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दमा, TB, मानसिक विकारों से जुड़ी दवाओं की कीमत 50% तक बढ़ाई गई

जिन दवाओं का दाम बढ़ा है, इनमें अधिकतर दवाओं की क़ीमत कम ही है और दमा, ग्लूकोमा, थैलेसीमिया, तपेदिक और मानसिक स्वास्थ्य के विकारों के इलाज में इस्तेमाल होती हैं. दाम क्यों बढ़ा? दवा कंपनियों के 'दबाव' की वजह से.

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medicine 50% increase
बीते पांच सालों में दाम की बढ़ोतरी पहली नहीं, तीसरी बार हुई है. (फ़ोटो - शटरस्टॉक)
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सोम शेखर
15 अक्तूबर 2024 (Updated: 15 अक्तूबर 2024, 21:37 IST)
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भारत के राष्ट्रीय औषधी मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) ने कुछ ज़रूरी दवाओं की क़ीमत 50% तक बढ़ा दी है. इनमें से अधिकतर दवाओं की क़ीमत कम ही है और दमा, ग्लूकोमा, थैलेसीमिया, तपेदिक (TB) और मानसिक स्वास्थ्य के विकारों के इलाज में इस्तेमाल होती हैं.

दाम क्यों बढ़ा? क्योंकि दवा कंपनियों ने NPPA पर 'दबाव' बनाया. उनका कहना है कि दवा बनाने में जो ज़रूरी चीज़ें लगती हैं, उनकी लागत बढ़ गई है. उत्पादन और मुद्रा विनिमय दरें भी बढ़ गई हैं. इसीलिए मौजूदा क़ीमतों की वजह से घाटा लग रहा है. कुछ कंपनियों ने तो कुछ दवाइयां बंद करने का भी अनुरोध किया था, क्योंकि उससे बिल्कुल फ़ायदा नहीं होता.

यह पहली नहीं, तीसरी बार है जब NPPA ने दवाओं के दाम बढ़ाए हैं. इससे पहले 2019 और 2021 में भी 21 और 9 फॉर्मूलेशन की कीमतों में 50% की बढ़ोतरी की गई थी. 

दरअसल, औषधी (मूल्य नियंत्रण) आदेश (DPCO), 2013 के तहत NPPA को दो धुरियों के बीच संतुलन खोजना रहता है. पहला कि देश के पब्लिक हेल्थ स्ट्रक्चर में आवश्यक दवाएं रहें और वाजिब दाम पर रहें. दूसरा कि दवा निर्माताओं को घाटा न हो कि वो दवा बनाना ही बंद कर दें. 

इसलिए अथॉरिटी ने आठ आवश्यक दवाओं की क़ीमतों में संशोधन किया है. एजेंसी ने कहा कि सार्वजनिक हित के मद्देनज़र 50% वृद्धि को मंज़ूरी दी गई थी, ताकि ये दवाएं उपलब्ध रहें.

किन दवाओं की क़ीमतें बढ़ी हैं?

  • बेंज़िल पेनिसिलिन IU इंजेक्शन. अलग-अलग जीवाणु संक्रमणों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है. 
  • एट्रोपिन इंजेक्शन 06.mg/ml - दिल की धीमी गति (ब्रैडीकार्डिया) के इलाज के लिए.
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन पाउडर इंजेक्शन 750 mg और 1000 mg - तपेदिक (TB) और अन्य संक्रामक रोगों के इलाज के लिए.
  • सालबुटामोल टैबलेट 2 mg और 4 mg और रेस्पिरेटर सॉल्यूशन 5 mg/ml - अस्थमा और अन्य श्वसन रोगों के लिए.
  • पिलोकार्पिन 2% ड्रॉप्स - ग्लूकोमा के इलाज के लिए. 
  • सेफैड्रोक्सिल टैबलेट 500 मिलीग्राम - जीवाणु संक्रमणों के लिए.
  • इंजेक्शन के लिए डेसफेरियोक्सामाइन 500 मिलीग्राम - एनीमिया और थैलेसीमिया के इलाज के लिए.
  • लिथियम टैबलेट 300 मिलीग्राम - मानसिक स्वास्थ्य विकार के लिए. 

इन दवाओं का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है. अलग-अलग स्वास्थ्य स्थितियों में. डॉक्टर्स का कहना है कि अस्थमा और TB के इलाज में जो दवाएं लगती हैं, उनके दाम बढ़ने से जनता पर बोझ बढ़ेगा. 

यह भी पढ़ें - कैसे काम करती हैं डायबिटीज़ की दवाइयां? अगर इन्हें लेना बंद कर दें तो क्या होगा?

नई दिल्ली के पल्मोनोलॉजिस्ट और एलर्जी विशेषज्ञ डॉ विभु कवात्रा ने इंडिया टुडे को बताया कि तपेदिक के लिए रोगियों को 6 से 18 महीने तक दवा लेनी पड़ती है. ख़ासकर हड्डी या मस्तिष्क तपेदिक जैसे मामलों में. अगर क़ीमतें बढ़ती हैं, तो निजी चिकित्सकों से इलाज कराने वाले लोग प्रभावित हो सकते हैं. इसी तरह अस्थमा भी एक लंबी बीमारी है, जिसमें निरंतर उपचार चाहिए होता है. बढ़ती क़ीमतों के साथ निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों के लिए इलाज का ख़र्च उठाना भारी पड़ सकता है.

वीडियो: सेहतः कैंसर मरीज़ों को बड़ी राहत, विदेश से आने वाली इन दवाओं के दाम घटे

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