लड़की हूं तो क्या मैं ही फूल दूंगी? अफसर ने बताया कैसे निपटती थीं छिपे हुए सेक्सिज्म से
डिपार्टमेंट में जब भी कोई हाई प्रोफाइल शख्स आता, तो अच्छी दिखने के नाम पर अफसर को गुलदस्ता देने के लिए भेज दिया जाता था.
निरुपमा कोटरु. सिविल सर्वेंट हैं. ट्विटर पर बहुत ऐक्टिव रहती हैं. हाल ही में उन्होंने ट्वीट किया. दिलीप कुमार के बारे में. दिलीप कुमार और अपना एक क़िस्सा सुनाया, लेकिन साथ ही उन्होंने सिविल सर्विसेज़ में होने वाले कैज़ुअल सेक्सिज़्म को भी कॉल-आउट किया.
निरुपमा ने पहले दिलीप कुमार पर आई एक किताब का ज़िक्र किया. लेखक की तारीफ़ की, फिर वो घटना बताई. कहा,
"फैसल फारूकी, आपकी किताब से दिलीप कुमार साहब के साथ कुछ पर्सनल पलों को जानने का मौक़ा मिला. दिलीप साहब को हमेशा से एक विनम्र और सच्चे इंसान के रूप में जाना जाता था. आपकी पुस्तक इस बात की पुष्टि करती है. काश मैं उनसे तब मिल पाती, जब उनका स्वास्थ्य अच्छा था."
फिर उन्होंने दिलीप कुमार से अपनी मुलाक़ात के बारे में बताया. लिखा,
"1995 का साल था. नई सीरीज़ का पहला पैन कार्ड आया था. हमारे तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को दिलीप कुमार को ये पैन कार्ड देना था. बांद्रा कुर्ला परिसर में पुराने इनकम टैक्स ऑफ़िस में ये आयोजन हो रहा था. आसपास सबसे कम उम्र की अधिकारी मैं ही थी. इस नाते, मुझे वित्त मंत्री को गुलदस्ता भेंट देने के लिए कहा गया था. जैसे ही मैं मंच पर गई, मेरी शिफॉन साड़ी का पल्लू मेरे पीछे आ गया. मंच के सामने रखे पंखे की ओर. मैं डर गई. मैंने तुरंत मनमोहन सिंह को गुलदस्ता सौंप दिया और वहां से निकल गई. ये मोबाइल के पहले के दिन थे. तो साहब की कोई तस्वीर नहीं निकाल पाई.
दूसरी मुलाकात 2013 में हुई थी. डीएसपी पुरस्कार समिति के दौरान."
अब इसके बाद निरुपमा ने एक बहुत बारीक ऑब्ज़रवेशन से अपने वर्कप्लेस के सेक्सिज़्म को कॉल-आउट किया. उन्होंने बताया कि उन्हें समझ आ गया कि प्रेज़ेंटेबल होने का हवाला दे कर ये फूल देने का काम उन्हें ही दिया जाता था.
"इस घटना के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं 'फ्लावर गर्ल' के लिए डिफ़ॉल्ट चॉयस हूं. मेरा वजूद ये नहीं है. अगली बार जब सीनियर्स ने मुझसे फूल देने के लिए कहा, तो मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि वो मेरे पुरुष बैचमेट से कहें. वो भी युवा है. प्रेज़ेंटेबल है. उन्होंने फिर कभी नहीं पूछा. नारीवाद जीत गया."
आपको लग सकता है कि ये बात का बतंगड़ है. कई लोगों ने कमेंट सेक्शन में भी यही लिखा है कि ये तो सामान्य बात है. लेकिन इसके लिए आपको ये समझना पड़ेगा कि ये सामान्य है नहीं! इसे सामान्य बनाया गया है. समझना पड़ेगा कि सेक्सिज़्म क्या है? सेक्सिज़्म, मतलब लिंग के आधार पर एक क़िस्म का पूर्वाग्रह या भेदभाव. ये स्टीरियोटाइप्स और जेंडर रोल से जुड़ा हुआ है. जेंडर रोल्स बोले तो 'ये लड़का है, इसको ऐसे करना चाहिए'. या 'ये लड़की है, इसको ऐसे करना चाहिए'. हमें लगता है हल्की बात है कि अगर एक लड़की को फूल देने के लिए कह दिया गया, तो कौन सी बड़ी बात हो गई? लेकिन फिर हमें पूछना चाहिए कि हर बार एक लड़की को ही फूल देते हुए क्यों देखा जाता है?
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