पति या पत्नी से शारीरिक संबंध नहीं रखे तो होगी बड़ी दिक्कत, जानिये क्या है 'क्रूरता'
तलाक लेने के लिए जिस क्रूरता को आधार बनाया जाता है, उसके बारे में जान लीजिए.
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एक पुरुष ने कोर्ट में तलाक़ की अर्ज़ी दी. बताया कि उसकी पत्नी एक अलग घर की मांग कर रही है और बिन बताए अपने मायके चली जाती है. इसलिए मानसिक क्रूरता के आधार पर उसे तलाक़ दिया जाए. कर्नाटक हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि केवल एक अलग घर मांगने को 'क्रूरता' नहीं कहा जा सकता है.
Marriage Cruelty का केस क्या है?
साल 2002 में एक कपल की शादी हुई. हिंदू रीति-रिवाज से. शादी के कुछ वक्त बाद ही पति ने बेंगलुरु के फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्ज़ी दी. उसने कहा कि शादी के बाद से ही उसकी पत्नी एक अलग घर बनाने की मांग कर रही है. तर्क दिया कि वो अपनी मां और छोटे भाई के साथ रहता है, उनकी देखभाल करना उसकी जिम्मेदारी है, तो वो अलग घर में नहीं रह सकता है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक़, शख्स ने कहा कि जनवरी 2007 में पत्नी उसे बिना बताए घर छोड़ कर चली गई. बच्चे को भी साथ ले गई और वापस नहीं लौटी. साथ ही पत्नी ने पति और उसके रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ IPC की धारा 498-ए यानी दहेज हिंसा से जुड़ी धाराओं में मामला दर्ज करा दिया था. इस मामले में पति और उसके रिश्तेदारों को बरी कर दिया गया है. फैमिली कोर्ट में सुनवाई के दौरान पति ने दावा किया कि पत्नी का उसके साथ रहने का कोई इरादा है ही नहीं और सुलह की कोई संभावना नहीं है. इसीलिए शादी में क्रूरता के आधार पर उसे तलाक़ दिया जाए. पत्नी ने याचिका का विरोध किया और अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार कर दिया. सबूतों और दोनों पक्षों द्वारा जमा किए गए दस्तावेज़ों को देखने के बाद ट्रायल कोर्ट ने पति की याचिका स्वीकार कर ली और 15 मार्च, 2016 को शादी को भंग करने का आदेश दिया.Mere Filing Of Criminal Case By Wife, Demand For Separate House Not 'Cruelty': Karnataka High Court Sets Aside Divorce Decree @plumbermushi
— Live Law (@LiveLawIndia) March 28, 2022
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पत्नी ने आदेश को चुनौती देने के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया.
पत्नी का तर्क ये था कि फैमिली कोर्ट में पति क्रूरता और छोड़ देने की बात को साबित नहीं कर पाया है. पति का तर्क ये था कि पति-पत्नी दोनों 2007 से अलग-अलग रह रहे हैं और सुलह की सारी कोशिशें नाकाम रहीं. इसलिए इस तरह की शादी को जारी रखने का कोई मतलब नहीं है.
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने पत्नी का साथ देते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. बेंच ने कहा,
"केवल एक आपराधिक मामला दर्ज करने को 'क्रूरता' नहीं कहा जा सकता है. क़ानूनी परिभाषा के तहत 'क्रूरता' ऐसे बर्ताव को कह सकते हैं जो जीवन या स्वास्थ्य के शारीरिक या मानसिक ख़तरे का कारण बने या इस तरह के ख़तरे की उचित आशंका पैदा करे."कोर्ट ने ये भी कहा कि पति ने किसी भी स्वतंत्र गवाह से यह साबित नहीं किया कि उसकी पत्नी को ससुराल छोड़ने की आदत थी. क्रूरता के दायरे में क्या क्या आता है? अब ये तो हुई इस केस की बात. आपने ऐसे और केसेज़ के बारे में सुना-पढ़ा होगा जिसमें क्रूरता की बात आती है.
- 2011 में इसी तरह के एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एक पत्नी द्वारा अलग घर की मांग अपने आप में क्रूरता नहीं है. अपने घर को कैसा बनाना है, इसके लिए पत्नी के अपने विचार/सपने हो सकते हैं. एक अलग घर के विचार को क्रूरता के रूप में नहीं लिया जा सकता है.
- सितंबर, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा था कि किसी एक पार्टनर का संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता के दायरे में आता है.
- जनवरी, 2022 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'IPC की धारा 498-ए के तहत सुरक्षा के लिए पत्नी के जूलरी की कस्टडी लेना क्रूरता नहीं है.
तो ये फैसला होता कैसे है कि क्रूरता क्या है और क्या नहीं?
हिंदू मैरिज एक्ट (1955) की धारा 13 के तहत कुछ चीज़ें हैं जो तलाक का आधार मानी जा सकती हैं. इनमें एडल्ट्री, क्रूरता, कम से कम दो साल के लिए पत्नी या पति का परित्याग कर देना, धर्मांतरण और लाइलाज मानसिक बीमारी शामिल हैं.
1955 में जब ये कानून आया तब इसमें 'क्रूरता' का प्रावधान नहीं था. 1975 में सुप्रीम कोर्ट में दस्ताना बनाम दस्ताना केस आया था. इस केस में पति का कहना था कि पत्नी गाली देती है, आत्महत्या की धमकी देती है. कोर्ट ने इसे मानसिक क्रूरता मानते हुए तलाक की अर्ज़ी मान ली थी.
इसके बाद 1976 में हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन किया गया और क्रूरता को तलाक या लीगल सेपरेशन के लिए आधार बनाया गया. हालांकि, 'क्रूरता' शब्द जोड़ तो दिया गया, लेकिन इसे कोई सटीक डेफनिशन नहीं दी. नतीजतन, सालों से ज्यूडिशयरी ने इसकी अलग-अलग व्याख्याएं की हैं.
1976 के संशोधन से पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने दास्ताने बनाम दास्ताने (1975) में कानूनी क्रूरता की जांच की थी. उस मामले में अदालत ने माना कि पत्नी ने आत्महत्या करने की धमकी देना और पति को गाली देना, मानसिक क्रूरता में आएगा और पति के तलाक अर्जी मान ली (फोटो - Patna High Court)
मोटे तौर पर क्रूरता के दो प्रकार हैं - शारिरिक और मानसिक. हमने इस मामले को बेहतर समझने के लिए बात की स्वाति उपाध्याय सिंह से, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में प्रैक्टिस करती हैं. उन्होंने हमारे कुछ सवालों के जवाब दिए.
शादी में क्रूरता के दायरे में क्या-क्या आता है?
जवाबः हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-13 डिवोर्स के लिए नौ ग्राउंड्स देती है. क्रुएलिटी इन्हीं नौ में से एक है. अब सबसे ज़रूरी सवाल यह है कि क्रुएलिटी है क्या? हम न्यूज़ में पढ़ते हैं कि फलां केस में क्रुएलिटी के आधार पर डिवोर्स हुआ. एक पत्नी अपने पति को उसके माता-पिता से दूर रख रही थी और इसे क्रुएलिटी कहा गया. लेकिन क्रुएलिटी की परिभाषा तय कैसे होती है? देखिए क्रुएलिटी या क्रूरता की कोई पुख़्ता डेफिनेशन नहीं है क़ानून में. मूलतः क्रूरता का मतलब यही है कि अपने पार्टनर को एक शांति से न जीने देना.
अब इसमें एक इंटरेस्टिंग बात है कि ये जो रोज़मर्रा के झगड़े होते हैं पति-पत्नी के बीच में, जैसे-ताने कसना, खरी खोटी सुनाना- क़ानून इसे क्रुएलिटी के दायरे में नहीं रखता है. क्रुएलिटी के दायरे में आने के लिए किसी घटना को लगातार होते रहना ज़रूरी है. संशोधन के दौरान इस ऐक्ट में विशेष तौर पर 'परसिस्टेंट' और 'रिपिटेटिव' जोड़ा गया. अब इसके अलग-अलग केसेज़ के हिसाब से अलग-अलग मायने हो सकते हैं.
मेंटल हरासमेंट के केसेज़ में क्रूरता को किन मानदंडों पर जज किया जाता है?
जवाबः क्रूरता के दो प्रकार हैं. फिज़िकल और मेंटल. फिज़िकली मतलब किसी को मारना-पीटना, भूखे रखना, प्रताड़ित करना, सेक्शुअली अब्यूज़ करना या किसी भी तरह से किया हुआ शारीरिक अब्यूज़. और यह तलाक का एक वैलिड ग्राउंड है. दूसरा टाइप है मेंटल क्रुएलिटी. अब यह बहुत चुनौतीपूर्ण है. बतौर लॉ प्रैक्टिशनर हमारे लिए यह सबसे कॉन्प्लेक्स होता है कि हम किसी गतिविधि को कैसे मेंटल क्रुएलिटी के रूप में स्थापित करें. मिसाल के तौर पर एक पति-पत्नी का झगड़ा हुआ और पत्नी अपनी बच्ची को लेकर चले गई और वो किसी कारण से अपने पति को बच्ची से मिलने नहीं दे रही है. तो क्या इस केस में ये ऐक्ट क्रुएलिटी है और क्या इस ऐक्ट के आधार पर तलाक़ की अपील की जा सकती है? देखिए, कोई भी कृत्य जिससे दूसरा पक्ष को आक्रोश में आए, ज़िल्लत महसूस करे, कथित तौर पर ये मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है.
एक दूसरा उदाहरण देखिए. एक पति-पत्नी हैं और उनमें से किसी एक को अगर यह लगे कि वह दूसरे के साथ महफूज़ नहीं है, तो ये भी मानसिक क्रूरता का एक वैलिड ग्राउंड है. कोर्ट इसे कंसीडर करता है.
एडवोकेट स्वाति उपाध्याय सिंह.
क्या एक वैवाहिक जोड़े में प्राइवेसी के हनन को मेंटल हरासमेंट कंसिडर किया जाएगा?
जवाबः अभी ये एक दूसरी बात है. यह विषय है शादी में 'राइट टू प्राइवेसी' का. शादी के बाद कोर्ट पति-पत्नी को एक यूनिट मानता है. एक पति-पत्नी के बीच हुई बातचीत को 'प्रिविलेज्ड कॉन्वर्सेशन' के रूप में देखा जाता है. क़ानून अपने मूल स्वभाव में ऐसा ही है कि किसी भी संबंध को पहले बचाने की कोशि4श करे, न कि उसे तोड़ने की. अब इसमें सवाल यह है कि क्या निजता का अधिकार या राइट टू प्राइवेसी तलाक़ का आधार हो सकता है? जहां तक मैं क़ानून और इस सवाल को समझ पाई हूं, मुझे नहीं लगता कि एक शादी में प्राइवेसी तलाक़ का आधार हो सकता है. मुझे नहीं लगता कोर्ट इसे कंसीडर करेगा.
दूसरी बात. फ़र्ज़ करिए कि पति-पत्नी के बीच एक विवाद हो और पति अपनी पत्नी की निजी बातचीत कोर्ट में पेश करे, तो कोर्ट का मानना यह होता है कि अगर किसी पार्टनर की टैपिंग की जा रही है, उसे ट्रेस किया जा रहा है, उसका पीछा किया जा रहा है, वो भी तब जब एक तलाक याचिका चल की सुनवाई चल रही हो, तो यह IPC की धारा 354-डी के तहत एक दंडनीय अपराध है. ऐसा ही हुआ था दिल्ली हाईकोर्ट के एक सेलिब्रेटेड केस में. आप अपने पार्टनर की निजता का हनन नहीं कर सकते. किसी भी हाल में. इसके बावजूद, राइट टू प्राइवेसी तलाक का आधार नहीं हो सकता.
कुल मिलाकर बात यही है कि अभी भी क्रूरता की कोई पुख़्ता परिभाषा नहीं है. यह केस टू केस डिफ़र करती है. व्याख्या आधारित है. पुराने वर्डिक्ट्स के रेफरेंस में इसे समझा जा सकता है, कि फलां केस में इस ऐक्ट को मानसिक क्रूरता के दायरे में शामिल किया गया था और फलां को नहीं.