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सुप्रीम कोर्ट ने देश के खनन-खनिज पर क्या फैसला दिया जिसे केंद्र की हार और राज्यों की जीत माना जा रहा?

ये मामला 35 साल पहले शुरू हुआ था. सीमेंट की कंपनी इंडिया सीमेंट्स ने तमिलनाडु सरकार की वसूली के ख़िलाफ़ केस कर दिया था. पहले सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने इस मामले में फ़ैसला सुनाया था. फिर 9 जजों की बेंच बैठी.

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खनिज पर टैक्स कौन लगाएगा? तय हो गया है.
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सोम शेखर
25 जुलाई 2024 (Published: 20:48 IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने खनन और खनिज गतिविधियों पर राज्यों की रॉयल्टी को लेकर अहम फैसला सुनाया है. गुरुवार, 25 जुलाई को उसने अपने ही एक पुराने आदेश को पलटते हुए केंद्र सरकार को झटका दे दिया और राज्यों को बड़ी राहत. सुप्रीम कोर्ट ने खनन और खनिज गतिविधियों पर राज्यों के रॉयल्टी अधिकार को बरक़रार रखा. कोर्ट ने माना कि ‘रॉयल्टी’ और ‘कर’, अलग-अलग हैं. कहा कि राज्यों के पास रॉयल्टी लगाने का अधिकार है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने ‘आठ बनाम एक’ (8:1) के बहुमत से ये फैसला सुनाया है जिसे ‘ऐतिहासिक’ बताया गया है. ये फ़ैसला ओडिशा, बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे खनिज समृद्ध राज्यों के लिए एक बड़ी जीत है.

पहले पूरा केस समझ लीजिए

पीछे चलिए. 1989 में तमिलनाडु सरकार और इंडिया सीमेंट्स के बीच एक विवाद हुआ. दरअसल, इस कंपनी ने राज्य से खनन पट्टा हासिल किया था और मुनाफ़े के एवज में रॉयल्टी भरती थी. लेकिन सरकार इस रॉयल्टी के ऊपर एक उपकर (सेस) लगा रही थी. सो उन्होंने केस कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. सात जजों की बेंच बैठी. 

इंडिया सीमेंट्स की दलील थी कि ये अतिरिक्त शुल्क असल में टैक्स ही है, जो केवल केंद्र सरकार लगा सकती है. राज्य सरकार केवल किराया वसूल सकती है, क्योंकि राज्य की ज़मीन इस्तेमाल में है. वहीं, तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया कि ये जो अतिरिक्त शुल्क है, ये कोई टैक्स नहीं है. बल्कि उनके प्राकृतिक संसाधनों (चूना पत्थर) का इस्तेमाल करने के लिए लिया जाता है.

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बेंच के सामने सवाल था कि क्या राज्य सरकार खनन के लिए रॉयल्टी के अलावा अतिरिक्त शुल्क वसूल सकती है. एक और सवाल था: क्या ये अतिरिक्त शुल्क असल में छिपा हुआ एक टैक्स ही है?

सात जजों की बेंच ने तमिलनाडु सरकार के तर्क को ख़ारिज कर दिया और इंडिया सीमेंट्स के पक्ष में फ़ैसला सुनाया. कहा कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत खानों और खनिज को विनियमित करने और टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. साथ ही ये भी साफ़ कर दिया कि रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है.

हालांकि, बीते बरसों में सुप्रीम कोर्ट में 80 से ज़्यादा याचिकाएं दायर की गईं. मांग की गई कि इस केस पर नौ जजों की बेंच बैठे और तय करे कि क्या इंडिया सीमेंट्स वाला वर्डिक्ट सही था, या रॉयल्टी एक तरह का टैक्स ही है.

अब क्या फ़ैसला आया है?

CJI चंद्रचूड़ की अगुआई में 9 जजों की बेंच बैठी. उनके साथ बेंच में जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय ओका, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भुयान, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस एजी मसीह थे.

सवाल वही, कि क्या खनिजों पर देय रॉयल्टी खान व खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत टैक्स है? और, क्या केवल केंद्र को ही ऐसी वसूली करने का अधिकार है या राज्यों को भी अपने क्षेत्र में खनिज भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार है?

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राज्यों के प्रतिनिधियों ने तर्क दिया:

  • राज्यों को अपने क्षेत्र में खनिजों समेत अन्य चीज़ों पर टैक्स लगाने का प्राथमिक अधिकार है.
  • संविधान केंद्र सरकार को ये अनुमति ज़रूरी देता है कि इस ताक़त पर कुछ सीमा लगाए. मगर इसका मतलब ये नहीं कि केंद्र सरकार ख़ुद खनिजों पर टैक्स लगाना शुरू कर दे.
  • खनन से संबंधित क़ानून (MMDR अधिनियम) मुख्य रूप से खनिजों के प्रबंधन और संरक्षण के बारे में है, न कि उन पर टैक्स लगाने के बारे में. इसलिए केंद्र सरकार अपनी ताक़त का इस्तेमाल कर अपना अलग खनिज टैक्स नहीं शुरू कर सकती.

केंद्र सरकार का कहना ​​है कि खनिजों पर टैक्स लगाने का अधिकार सिर्फ़ राज्यों को ही नहीं, बल्कि उनके पास भी होना चाहिए. उनका तर्क था:

  • MMDR अधिनियम सिर्फ़ विकास या संरक्षण के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र के समग्र कल्याण के लिए बनाया गया है. 
  • पूरे देश में खनिजों पर एक ही टैक्स लगे तो बेहतर है, क्योंकि अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग टैक्स से राजस्व में असमानता आ सकती है. 
  • खनिज देश के लिए इतने ज़रूरी हैं कि केंद्र के पास ज़मीन की तुलना में ज़्यादा नियंत्रण होना चाहिए.
कोर्ट ने क्या कहा?

दोनों तरफ़ की दलील सुनने के बाद बेंच के अधिकतर जजों ने माना है कि राज्यों को खनन या संबंधित गतिविधियों पर उपकर लगाने की शक्ति से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. बहुमत ने फ़ैसला सुनाया,

"राज्य विधानमंडल के पास खनिज पर टैक्स लगाने की विधायी शक्ति है, संसद के पास नहीं... चूंकि ये एक सामान्य प्रविष्टि है, लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है कि केंद्र सरकार अपनी इच्छानुसार किसी भी चीज़ पर टैक्स लगा सकती है. अनुच्छेद 246 के तहत दूसरी सूची की एंट्री-49 में साफ़ लिखा है कि खनिजों पर केवल राज्य सरकारें ही कर लगा सकती हैं."

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का कहना था,

“रॉयल्टी, टैक्स नहीं है... इंडिया सीमेंट्स वाले फ़ैसले में कहा गया था कि रॉयल्टी टैक्स है. हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ये ग़लत है. सरकार को किए किसी भी भुगतान को केवल टैक्स नहीं माना जा सकता.”

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केवल न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने बहुमत से अलग फ़ैसला सुनाया है. वो दोनों ही पहलुओं पर असहमत थीं.

"मेरा मानना ​​है कि रॉयल्टी, टैक्स की प्रकृति में ही है. राज्यों के पास खनिज पर कोई टैक्स या शुल्क लगाने की कोई विधायी क्षमता नहीं है... मेरा मानना ​​है कि इंडिया सीमेंट्स वाला निर्णय सही था."

अब राज्यों के पास केवल MMDR के तहत रॉयल्टी वसूलने का अधिकार होगा. वो खनन और खनिज विकास पर कोई और टैक्स नहीं लगा सकते. 

हालांकि, आज की सुनवाई के बाद कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वो ये साफ़ करे कि ये फ़ैसला भविष्य के लिए है और पुराने किसी लेन-देन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. बेंच ने स्पष्टीकरण देने के लिए 31 जुलाई की तारीख़ चुनी है.

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