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रतन टाटा की वजह से ताज होटल में आराम से आते-जाते हैं आवारा कुत्ते

Ratan Tata की लेगसी में केवल उनका बिज़नेस नहीं है. उनकी लोकप्रियता में उनका विनम्र व्यक्तित्व और उनके परोपकारी क़दम शामिल है. इसी व्यक्तित्व में जुड़ा है, जानवरों के प्रति उनका प्रेम.

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ratan tata dog lover
कुत्तों के साथ रतन टाटा की तस्वीरें आम हैं. (फ़ोटो - सोशल)
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सोम शेखर
10 अक्तूबर 2024 (Published: 19:12 IST)
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बुधवार, 9 अक्टूबर को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में टाटा ट्रस्ट के चेयरपर्सन रतन नवल टाटा का निधन हो गया. उनके पीछे रह गया एक बड़ा बिज़नेस साम्राज्य. नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक, सिम से लेकर एविएशन तक. मगर उनकी लेगसी में केवल उनका बिज़नेस नहीं है. उनकी लोकप्रियता में उनका विनम्र व्यक्तित्व और उनके परोपकारी क़दम शामिल हैं. इसी व्यक्तित्व में जुड़ा है, जानवरों के प्रति उनका प्रेम.

ताज के दरवाज़े हमेशा खुले

रतन टाटा को कुत्तों से इतना लगाव था कि उन्होंने मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल के दरवाज़े आवारा जानवरों के लिए हमेशा खुले रखे. इसी साल के मई महीने में ख़बर आई थी कि रतन टाटा ने होटल प्रशासन को सख़्त निर्देश दिए हुए हैं कि होटल परिसर में आवारा जानवरों के प्रवेश पर रोक न लगाएं. 

वहीं, टाटा समूह का मुख्यालय ‘बॉम्बे हाउस’ आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों के लिए एक तरह का सुरक्षित आश्रय है. इसके पीछे भी एक कहानी है.

एक बार की बात है. रतन कहीं से लौट रहे थे. उन्होंने इमारत के बाहर बारिश में एक आवारा कुत्ते को छिपते देखा. इसके बाद टाटा ने निर्देश दे दिया कि आवारा कुत्तों को अंदर जाने दिया जाए. अब लोगों की चेकिंग होती थी, मगर आवारा कुत्ते खुलेआम घूम सकते थे.

यह भी पढ़ें - आप रतन टाटा को कैसे याद करें? वो खुद बता गए हैं

बॉम्बे हाउस के ग्राउंड फ्लोर पर 2018 में एक समर्पित केनेल बनाया गया था. इसमें एक विशाल कमरा है. एक बंक बेड, एक अटेंडेंट और जलवायु-नियंत्रित ब्लाइंड्स हैं. कुछ आवारा कुत्तों के लिए बॉम्बे हाउस उनका घर है. बाक़ी अपनी मर्ज़ी से आते-जाते हैं.

किंग चार्ल्स का न्योता ठुकरा दिया

साल 2018 में रतन टाटा को बकिंघम पैलेस से न्योता आया. तत्कालीन प्रिंस चार्ल्स (अब, किंग चार्ल्स) उन्हें उनके परोपकारी प्रयासों के लिए आजीवन उपलब्धि पुरस्कार देना चाहते थे. लेकिन टाटा ने आख़िरी समय में अपनी यात्रा रद्द कर दी, क्योंकि उनके दो कुत्तों में से एक गंभीर रूप से बीमार था.

उनके क़रीबी दोस्त सुहेल सेठ ने इस घटना को याद किया. बताया कि उस दिन टाटा को संपर्क करने की बहुत कोशिश की. मगर फ़ोन उठ नहीं रहा था. जब आख़िरकार बात हो पाई, तो टाटा ने कहा, “टैंगो और टीटो - मेरे कुत्ते - उनमें से एक बहुत बीमार हो गया है. मैं उसे छोड़कर नहीं आ सकता.”

सुहेल ने अपने दोस्त को समझाने की कोशिश की. मगर वह माने नहीं. जब किंग चार्ल्स को बताया गया कि रतन टाटा कार्यक्रम में क्यों नहीं आ रहे हैं, तो वे भी उनकी प्रशंसा करने से ख़ुद को रोक नहीं पाए.

कुछ साल पहले टीटो की मृत्यु हो गई.

यह भी पढ़ें - रतन टाटा के वो ऐतिहासिक फैसले जिसने TATA ग्रुप की पहचान दुनियाभर में बनाई

शांतनु नायडू - जो आगे चलकर टाटा के सहायक बने - उन्हें भी कुत्तों से बहुत प्यार था. पुणे में आवारा कुत्तों की कार दुर्घटना में मौत हो रही थी. वो इससे परेशान थे. कुछ करना चाहते थे. अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक आइडिया पर काम शुरू किया. कुत्तों के लिए चमकदार कॉलर बनाने का आइडिया. ताकि गाड़ी चलाने वाला उन्हें दूर से ही देख सके. इस प्रोजेक्ट का नाम उन्होंने 'मोटोपॉज़' दिया.

रतन टाटा ने शादी नहीं की. कुत्ते ही उनके परिवार जैसे थे. यह बात अलग-अलग वाक़यों से जग-ज़ाहिर थी. सो शांतनु के एक मित्र ने सुझाव दिया कि रतन टाटा को मोटोपॉज़ पसंद आएगा, क्योंकि उन्हें कुत्ते पसंद हैं. शांतनु ने दोस्त की सलाह ली और टाटा के दफ़्तर में संपर्क पाया. प्रोजेक्ट के बारे में एक पत्र भेजा. वापस चिट्ठी आई: 

पशुओं से मेरा भावनात्मक जुड़ाव है. इस विषय पर चर्चा के लिए आपसे मिलना ख़ुशी की बात होगी. सही समय तय करने के लिए मेरे कार्यालय से संपर्क कर लें. 

कुछ ही महीनों बाद 'मोटापॉज़' एक 'रतन टाटा स्टार्ट-अप' बन गया. उन्होंने 11 शहरों में अपने सेंटर खोले और देश भर में विस्तार किया. रिफ्लेक्टिव कॉलर फैब्रिक के चलते सड़क दुर्घटनाओं में कुत्तों को बचाने में मदद मिली.

वीडियो: Ratan Tata ने Tata Trust को क्यों चलाया था?

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