The Lallantop
Advertisement

रत्ना पाठक शाह ने करवा चौथ की तुलना सऊदी अरब से क्यों कर दी?

रत्ना ने करवाचौथ का व्रत रखने वालों पर बड़ी बात कही.

Advertisement
ratna pathak shah
पिंकविला के इंटरव्यू से स्क्रीनग्रैब
pic
सोम शेखर
28 जुलाई 2022 (Updated: 28 जुलाई 2022, 16:21 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

रत्ना पाठक शाह ने एंटरटेनमेंट वेबसाइट पिंकविला को एक इंटरव्यू दिया. बॉलीवुड में 50 सालों का सफ़र, साराभाई v/s साराभाई, नसीरुद्दीन शाह के साथ रहने और काम करने के अलावा रत्ना ने कई ज़रूरी मुद्दों पर अपनी बात रखी. रत्ना ने कहा कि उन्हें डर है कि भारतीय समाज एक दकियानूसी समाज बनता जा रहा है. ये भी बताया कि कैसे भारत की आधुनिक महिलाएं अचानक पुरातन परंपराओं का पालन करने लगी हैं.

एंटरटेनमेंट वेबसाइट पिंकविला के एक प्रोग्राम 'बातें अनकही' में रत्ना ने कहा,

"महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं बदला है. बदला भी तो, ज़रूरी क्षेत्रों में बहुत कम बदलाव आए हैं. हमारा समाज बेहद रूढ़िवादी होता जा रहा है. हम अंधविश्वासी होते जा रहे हैं. हमें अपने जीवन में धर्म को एक अभिन्न हिस्सा बनाने और स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

किसी ने मुझसे पिछले साल पूछा कि क्या मैं करवा चौथ का व्रत रख रही हूं. मैंने कहा, 'क्या मैं पागल हूं?' ये मुझसे पहली बार पूछा गया था. क्या ये डरावना नहीं है कि मॉडर्न-एजुकेटेड महिलाएं करवा चौथ करती हैं? पति के जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं, ताकि उन्हें जीवन में कुछ वैलिडिटी मिल सके? भारत में विधवा होना भयानक है, नहीं? तो जो कुछ भी मुझे विधवा हो जाने से बचाए, मैं वो करूं? सीरियसली? हम 21वीं सदी में इस तरह की बातें कर रहे हैं?"

हाल के सालों में भारत में जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं, उस पर कटाक्ष करते हुए रत्ना ने सवाल किया कि क्या हम सऊदी बनना चाहते हैं? कहा,

"हम एक बहुत रूढ़िवादी समाज बनने की ओर बढ़ रहे हैं. एक रूढ़िवादी समाज सबसे पहले महिलाओं पर शिकंजा कसता है. दुनिया भर में देख लीजिए. महिलाएं ही सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं. सऊदी अरब में महिलाओं की क्या स्थिति है? क्या हम सऊदी अरब की तरह बनना चाहते हैं? और, हम बन जाएंगे क्योंकि ये बहुत कन्वीनियंट है. महिलाएं घर में बहुत काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें पैसे भी नहीं मिलते. अगर उस काम के लिए पैसे देने पड़ जाएं, तो कौन देगा? महिलाओं को उस स्थिति में रहने के लिए मजबूर किया जाता है."

इसके अलावा रत्ना पाठक शाह ने 70 और 80 के दशक की फिल्मों की महिला पात्रों के बारे में बात की, जिन्हें ऐसे लिखा जाता था जैसे उन्हें 'ख़ुश होने का कोई अधिकार नहीं था या वे किसी न किसी चीज़ से आहत रहती थीं'. उन्होंने ये भी बताया कि 1970 के दशक में सेलिब्रिटी कल्चर कितना ज़हरीला था और कैसे स्टार पावर का आगे बाक़ी सब चीज़ें छिप जाती थीं. 

व्रत-उपवास के नाम पर समाज में जो भ्रम फैल रहे, उन पर गौर किया?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement