कोरोनिल से एलोपैथी के दुष्प्रचार तक... रामदेव ने कब-कब क्या किया, जो लगातार फटकारे जा रहे हैं?
Ramdev और Patanjali का भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) से पंगा शुरू हुआ था, Covid-19 की पहली लहर के दौरान. तब से अब तक क्या-क्या घट चुका है? और इस सबसे Supreme Court इतना नाराज क्यों हो गया?
पतंजलि (Patanjali Ayurved) के भ्रामक विज्ञापन वाले केस में योग गुरु रामदेव (Ramdev) फटकार पर फटकार पाए जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फिर फटकार लगाई है. दरअसल, पतंजलि (Patanjali) ने बेंच के सामने जानकारी दी थी कि उन्होंने 67 अख़बारों में माफ़ीनामा छपवाया था, जिसमें 10 लाख रुपये का ख़र्च आया. इस पर कोर्ट ने उनसे पूछ लिया कि क्या ये माफ़ीनामा उतने ही बड़े साइज के थे, जितने बड़े उनके ‘भ्रामक’ विज्ञापन होते हैं.
इस मामले में अब 30 अप्रैल को फिर से सुनवाई होनी है. सुनवाई में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को कोर्ट में हाजिर रहने को कहा गया है. मगर ये पूरी भसड़ शुरू कब हुई, किन तारीख़ों से गुज़री और यहां तक कैसे पहुंची, इसका ब्योरा लेते जाइए.
रामदेव-पतंजलि केस की टाइमलाइन:- जून, 2020: पतंजलि ने 'कोरोनिल' लॉन्च किया. दावा किया कि सात दिन में कोरोना ख़त्म हो जाएगा. लोगों ने ख़ूब कोरोनिल ख़रीदा. तब लोग इसे इम्यूनिटी बूस्टर मानकर ख़रीद रहे थे.
- दिसंबर, 2020: BBC में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पतंजलि आयुर्वेद ने उत्तराखंड में सरकारी अधिकारियों से अपील की कि वो कोरोनिल के मौजूदा लाइसेंस को 'इम्यूनिटी बूस्टर' से बदलकर 'कोविड-19 की दवा' कर दें.
- जनवरी, 2021: पतंजलि की ओर से दावा किया गया कि उनके प्रोडक्ट को वायरस के ख़िलाफ़ 'सपोर्टिंग मेज़र' (सहायक इलाज) की मान्यता मिल गई है. हालांकि, आयुष मंत्रालय और उत्तराखंड राज्य के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि कोरोनिल COVID-19 का इलाज नहीं करता है.
- फ़रवरी, 2021: कोरोनावायरस के डेल्टा वैरिएंट की लहर से ठीक पहले रामदेव ने 'कोरोनिल' को नए रूप में लॉन्च किया. उसे 'कोविड-19 की पहली साक्ष्य-आधारित दवा' बताया. लॉन्च में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन भी शामिल हुए थे. शुरुआत में इवेंट पोस्टर में दावा किया गया था कि कोरोनिल को WHO ने मान्यता दी थी. हालांकि, बाद में WHO ने साफ़ किया कि उसने COVID-19 के इलाज या रोकथाम के लिए किसी भी दवा की समीक्षा नहीं की है, और न प्रमाणित की है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA). देश में डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे बड़ा संगठन. उन्होंने तब ही आपत्ति दर्ज करवाई कि WHO प्रमाणन की बात झूठी कैसे थी. स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन से जवाब तलब किया.
- महीनों बाद रामदेव का एक वीडियो वायरल हुआ. इसमें वो कहते हैं कि एलोपैथी एक 'बेवक़ूफ़ और दिवालिया विज्ञान' है, जो लाखों लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार है. साथ ही दावा भी किया कि कोई भी आधुनिक दवा कोविड का इलाज नहीं कर रही.
जवाब में IMA ने रामदेव को क़ानूनी नोटिस भेजा. माफ़ी मांगने और बयान वापस लेने की मांग की. पतंजलि योगपीठ का भी जवाब आया, कि रामदेव केवल एक वॉट्सऐप मेसेज पढ़ रहे थे, जो उन्हें किसी ने फ़ॉर्वर्ड किया था. आधुनिक विज्ञान के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है.
- जुलाई 2022: पतंजलि आयुर्वेद ने कुछ अख़बारों में आधे पन्ने का विज्ञापन छपवाया था: 'एलोपैथी द्वारा फैलाई गई भ्रांतियां - फ़ार्मा और मेडिकल उद्योग जो भ्रांतियां फैलाते हैं, उससे ख़ुद को और देश को बचाएं.' इस विज्ञापन में ये दावा भी किया गया था कि मधुमेह, थायरॉइड, अस्थमा, लीवर सिरोसिस और गठिया जैसी कई बीमारियों का इलाज आयुर्वेद के पास है.
- अगस्त, 2022: IMA ने 17 तारीख़ को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई, कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन, इसके इलाज के संदर्भ में एलोपैथी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार किया है. भ्रामक विज्ञापन देकर आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया गया है.
द ड्रग्स ऐंड अदर मैजिकल रेमेडीज़ ऐक्ट के अनुसार, भ्रामक विज्ञापनों के लिए जेल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है.
- नवंबर, 2023: गंगा में बहुत पानी बह गया, कोरोना का प्रकोप बीत गया, दुनिया वापस पटरी पर आ गई. लेकिन, केस की सुनवाई चलती रही. नवंबर की 21 तारीख़ को केस में बड़ा अपडेट आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पतंजलि को इस तरह के भ्रामक दावों वाले विज्ञापन तुरंत बंद करने होंगे. नहीं बंद किए गए, तो हर झूठे दावे पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा.
- जनवरी, 2024: IMA फिर कोर्ट पहुंचा. दिसंबर, 2023 और जनवरी, 2024 में पतंजलि की ओर से प्रिंट मीडिया में छपवाए गए कुछ विज्ञापन कोर्ट के सामने रखे. आरोप लगाया कि पतंजलि ने इन विज्ञापनों में मधुमेह और अस्थमा को 'पूरी तरह से ठीक' करने का भ्रामक दावा किया था. इसके अलावा, 22 नवंबर 2023 को - यानी कोर्ट के निर्देश के ठीक एक दिन बाद ही - बालकृष्ण और रामदेव की एक प्रेस कॉन्फ़्रेस से जुड़ी बातें भी सुप्रीम कोर्ट को बताई.
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- फरवरी, 2024: आला अदालत के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद के 'गुमराह करने वाले' विज्ञापनों पर रोक लगा दी. साथ ही ये भी कहा कि पतंजलि आयुर्वेद ने उनके आदेश का उल्लंघन किया है, सो कंपनी सफ़ाई दे कि उनके ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए. पतंजलि से अगली सुनवाई से पहले जवाब तलब किया गया.
- मार्च, 2024: 19 तारीख़ की सुनवाई के दौरान कोर्ट को पता चला कि पतंजलि ने अवमानना नोटिस का जवाब नहीं दिया है. इसके बाद रामदेव और बालकृष्ण को ख़ुद कोर्ट के सामने पेश होने के लिए कहा गया. दो दिन बाद पतंजलि के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने कंपनी की तरफ़ से बिना शर्त माफ़ी मांगी.
- अप्रैल, 2024: महीने के दूसरे दिन रामदेव और बालकृष्ण अदालत में पेश हुए. बिना शर्त कोर्ट से माफ़ी मांगी. लेकिन जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस हिमा कोहली नहीं माने, माफ़ी नहीं स्वीकारी. ऊपर से खूब सुनाया. क्यों? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि रामदेव का हलफनामा रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है. पतंजलि की तरफ़ से सीनियर वकील बलबीर सिंह ने कहा कि उनके मुवक्किल ख़ुद कोर्ट में मौजूद हैं और ख़ुद माफ़ी मांगने के लिए तैयार हैं.
इसके बाद वकील ने हाथ जोड़कर बेंच के सामने माफ़ी मांगी. बेंच ने रगड़ दिया. रामदेव से सख़्ती से कहा कि अगर उन्हें माफ़ी मांगनी होती, तो पहले ही मांग लेते. उनकी माफ़ी को 'लिप सर्विस' मात्र बताया और विस्तृत हलफ़नामा दाख़िल करने के लिए कहा. नहीं माने, तो कार्रवाई के लिए चेताया.
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मंगलवार, 23 अप्रैल को कोर्ट में फिर से सुनवाई हुई. अदालत ने कहा कि रामदेव और बालकृष्ण ने अख़बार में जो माफ़ी छपवाई है, वो योग्य नहीं है. बेंच ने कहा कि माफ़ीनामा वाले विज्ञापनों की कटिंग उन्हें भेजी जाए. कहा,
हमें इसका असली साइज़ देखना है. ये हमारा निर्देश है. जब आप कोई एड छापते हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि हम उसे माइक्रोस्कोप से देखेंगे. सिर्फ पन्ने पर न हो, बल्कि पढ़ा भी जाना चाहिए.
रामदेव और बालकृष्ण को निर्देश मिले हैं कि अगले दो दिनों के भीतर ऑन रिकॉर्ड माफ़ीनामा जारी करें. अब अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी.
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