'घर के काम पुरुष नहीं करेंगे', SC के जज बोले- इसी सोच ने महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया
जस्टिस भट्ट ने कहा- महिलाओं का प्रतिनिधित्व कागज़ों पर सिमटना, महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत खतरनाक.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने जुडिशरी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर चिंता जताते हुए कहा कि जुडिशरी में सच महिलाओं के लिए एक ग्लास सीलिंग है, जिसका टूटना बेहद ज़रूरी है. इसके साथ ही उन्होंने घरेलू काम में महिला-पुरुष की भागीदारी को लेकर भी ज़रूरी बातें कहीं.
बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक़, 23 जुलाई को चेंबर ऑफ कॉमर्स की तरफ से एक एक इवेंट आयोजित किया गया था. इसमें पावर और डिसिजन मेकिंग में महिलाओं की भूमिका पर बात की गई. इसी कार्यक्रम में जस्टिस भट्ट ने कहा,
"जब जुडिशियरी की बात आती है, तो ऐतिहासिक रूप से जेंडर रेप्रेज़ेंटेशन एक चिंता का विषय रहा है. तमिलनाडु में महिला जजों की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन जितनी होनी चाहिए, उससे बहुत कम है. महिलाओं के लिए ग्लास सीलिंग सच में है."
ज़ाहिर तौर पर महिलाओं का लीडरशिप पोज़िशन में होना और ज़्यादा महिलाओं के लिए रास्ते खोलता है, लेकिन पहले उन्हें वहां लाना होगा.
इसकी शुरुआत बुनियादी क़दमों से होती है. इसमें लीडर्स और स्टेकहोल्डर्स को महिलाओं के मुद्दों के लिए सचेत रहना पड़ेगा. तभी उनकी भागीदारी को बनाए रखा जा सकता है."
किसी भी वर्क-स्पेस में महिलाओं की भागीदारी की कमी की एक बड़ी वजह मदरहुड है. इस पर आए दिन बहस होती है, बयान आते हैं. कुछ महीने पहले जस्टिस बी वी नागरत्ना ने भी इस मसले पर बात की थी. अपने वक्तव्य में जस्टिस भट्ट ने भी इस बात को हाइलाइट किया कि कैसे घरेलू ज़िम्मेदारियां महिलाओं को डिसीज़न मेकिंग पदों पर जाने से रोकती हैं. उन्होंने कहा कि 'वर्क फ्रॉम होम' पैटर्न एक समाधान हो सकता था, लेकिन ये महिलाओं की परेशानी और बढ़ा देता है क्योंकि घरेलू ज़िम्मेदारियां पुरुष और महिलाओं के बीच बराबर नहीं बंटी हैं. और, इस वजह से वर्क और पर्सनल लाइफ़ में समस्याएं आती हैं. जस्टिस भट्ट ने कहा,
“घरेलू काम महिलाओं पर बहुत बोझ डालता है. उसे ऐसे नहीं देखा जा सकता है कि ये है तो है. इसके बजाय हमें ऐसे समाज की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए, जो लेबर के बराबर बंटवारे का सम्मान करे.”
जस्टिस भट्ट ने घरेलू काम के समान बंटवारे पर ज़ोर देते हुए कहा कि घरों में काम का बंटवारा इस आधार पर होना चाहिए कि किसी एक पर दबाव न पड़े. चाहे बच्चे की जिम्मेदारी हो, चाहे रसोई की.
कई घरों में पुरुष खाना खाने के बाद थाली भी उठाकर नहीं रखते हैं. पिछले दिनों लिंक्डइन का एक पोस्ट भी वायरल हुआ था, जिसमें एक शख्स ने पोस्ट किया था कि उनकी पत्नी ऑफिस की मीटिंग अटेंड करते हुए सब्ज़ी काट रही हैं. इस तरह के और भी पोस्ट इंटरनेट पर वायरल हुए, जिनमें महिलाएं ऑफिस और घर के काम के बीच संघर्ष करती दिख रही थीं. उन्हें महान बताया जा रहा था. ऐसे पोस्ट्स को लेकर विवाद भी बड़े हुए, कि भईया तुम फोटो खींच रहे, उसके बदले काम में हाथ ही बंटा देते.
जस्टिस भट्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व कागज़ों पर सिमट कर न रह जाए. सांकेतिक प्रतिनिधित्व महिला सशक्तिकरण के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है.
सांकेतिक प्रतिनिधित्व मतलब क्या? मतलब किसी पद पर बैठी तो महिला हो, लेकिन फैसले लेने का अधिकार उसके पास न हो. विधायक पति, प्रधानपति इसी सांकेतिक प्रतिनिधित्व का नतीजा हैं. जहां कागज़ों में तो महिलाएं होती हैं, पर उनके नाम पर सत्ता उनके परिवार के कोई पुरुष चला रहे होते हैं. जस्टिस भट्ट इसी तरह के प्रतिनिधित्व को महिला सशक्तिकरण के लिए नुकसानदेह बता रहे हैं.
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