औरतों को संपत्ति में बराबर हक दिलाने वाली मैरी रॉय की कहानी!
मैरी रॉय लेखिका अरुंधति रॉय की मां थीं. उनके बुकर अवॉर्ड जीतने वाले उपन्यास 'गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' में अम्मू का किरदार मैरी से ही प्रेरित था.
ह्यूमन राइट्स ऐक्टिविस्ट और शिक्षाविद मैरी रॉय (Mary Roy) का 1 सितंबर को निधन हो गया. वो 89 साल की थीं और प्रसिद्ध अंग्रेज़ी लेखिका अरुंधति रॉय की मां थीं. अरुंधति ने अपनी बुकर-विनिंग किताब 'द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स' में उनको मुख्य किरदार के रूप में रखा है. नाम दिया, 'अम्मू'. एक ख़ुद्दार, विद्रोही, तलाकशुदा मां.
मैरी का रियल-लाइफ़ किरदार भी कुछ ऐसा ही था. 2017 के एक इंटरव्यू में अरुंधति ने उनके लिए कहा था,
"मेरी मां ने मुझे बिगाड़ा और तोड़ा. फिर बिगाड़ा. फिर तोड़ा. और, वो आज भी मेरे साथ यही करती हैं."
मैरी को 'द मैरी रॉय केस' के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है. एक माइलस्टोन क़ानूनी लड़ाई, जिसने केरल में सीरियाई ईसाई महिलाओं को अपने परिवार, अपने समाज में बराबर हक़ दिलवाया. आज उसी केस के बारे में बताएंगे, लेकिन पहले जान लीजिए मैरी के बारे में. अम्मू के बारे में.
कौन थीं मैरी रॉय?जन्म हुआ 1933 में. कोट्टयम में. चार बच्चों में सबसे छुटकू थीं. पिता कीड़ा-विशेषज्ञ थे. उन्होंने इंग्लैंड से एंटोमॉलोजिस्ट की पढ़ाई की. एंटोमॉलोजी जीव-विज्ञान का एक ब्रांच है, जिसमें कीड़े-मकोड़ों की पढ़ाई करवाते हैं. वापस मैरी पर. मैरी ने चेन्नई के क्वीन्स मेरी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद शादी कर ली. एक बंगाली हिंदू से. विरोधी शादी. मज़हब के बाहर शादी करने के माएने आज भी क्या हैं, ये आपको मालूम है. तब हालात और बदतर थे. शादी चली नहीं क्योंकि मैरी के पति शराबनोश थे. तो मैरी ने उन्हें छोड़ दिया.
उसके बाद वो ऊटी चली गईं. अपने दो बच्चों के साथ. अपने दिवंगत पिता की एक झोपड़ी में रहने लगीं. उनका कहना था कि परिवार में भयंकर कलेश थे और इसी वजह से उनकी मां और भाई ऊटी आ गए और उसे घर खाली करने का आदेश दिया. इसके बाद 1967 में उन्होंने कोट्टायम में पल्लीकूडम स्कूल शुरू किया. और, ये स्कूल बन गया बड़ी सक्सेस स्टोरी. 2021 तक मैरी इस स्कूल के मैनेजमेंट में सक्रिय रहीं.
अब बात करते हैं केस की.
Mary Roy Caseभारत के स्वतंत्र होने के साथ रियासतों के संघ में शामिल होने की प्रक्रिया चल ही रही थी. त्रावणकोर वाले ज़िद्दी थे. महाराज चिथिरा थिरुनल और वी.पी. मेनन के बीच कई दौर की बातचीत के बाद राजा ने सहमति व्यक्त की. फिर 1 जुलाई, 1949 को त्रावणकोर साम्राज्य को कोचीन साम्राज्य में मिला दिया गया था और त्रावणकोर-कोच्चि राज्य का गठन किया गया था. अब शुरूआत में भारत के क़ानून और राज्यों के क़ानून में अंतर थे, जो धीरे-धीरे कम हुए. इसी तरह का मामला था त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट का.
त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट (Travancore Succession Act) के तहत, सीरियाई ईसाई समुदाय की महिलाओं को प्रॉपर्टी में विरासत का कोई अधिकार नहीं था. ऐक्ट के मुताबिक़, एक बेटी को संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं था. उसका हक़ केवल एक-चौथाई या 5,000 रुपये (दोनों में जो भी कम हो) पर होता था. इसी सक्सेशन ऐक्ट के तई मैरी को अपने मृत पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं मिला. तो उन्होंने अपने भाई जॉर्ज इज़ैक पर मुकदमा कर दिया. मैरी ने दलील दी कि त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
अब सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल ये था कि क्या इस मामले में त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट (1917) लागू होगा या भारतीय उत्तराधिकार ऐक्ट (1925)?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1986 के फैसले में भारतीय उत्तराधिकार ऐक्ट को चुना. तब के CJI पीएन भगवती और जस्टिस आरएस पाठक की पीठ ने फ़ैसला सुनाया कि अगर मृतक माता-पिता ने वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उत्तराधिकार का फैसला Indian Succession Act के तहत किया जाएगा. इस फ़ैसले ने सीरियाई ईसाई परिवारों में महिलाओं को संपत्ति पर बराबर अधिकार दिया.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी मैरी रॉय की लड़ाई ख़त्म नहीं हुई. अंत में 2009 में जा कर स्थानीय अदालत ने उनके पक्ष में डिक्री जारी की.
महिला अधिकारों की लड़ाई को जब भी देखा जाता है, इस क़ानूनी जीत को एक अहम पड़ाव की तरह देखा जाता है. हालांकि, जब मैरी से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि वो कोर्ट क्यों गईं तो उन्होंने कहा,
"मैं बहुत गुस्से में थी. मेरे पास कोई और कारण नहीं था. मैं जनता की भलाई के लिए ऐसा नहीं कर रही थी. मैं बस गुस्सा थी कि मुझे अपने पिता के घर से निकाला जा रहा है क्योंकि इसमें मेरा हिस्सा नहीं है."
केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन समेत दक्षिण भारत के तमाम बड़े नेताओं ने मैरी के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
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