'मैं खुद को बाथरूम में लॉक कर लेती थी', देश की पहली ट्रांसजेंडर ब्यूटी क्वीन ने सुनाई आपबीती
निताशा कहती है कि उन्हें अपनी पहचान बनाने में भाई और पिता से भी शुरूआती सपोर्ट नहीं मिला था.
"मेरी पहचान को लेकर मुझे स्कूल में बहुत परेशान किया गया. जबरदस्ती मुझसे फुटबॉल खिलवाया जाता था. जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था. जब भी कोई मुझे प्लेग्राउंड में लेकर जाने की कोशिश करता तो मैं खुदको बाथरूम में लॉक कर लेती थी. लोग चाहते थे कि मैं लड़कों वाले काम करूं. लेकिन मैं अंदर से ऐसा महसूस नहीं करती थी."
ये आपबीती है निताशा बिश्वास (Nitasha Biswas) की. जो देश की पहली ट्रांसजेंडर ब्यूटी क्वीन (First Transgender Beauty Queen) बनीं. 2016 में उन्हें इस ख़िताब से नवाजा गया था. लेकिन, यहां तक का उनका सफर आसान नहीं था. निताशा को बचपन से ही लोग जिस रूप में स्वीकार रहे थे, वो उनकी सच्चाई नहीं थी. निताशा बताती हैं कि लोग उन्हें लड़का समझते थे लेकिन वो खुद को अंदर से लड़की मानती थीं.
आजतक से जुड़े मनीष चौरसिया की रिपोर्ट के मुताबिक, निताशा जब 6 साल की तब उनकी मां का देहांत हो गया था. घर में उनके अलावा उनके पिता और बड़े भाई थे. निताशा बताती हैं कि पहले उन्होंने अपनी बॉडी, अपनी पहचान के बारे में अपने भाई से बात की. लेकिन भाई को लगा कि ये बड़ी हो रही है इसलिए ऐसी बातें कर रही है. फिर उन्होंने अपने पिता से इस बारे में बात की. तो पिता का जवाब आया कि ये गलत है.
दिल्ली आकर लड़की बनीआजतक से बातचीत में निताशा ने बताया कि घरवालों ने जब उनकी पहचान को लेकर विरोध किया तो वो दिल्ली आ गईं. यहां उन्होंने पूरी तरह से अपन ट्रांसफॉर्मेशन कराया. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रांसफॉर्मेशन एक बहुत मुश्किल प्रोसेस है. ट्रांसफॉर्मेशन के वक़्त बॉडी में बहुत बदलाव आते हैं. ये काम रातों रात नहीं होता है. ऐसे में अगर आप किसी से जुड़े हैं या किसी के बेहद नजदीक हैं तो ट्रांसफॉर्मेशन के समय अचानक से वो लोग आपको स्वीकार नहीं पाते हैं. उनके लिए मुश्किल होता है कि आप पहले कुछ और थे और अब कुछ और.
निताशा आगे बताती है,
"एक बार मेरे पिता की तबीयत बहुत खराब हो गई थी इसलिए मैं उनसे मिलने गई. ये पहली बार था जब मैं ट्रांसफॉर्मेशन के बाद अपने परिवार से मिल रही थी. मैं घर पहुंची तो मेरी बुआ ने मुझसे मास्क हटाने को कहा, और कहा मैं तुम्हे देखना चाहती हूं कि तुम अब कैसी लगती हो. मैंने मास्क हटाया. तो उन्होंने घर में सबसे कहा कि भाभी वापस आ गई. लोगों ने मेरे चेहरे में मेरी मां को देखा और ये मेरे लिए सबसे बड़ा कॉम्प्लिमेंट है."
निताशा आगे बताती हैं कि वर्कप्लेस में एक ट्रांसजेंडर को बहुत भेदभाव झेलना पड़ता है. उन्होंने अपने साथ एक वाकये का जिक्र करते हुए बताया कि एक बार उनके ऑफिस में पार्टी थी. वो एक ग्रुप के साथ पार्टी एन्जॉय कर रही थीं. लेकिन जैसे ही उन्होंने उनको बताया कि वो ट्रांस है तो उन लोगों का व्यवहार तुरंत बदल गया. उन्हें ऐसा लगा जैसे उनसे उनकी पहचान ही छीन ली गई है.
स्कूल में ही मिले ट्रांसजेंडर पर शिक्षानिताशा ने कहा कि लोगों को ट्रांसजेंडरों और उनके बॉडी के बारे में स्कूल में ही शिक्षा दी जानी चाहिए. वो चाहती हैं कि स्कूल में इस विषय पर एक सब्जेक्ट जोड़ा जाना चाहिए. निताशा कहती हैं,
"लोगों में ट्रांसजेंडर को लेकर बहुत भ्रम है. उन्हें लगता है कि ट्रांसजेंडर सिर्फ सड़क पर ताली बजाकर पैसा ही मांगना जानते हैं. कई लोग तो ट्रांसजेंडर बॉडी को लेकर भी गलत मानसिकता रखते हैं. इन सबकी एक ही वजह है. स्कूल में बायोलॉजी सब्जेक्ट में सिर्फ मेल और फीमेल की बॉडी के बारे में ही बात की गई है. कभी ट्रांसजेंडर की बॉडी के बारे में नहीं बताया जाता है. अगर समाज में हमे कुछ बदलाव लाने हैं या भेदभाव खत्म करना है तो स्कूलों में ट्रांसजेंडर्स के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए. ऐसा भी सब्जेक्ट होनी चाहिए."
निताशा आगे बताती है कि उनके पास अभी OTT प्लेटफार्म से बहुत ऑफर आ रहे हैं. करियर में वो अच्छा कर रही हैं. लेकिन भविष्य में वो 'नेता बनना चाहती हैं.' क्योंकि उनका मानना है कि समाज में बदलाव लाना है तो पॉलिटिक्स में जाना होगा और ट्रांसजेंडर को लेकर कई पॉलिसी बनानी होगी.
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