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न्यूज़क्लिक के पत्रकार को चीन से फंडिंग के आरोप में पकड़ा था, अब SC ने गिरफ्तारी को अमान्य बताया, दी बेल

सुप्रीम कोर्ट ने Newsclick के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ (Prabir Purkayastha) की गिरफ्तारी और रिमांड को अमान्य कर दिया, उन्हें पिछले साल दिल्ली पुलिस ने UAPA के तहत गिरफ्तार किया था. 74 साल के पत्रकार छह महीने से जेल में थे. अब उन्हें तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया है.

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prabir purkayastha supreme court
प्रबीर पर UAPA के तहत आरोप लगे थे. (फ़ोटो - सोशल/एजेंसी)
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सोम शेखर
15 मई 2024 (Updated: 15 मई 2024, 13:58 IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 15 मई को न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ (NewsClick editor Prabir Purkayastha) की गिरफ़्तारी और रिमांड को अमान्य क़रार दिया है, और उन्हें जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा रिमांड की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गई और इससे गिरफ्तारी का आधार प्रभावित हुआ है. इसलिए प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को कोर्ट निरस्त करता है. जमानत बांड प्रस्तुत करने पर ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के आधार पर उनकी रिहाई की जाएगी. पुरकायस्थ पर ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के आरोप लगाए गए थे.

जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने पाया कि 4 अक्टूबर, 2023 को रिमांड आदेश पारित किया गया था, मगर उससे पहले पुरकायस्थ या उनके वकील को रिमांड की कॉपी नहीं दी गई थी. इसका मतलब ये कि गिरफ़्तारी का आधार उन्हें लिखित रूप में नहीं दिया गया था. 

प्रबीर पुरकायस्थ 74 वर्ष के हैं. पिछले छह महीने से ज़्यादा समय से जेल में बंद थे. उन पर डिजिटल मीडिया के ज़रिए 'राष्ट्र-विरोधी प्रोपगैंडा' करने के आरोप लगे थे. चीन से फंडिंग लेने के भी आरोप लगे थे. दिल्ली पुलिस ने इस केस में पुरकायस्थ, सोशल ऐक्टिविस्ट गौतम नवलखा और अमेरिकी कारोबारी नेविल रॉय सिंघम को नामित किया था.

ये भी पढ़ें - Newsclick वालों पर UAPA की जिन धाराओं में मुकदमा, उनमें कितनी सजा मिल सकती है?

प्रबीर की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी. लाइव लॉ में छपी कोर्ट कार्यवाही के मुताबिक़, सिब्बल ने कहा कि ‘पंकज बंसल मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के ने जो हालिया फ़ैसला दिया, ये केस पूरी तरह से इसी दायरे में आता है. पंकज बंसल केस में कहा गया था कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को आरोपी को गिरफ़्तारी और रिमांड के आधार की एक कॉपी देनी चाहिए. प्रबीर पुरकायस्थ की तरफ से कोर्ट में कहा गया, 

दिल्ली पुलिस ने कहा कि फैसले में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के आरोप हैं. ये मामला तो UAPA के तहत था. इसके तहत तो आपको केवल आरोपी को गिरफ़्तारी का आधार बताना होता है. चूंकि ये PMLA के साथ है, इसीलिए आधार लिखित में दिया जाना चाहिए... तो क्या मुझे ज़मानत मांगने के लिए लिखित में आधार नहीं मिलना चाहिए?

जस्टिस संदीप मेहता, कपिल सिब्बल की दलील से सहमत हुए. उन्होंने कहा कि प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ़्तारी और रिमांड अवैध पाई गई है. इसलिए उन्हें हिरासत से रिहा किया जाना चाहिए. हालांकि, आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका था, तो रिहाई के समय उन्हें संबंधित ट्रायल कोर्ट में ज़मानत बॉन्ड जमा करना होगा.

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