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मां चाहे तो बच्चे को अपने दूसरे पति का सरनेम दे सकती हैः सुप्रीम कोर्ट

'दस्तावेजों में दूसरे पति का नाम 'सौतेले पिता' के रूप में शामिल करना नासमझी है.'

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कोर्ट ने कहा, 'सरनेम का एक होना परिवार बनाने और बनाए रखने में ज़रूरी है'
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सोम शेखर
29 जुलाई 2022 (Updated: 29 जुलाई 2022, 19:24 IST)
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दूसरी शादी करने वाली महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. 28 जुलाई को कोर्ट ने कहा कि अगर एक महिला अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी करती है, तो वो अपने बच्चे को दूसरे पति का सरनेम दे सकती है.

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने इसी फ़ैसले में ये भी कहा कि दस्तावेजों में दूसरे पति का नाम 'सौतेले पिता' के रूप में शामिल करना क्रूरता है. नासमझी है. ये बच्चे की मेंटल हेल्थ और सेल्फ़-एस्टीम पर असर डालती है.

पूरा केस समझ लीजिए

मामला आंध्र प्रदेश का है. एक महिला ने अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी की. वो अपने बच्चे को अपने पति का सरनेम देना चाहती थी, लेकिन उसके पहले पति के माता-पिता इस बात के लिए राज़ी नहीं थे. नाम बदलने की कोशिश की, तो पहले पति के परिवार ने मुक़दमा ठोक दिया.

महिला ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट ने आदेश दिया कि बच्चे का पुराना सरनेम ही इस्तेमाल किया जाए और जब भी रिकॉर्ड दिखाए जाएं, तो बच्चे के बायोलॉजिकल पिता का ही नाम दिखाया जाए. और, महिला के पति का नाम बच्चे के सौतेले पिता के तौर पर ही दर्ज किया जाए. वरना ये अवैध माना जाएगा.

इसके बाद महिला चली गई सुप्रीम कोर्ट. सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया. कोर्ट ने कहा,

"पिता के निधन के बाद, बच्चे की इकलौती नैचुरल गार्जियन उसकी मां है. तो हमें ये समझ नहीं आ रहा है कि क़ानून का हवाला देकर मां को अपने ही बच्चे को नए परिवार में शामिल करने और उसका सरनेम तय करने कैसे रोका जा सकता है?"

अदालत ने एक बच्चे के लिए सरनेम के महत्व पर भी ज़ोर डाला. कहा,

"सरनेम केवल वंश नहीं बताता और इसे सिर्फ़ इतिहास, संस्कृति और वंश के संदर्भ में नहीं समझा जाना चाहिए. किसी की सोशल रियालिटी तय करने में सरनेम का ज़रूरी रोल है. सरनेम का एक होना परिवार बनाने और बनाए रखने में ज़रूरी है.

सरनेम से एक बच्चे को अपनी पहचान मिलती है. अगर उसका सरनेम अपने परिवार से अलग होगा, तो उसे हमेशा अडॉप्शन की बात याद रहेगी. और, उसके दिमाग़ में अपनी मां और नए पिता के रिश्ते के बारे में ग़ैर-ज़रूरी सवाल आते रहेंगे."

अदालत ने ऐसे ही एक पुराने मामले का हवाला दिया. 'गीता हरिहरन बनाम भारतीय रिजर्व बैंक' मामले को कोट करते हुए बेंच ने कहा कि हिंदू माइनॉरिटी और अडॉप्शन ऐक्ट के तहत मां को पिता के बराबर दर्जा है. 

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