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कर्नाटक में मंदिरों पर टैक्स बढ़ाने जा रही है सरकार, भाजपा ने कहा 'हिंदू-विरोधी'!

कर्नाटक सरकार ने राज्य में हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक पारित किया है. इसी पर बवाल छिड़ा हुआ है.

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भाजपा का कहना है कि कांग्रेस सरकार अपने खज़ाने भरना चाहती है. (फ़ोटो - आजतक/विकी)
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सोम शेखर
22 फ़रवरी 2024 (Updated: 22 फ़रवरी 2024, 17:50 IST)
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कर्नाटक सरकार ने बुधवार, 21 फरवरी को विधानसभा में हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक पारित किया. इसके मुताबिक़, जिन मंदिरों का राजस्व एक करोड़ रुपये से ज़्यादा है, सरकार उनकी आय का 10 प्रतिशत टैक्स लेगी. सिद्दारमैया सरकार के इस बिल पर बीजेपी ने उन्हें आड़े हाथों लिया. आरोप लगाए कि कांग्रेस ‘हिंदू विरोधी’ है और इस बिल के तहत फंड्स का दुरुपयोग होना तय है.

एकदमै बवाल की स्थिति है!

कर्नाटक के पूर्व-मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र येदियुरप्पा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि कांग्रेस सरकार अपने खज़ाने भरना चाहती है. साथ में ये भी तुर्रा छोड़ा कि सरकार केवल हिंदू मंदिरों से टैक्स क्यों ले रही है, बाक़ी धार्मिक स्थलों से क्यों नहीं? विजयेंद्र येदियुरप्पा ने X पर लिखा,

“करोड़ों श्रद्धालुओं के मन में यही सवाल है कि सिर्फ़ हिंदू मंदिरों पर ही नजर क्यों है? अन्य धार्मिक स्थलों की आय का क्या?”

ये भी पढ़ें - हनुमान झंडे की जगह तिरंगा, कर्नाटक में मचे नए बवाल की पूरी कहानी क्या है?

कर्नाटक के परिवहन मंत्री और कांग्रेस नेता रामलिंगा रेड्डी ने भाजपा के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा कि सरकार कोई पैसा नहीं ले रही है. इसका इस्तेमाल 'धार्मिक परिषद' उद्देश्यों के लिए किया जाएगा. उन्होंने इंडिया टुडे टीवी से कहा,

"यहां तक कि बीजेपी ने भी अपने समय में ऐसा किया था. वो 5 से 25 लाख रुपये के बीच आय वाले मंदिरों से 5% लेते थे. 25 लाख रुपये से ज़्यादा आय के लिए उन्होंने 10% टैक्स रखा हुआ था.

क्या भाजपा सरकार ने 2008 से 2013 के बीच या 2019 से 2023 के बीच अपनी ज़िम्मेदारियों की उपेक्षा की? ऐसा लगता है कि तब उन्होंने हिंदू धार्मिक संस्थानों के राजस्व पर आंखें मूंद ली थीं."

ऐसा क्या बदल गया है?

सबसे पहले: मंदिरों से टैक्स लेने की प्रथा या क़ानून नया नहीं है. 2001 से ही राज्य में Hindu Religious Institutions and Endowments क़ानून है. सिद्दारमैया सरकार ने बस इसमें एक संशोधन किया है. संशोधित क़ानून के तहत:

  • जिन मंदिरों की सालाना आय एक करोड़ रुपये से ज़्यादा हैं, उन्हें अपनी कमाई का 10 फ़ीसदी 'कॉमन पूल फंड' (CPF) में देना होगा. 
  • इसी तरह सालाना 10 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये तक की आय वाले मंदिरों को अपनी आय का 5 फ़ीसदी उसी फ़ंड में जमा करना अनिवार्य है.

इंडिया टुडे की नबीला जमाल के इनपुट्स के मुताबिक़, पहले यही 10 लाख या उससे ज़्यादा आय वाले मंदिरों को 5% टैक्स देना होता था. 10 लाख और उससे ऊपर एक ही स्लैब था, 10% टैक्स का प्रावधान नया है.

इस पैसे से सरकार करेगी क्या? सरकार का दावा है कि इकट्ठा किए गए धन का इस्तेमाल "धार्मिक परिषद" उद्देश्यों के लिए किया जाएगा. 

  • पुजारियों की आर्थिक स्थिति बेहतर करना.
  • सी-ग्रेड मंदिरों या जिन मंदिरों की स्थिति बहुत ख़राब है, उनकी स्थिति में सुधार करना.
  • और, मंदिर के पुजारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना.

अलग-अलग ट्रैवल वेबसाइट्स के मुताबिक़, कर्नाटक में लगभग 34,000 मंदिर हैं. अब सरकार कितने धार्मिक उद्देश्य पूरे करती है, ये तो समय बताएगा. हिंदू-विरोधी वाली बात में बहुत दम नहीं, क्योंकि टैक्स पहले भी था. बस बढ़ा दिया गया है. इससे बड़े मंदिरों को ज़्यादा टैक्स देना पड़ेगा.

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