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सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति आई, ना आंखों पर पट्टी, ना हाथ में तलवार

इस मूर्ति के जरिये संदेश यह है कि देश में कानून अंधा नहीं है और न ही यह संविधान की किताब सजा का प्रतीक है.

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New Justice Statue
बताया जा रहा है कि मूर्ती के एक हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब भी रखी गई है. (फ़ोटो/इंडिया टुडे)
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मनीषा शर्मा
16 अक्तूबर 2024 (Updated: 16 अक्तूबर 2024, 23:52 IST)
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सुप्रीम कोर्ट में आई ‘न्याय की देवी’ की नई मूर्ति चर्चा में है. क्योंकि इसकी आंखों पर पट्टी नहीं है, और ना हाथ में तलवार. मूर्ति के एक हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब रखी गई है. इस मूर्ति का संदेश यह है कि देश में ‘कानून अंधा नहीं है’ और न ही यह संविधान की किताब सजा का प्रतीक है.

Economic Times की रिपोर्ट के मुताबिक यह फैसला मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ के आदेश पर लिया गया है. उन्होंने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि कानून अंधा नहीं है, वो सबको समान रूप से देखता है. फिलहाल कानून की देवी की यह मूर्ति सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई है.

नई न्याय की देवी की मूर्ति की खास बातें- 
1. पूरी मूर्ति सफेद रंग की है. 
2. सिर पर एक मुकुट है. 
3. न्याय की देवी ने साड़ी पहनी हुई है. 
4. मूर्ति के डिजाइन में कानों में बाली, गले में जूलरी और माथे पर बिंदी है. 
5. एक हाथ में तराजू है. 
6. एक हाथ में संविधान है.
7. और आंखों पर पट्टी नहीं है.

JUSTICE
कानून की देवी की नई मूर्ति.

सोशल मीडिया पर भी नई मूर्ति की कई लोगों ने तारीफ की है. नबीला जमाल नाम की यूजर ने लिखा,

"पट्टी हटा दी गई है. सुप्रीम कोर्ट में नई न्याय की देवी अब खुली आंखों के साथ खड़ी हैं और तलवार के बजाय संविधान पकड़े हुए हैं. भारतीय कानून अब औपनिवेशिक प्रतिनिधित्व को समाप्त कर रहा है. यह नई प्रतिमा संकेत देती है- कानून अंधा नहीं है, न ही यह सजा का प्रतिनिधित्व करता है. CJI DY चंद्रचूड़ के सुधारों ने भारत में न्याय का चेहरा कई स्तरों पर बदल दिया है."

हरीश नाम के यूजर ने लिखा,

"कानून अब अंधा नहीं है, बहुत अच्छी चीज़ हुई."

आपने पहले भी कानून की देवी की मूर्ति देखी ही होगी. लेकिन फिर भी आपको याद दिला देते हैं. पहले न्याय की देवी की मूर्ति की दोनों आंखों पर पट्टी बंधी होती थी. साथ ही एक हाथ में तराजू और दूसरे में सजा देने के प्रतीक के रूप में तलवार होती थी. बताया जाता है कि यह कॉन्सेप्ट 17वीं शताब्दी में पहली बार भारत आया था. इसे अंग्रेज अफसर लेकर आए थे जो एक कोर्ट के अधिकारी थे.

इतिहास में जाएं तो न्याय की देवी के तार यूनान से जुड़े मिलते हैं. बताया जाता है कि यह यूनान की प्राचीन देवी है जिसका नाम ‘जस्टिया’ है. इसी नाम से जस्टिस शब्द आया. इसलिए इस देवी को न्याय का प्रतीक भी माना जाता है. इस देवी की आंखों पर पट्टी बंधी रहने का मतलब था कि न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय करेगी. वह किसी को बिना देखे भी न्याय कर सकती है, क्योंकि देखने के बाद न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय नहीं करेगी.

वहीं दोधारी तलवार यह दर्शाती है कि न्याय सबूतों के अध्ययन के बाद किसी भी पक्ष के खिलाफ फैसला सुना सकता है, और यह फैसले को लागू करने के साथ-साथ निर्दोष पक्ष की रक्षा या बचाव करने के लिए बाध्य है. कहा यह भी जाता है कि तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का प्रतीक था.

वीडियो: "सरकार के साथ खड़े हैं" CJI चंद्रचूड़ ने किन मामलों के लिए ऐसा कहा?

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