अब इज़रायल के साथ खड़ा दिखना बाइडन को महंगा भी पड़ सकता है
कई मुस्लिन संगठनों ने बाइडन को खुली चेतावनी दी है - 'अगर जल्द से जल्द ग़ाज़ा में युद्धविराम नहीं करवाते, तो 2024 के चुनाव में वोट नहीं पड़ेंगे'.
हमास और इज़रायल के बीच छिड़ी जंग को एक महीने होने को आया है. हमास के हमले में इज़रायल के लगभग 1,400 नागरिक मारे गए. वहीं, इज़रायल की जवाबी बमबारी में अब तक 9 हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है. इसमें से 3,500 से ज़्यादा बच्चे थे. हमास के शुरुआती हमले के बाद दुनिया में जो आम-सहानुभूति इज़रायलियों की तरफ़ थी, अब फ़िलिस्तीनियों की तरफ़ झुक रही है. कमसे कम इंटरनेट पर तो ये झुकाव साफ़ दिख रहा है. रोज़ मरते बच्चों की तस्वीरें, रोज़ अख़बार में संपादकीय लेख. ग़ालिबन इसी वजह से अलग-अलग देशों ने भी अपनी 'सख़्त' कूटनीति को थोड़ा बैलेंस किया है. अब तो इज़रायल के साथ 'हर पल' खड़े रहने वाले अमेरिका ने भी तेवर हल्के कर लिए हैं. लेकिन असल में ये एक 'इंटरनल मैटर' है.
रॉयटर्स के ऐंड्रिया शलाल और एंड्रयू हे की रिपोर्ट के मुताबिक़, मिशिगन, ओहायो और पेंसिल्वेनिया राज्यों के मुस्लिम और अरब संगठनों ने जो बाइडन को साफ़ चेताया है कि अगर वो जल्द से जल्द ग़ाज़ा में युद्धविराम नहीं करवाते, तो 2024 के चुनाव में डोनेशन नहीं मिलेगा, वोट नहीं पड़ेंगे.
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नैशनल मुस्लिम डेमोक्रेटिक काउंसिल (NMDC) जैसे संगठनों का राज्यों में अच्छा-ख़ासा प्रभाव है. चुनाव का रुख पलट देने तक का माद्दा रखते हैं. बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ नेता भी इस संगठन का हिस्सा हैं. इन्होंने बाइडन को एक खुली चिट्ठी लिखी है. उनवान है, '2023 युद्धविराम के लिए आख़िरी चेतावनी'. इसमें मुस्लिम नेताओं ने वादा किया है कि जो भी उम्मीदवार इज़रायली हमले का समर्थन करेगा, वो उसका समर्थन नहीं करेंगे. मुस्लिम, अरब और बाक़ी समुदायों को इकट्ठा करके उस उम्मीदवार का वोट काटेंगे. इस युद्ध में अमेरिका की भूमिका पर परिषद ने लिखा,
"आपके प्रशासन ने इज़रायल का खुला समर्थन किया है. पैसा और हथियार दिए हैं. हिंसा को जारी रखने में आपकी अहम भूमिका है, जिससे रोज़ मौतें हो रही हैं. इस वजह से उन मतदाताओं का आप पर विश्वास कम हो गया है, जिन्होंने पहले आप पर विश्वास किया था."
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वैसे तो मुसलमान अमेरिका की कुल आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही है. सिर्फ़ 35 लाख. अमेरिकी यहूदियों की संख्या लगभग आधी. लेकिन, वो जहां-जहां बसे हैं, चुनाव पर ठीक-ठाक असर रखते हैं. पेंसलवेनिया, ऐरिज़ॉना और मिशिगन में डेमोक्रेटिक पार्टी बहुत कम अंतर से जीती थी. यहां मुसलिम वोट उनके हाथ में था.
अमेरिकी मुसलमानों के सिविक ग्रुप 'एम्गेज' ने पाया है कि 2020 के चुनाव में लगभग 11 लाख मुसलमानों ने वोट डाला था. 64% ने बाइडन को और 35% ने डोनाल्ड ट्रम्प को. बीते 31 अक्टूबर को थिंक-टैंक और NGO अरब अमेरिकन इंस्टीट्यूट ने एक पोल जारी किया है. इस पोल के मुताबिक़, मुसलमानों में बाइडन और डेमोक्रेट्स के प्रति समर्थन में काफ़ी गिरावट आई है. अच्छे-ख़ासे बहुमत से गिरकर केवल 17% रह गया है. अब ये बात हमको-आपको पता चल गई है, तो बाइडन प्रशासन को भी पता ही चल गई होगी. उनके पास तो CIA भी है. फिर उन्होंने क्या किया?
'डैमेज कंट्रोल' – ऐसा एक्सपर्ट्स का कहना है. 2 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा: "मुझे लगता है, हमें रुकने की ज़रूरत है."
रुकने का मतलब क्या? जब बाइडन से अपने बयान पर सफ़ाई मांगी गई, तो उन्होंने कहा: "रुकने का मतलब है अगवा नागरिकों को बाहर निकालने के लिए समय देना चाहिए."
बाइडन एक चुनावी रैली में ही थे, जब उनसे सवाल-जवाब किए जा रहे थे (वहां रैलियों में भी सवाल पूछे जाते हैं और प्रेस कॉन्फ़्रेंस भी होती है). बयान देने से पहले रैली में ही कुछ लोगों ने बाइडन के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी की थी.
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मुसलमान वोट के टूटने की आशंका और लोकल प्रदर्शन के अलावा भी बाइडन सरकार को मानवाधिकार समूहों, विश्व नेताओं और यहां तक कि अपनी ही पार्टी के सदस्यों के दबाव का सामना करना पड़ा है. इसके लिए बाइडन मीटिंगें कर रहे हैं. अरब/मुस्लिम समुदाय और यहूदी नेताओं को एक साथ साधने के प्रयास चल रहे हैं. वाइट हाउस की एक सीनियर अफ़सर ने रॉयटर्स को बताया कि बाइडन ने कुछ मुस्लिम नेताओं से मुलाक़ात भी की है.
अभी अमेरिका के चुनाव में पूरा एक साल बचा है. लेकिन जैसे-जैसे ये जंग बढ़ रही है, बाइडन को क़दम फूंक-फूंक कर रखने होंगे. वर्ना जतरा गड़बड़ा भी सकता है.