लिव-इन पार्टनर ने लगाया रेप का आरोप, युवक ने कोर्ट को 11 महीने का रिलेशनशिप कॉन्ट्रैक्ट दिखा दिया
आरोपी के वकील ने कोर्ट के सामने तर्क दिया कि दोनों के बीच सहमति का रिश्ता था और उन्होंने 11 महीने के लिव-इन MOU पर साइन किया था; इसलिए बलात्कार का आरोप सही नहीं है. हालांकि महिला ने इससे इनकार किया है.
मुंबई के एक सत्र न्यायालय ने बलात्कार और आपराधिक धमकी देने के एक आरोपी को ज़मानत दे दी. उस पर अपनी लिव-इन पार्टनर के रेप और उसे धमकाने का मामला दर्ज है. अपने फ़ैसले में अदालत ने कहा कि दोनों के बीच एक लिव-इन रिलेशनशिप कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ था. हालांकि, महिला ने इस दस्तावेज़ पर अपने दस्तख़त होने से इनकार किया है.
पूरा केस क्या है?महिला की तरफ़ से पेश हुए अडिशनल सॉलिसिटर जनकर ने कोर्ट को बताया कि 6 अक्टूबर, 2023 को महिला और आरोपी पहली बार मिले थे. तब वो तलाकशुदा थी और आरोपी ने उसे शादी के लिए प्रपोज़ किया. दोनों संबंध में आ गए. लेकिन बाद में महिला को पता चला कि व्यक्ति किसी अन्य महिला के साथ भी संबंध में है.
इंडिया टुडे की विद्या के इनपुट्स के मुताबिक़, महिला ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने उसे धमकी दी थी. उसके निजी वीडियोज़ और फ़ोटोज़ के ज़रिए धमकाया कि वो रिलेशनशिप में बनी रहे. इस बीच वो प्रेग्नेंट भी हो गई और आरोपी ने कथित तौर पर उसे गर्भपात की गोलियां दीं. फिर पीड़िता को पता चला कि व्यक्ति असल में शादीशुदा है. इसके बाद महिला ने 23 अगस्त, 2024 को शिकायत दर्ज कराई. आरोप लगाया कि शादी के वादे के एवज़ में आरोपी ने बार-बार उसका 'बलात्कार' किया.
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आरोपी के वकील सुनील पांडे ने जिरह की, कि रिश्ता सहमति से था और दोनों पक्षों ने 11 महीने के लिव-इन अरेंजमेंट के लिए एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर साइन किया था. इसलिए बलात्कार का आरोप सही नहीं है.
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए MOU अनिवार्य नहीं है, लेकिन समझौते से रिश्ते की शर्तें और दायरे दर्ज हो जाते हैं. इससे कुछ क़ानूनी सुरक्षा मिल जाती है.
पीड़िता के वकील ने ज़मानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आरोपी के मोबाइल फ़ोन को ज़ब्त करना चाहिए, क्योंकि वो सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है.
जज शायना पाटिल ने दोनों पक्षों के सभी सबूतों और बयानों की समीक्षा की. उनका निष्कर्ष था कि रिश्ता सहमति से बना था, जो ख़राब हो गया और इसी वजह से महिला ने शिकायत की. MOU के बारे में उन्होंने कहा कि दस्तावेज़ केवल नोटरी स्टैम्प के साथ एक ज़ेरॉक्स कॉपी था, और इसकी प्रामाणिकता सत्यापित नहीं की जा सकती.
आरोपों को देखते हुए जज ने फ़ैसला किया कि हिरासत में की गई पूछताछ अनावश्यक थी और आरोपी को गिरफ़्तार नहीं किया जाना चाहिए था. आरोपी को जांच में सहयोग करने के लिए कहा गया है.
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