो कहती हैं, "मेरे पेरेंट्स मुझे पालने का कोई और तरीका नहीं जानते थे. मैंने एकेडमिक बनने की कोशिश की, लेकिन काम नहीं आया!"
डेजी को ग्रेजुएशन के दौरान अनुवाद में रुचि होने लगी. वो अनुवाद को रचनात्मक लेखन कहती हैं. डेज़ी रॉकवेल ने हिंदी और उर्दू की कई कृतियों का अनुवाद किया है. जैसे हिंदी लेखक उपेंद्रनाथ 'अश्क' की शॉर्ट स्टोरी कलेक्शन को 'हैट्स एंड डॉक्टर्स' की शक्ल में ढालना या उनके ही प्रसिद्ध उपन्यास 'गिरती दीवारें' को 'फॉलिंग वॉल्स' में. डेज़ी ने 2004 में उपेंद्रनाथ अश्क की बायोग्राफ़ी भी लिखी.
हिंदी से अपने रिश्ते के बारे में एक इंटरव्यू में डेज़ी ने कहा,
“हिंदी के साथ मेरा रिश्ता एक लोकल वक्ता से बिल्कुल अलग है. मैं कोई भी भाषा तेज़ी से सीखती हूं, लेकिन मैंने 19 साल की उम्र तक कभी हिंदी नहीं सीखी थी. जैसा कि स्टडीज़ से पता चला है, हमारा दिमाग़ नई भाषाओं को सीखने में अच्छा समय लेता है. प्रवाह के साथ हिंदी पढ़ने या बोलने में मुझे काफ़ी समय लगा. मैं अभी भी हास्यास्पद ग़लतियां करती हूं और मुहावरेदार वाक्यांशों और शब्दों के सामने फुस्स हो जाती हूं.
मेरे दिमाग़ में हिंदी और अंग्रेजी एक-दूसरे में नहीं बहतीं. और इसीलिए जब मैं हिंदी से अंग्रेज़ी में अनुवाद कर रही होती हूं, तो मैं हर शब्द को एक नई दुनिया में ले जा रही होती हूं.”
अनुवाद और शिकागो यूनिवर्सिटी से साउथ-एशियन साहित्य में पीएचडी करने के साथ डेज़ी पेंटिंग करती हैं. अपनी रचनाओं को डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म फ़्लिकर पर नियमित रूप से पोस्ट करती रहती हैं. 'लापता' के नाम से.
'पुरुषों को अनूदित कर मैं थक गई थी'2018 में scroll.in को दिए हुए एक इंटरव्यू में बात करते हुए, रॉकवेल ने कहा कि कुछ समय के लिए केवल पुरुष लेखकों की रचनाओं का अनुवाद करने के बाद, वो अब ख़ास तौर पर महिला लेखकों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. उन्होंने कहा,
"हालांकि, मैं अश्क को अपना पहला प्यार मानती हूं, लेकिन मैंने कई कारणों से ब्रेक ले लिया है. एक तो ये है कि मैंने दो साल पहले फैसला किया था कि मैं महिला लेखकों के अनुवाद पर फोकस करना चाहती हूँ. एक दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं केवल पुरुषों (अश्क, भीष्म साहनी और श्रीलाल शुक्ल) का अनुवाद कर रही थी, और मैं पुरुषों की नज़र (मेल गेज़) से तंग आ गई थी. मैं पुरुषों की इच्छा और महिलाओं के स्तनों के विवरण का अनुवाद करते-करते थक गई थी. यह कहना एक 'ट्विटरिया' लग सकता है, लेकिन महिलाओं ने कई दिलचस्प कहानियां कही हैं. इसलिए, मेरे सभी हालिया अनुवाद महिलाओं के काम के हैं और आप पढ़िए, कहानियां कितनी अधिक फैली हुई हैं."
रॉकवेल का कहना है कि उनके पास अभी अनुवाद/प्रकाशन पाइपलाइन में पांच पुस्तकें हैं. एक अश्क़ की है. उनकी फॉलिंग वॉल्स (गिरती दिवारें) सीरीज़ का दूसरा भाग. इसके अलावा 'शहर में घूमता आइना' पिछली गर्मियों से ड्यू है. लेकिन किसी कॉपीराइट प्रॉब्लम की वजह से वो रुकी हुई है. फिर उनके पास पेंगुइन से निकलने वाली उर्दू लेखिका खदीजा मस्तूर के दो उपन्यास हैं - 'द वूमेन कोर्टयार्ड' (आंगन), जो इस साल सितंबर में प्रकाशित किया जाएगा. और 'ज़मीन', जिस पर वह अभी काम कर रही हैं.
वीडियो- बुकर प्राइज जीतने वालीं गीतांजलि श्री ने 'टूम ऑफ सैंड' के अनुवाद की ये कहानी सुना दी!