चांद के बाद ISRO की नज़र अब सूरज पर, Aditya-L1 मिशन का पूरा तिया-पांचा जान लीजिए
Aditya-L1 मिशन से ISRO क्या पाना चाहता है?
23 अगस्त 2023 की शाम का वक़्त. Chandrayaan 3 के लैंडर ने सफलतापूर्वक चांद की सतह पर लैंड किया. ISRO ने चंद्रयान मिशन के जरिए भारत को चांद के साउथ पोलर रीजन पर पहुंचने वाला पहला देश बना दिया है. लेकिन एक्टर गोविंदा का एक फ़िल्मी डायलॉग याद आ रहा है-
“सब चांद पर जात हैं. हम सीधा सूरज पर जाब.”
साल 1993 में बॉलीवुड कॉमेडी फिल्म आई थी- 'आंखें', ये उसी फिल्म का डायलॉग है.
असल में चांद के बाद अब तैयारी सूरज के नजदीक जाने की है. ISRO के इस मिशन का नाम है- आदित्य-L1. मिशन के तहत ISRO क्या करना चाह रहा है, सूरज की सतह तक पहुंच कर क्या फायदा होगा, विस्तार से इन्हीं सवालों के जवाब जानेंगे.
आदित्य-L1 मिशन कब लॉन्च होगा?14 अगस्त को ISRO ने आदित्य-L1 मिशन से जुड़ी कुछ तस्वीरें जारी कीं. सूरज का अध्ययन करने के लिए ये ISRO का अब तक का पहला मिशन है. इसकी तैयारी जोर-शोर से जारी है. ISRO ने X पर पोस्ट करके इसकी जानकारी दी.
पोस्ट में लिखा,
“PSLV-C57/Aditya-L1 Mission, सूरज का अध्ययन करने के लिए तैयार की गई स्पेस बेस्ड ऑब्जर्वेटरी है. इसे लॉन्च के लिए तैयार किया जा रहा है. इसकी सैटेलाइट को बेंगलुरु के यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) में तैयार किया गया है. और ये श्रीहरिकोटा पहुंच चुका है."
इसरो के सीनियर साइंटिस्ट नीलेश देसाई का कहना है कि 2 सितंबर 2023 को मिशन लॉन्च किया जा सकता है. आदित्य-L1 मिशन, सूरज को बहुत नजदीकी से ऑब्जर्व करेगा. और सूरज के वातावरण और मैग्नेटिक फील्ड के बारे में जानकारी इकट्ठा करेगा. इसमें 7 पेलोड (अलग-अलग तरह के उपकरण) लगाए गए हैं. ये सूरज के कोरोना, उससे निकलने वाले रेडिएशन, सोलर तूफ़ान, फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन (CME) का अध्ययन करेंगे. इनके अलावा सूरज की इमेजिंग की जाएगी.
स्टडी की जरूरत क्यों है?हमने अभी कुछ शब्द इस्तेमाल किए. इनके मायने क्या हैं. ये समझ लेंगे तो आदित्य-L1 मिशन की जरूरत भी समझ आ जाएगी.
सूरज के बारे में तो हम जानते हैं- हमारे सौर मंडल की सबसे बड़ी चीज. ये लगभग 450 करोड़ साल पुराना तारा है. गोल, चमकता हुआ और बेहद गर्म. इसके सेंटर में हाइड्रोजन और हीलियम है. हमारी पृथ्वी से सूरज की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है. और सूरज, पृथ्वी से इतना बड़ा है कि उसमें 13 लाख पृथ्वी समा जाएं. सूरज का सबसे गर्म हिस्सा इसका कोर है. यानी अंदरूनी हिस्सा. जहां पर तापमान डेढ़ करोड़ डिग्री सेल्सियस तक होता है. नासा के मुताबिक, इतने तापमान के चलते न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. यानी नाभिकीय संलयन. जिससे अपार ऊर्जा पैदा होती है. और सूरज में होने वाले विस्फोटों से लेकर इससे निकलने वाले चार्ज्ड पार्टिकल्स की स्ट्रीम तक, सूरज में या सूरज के द्वारा बहुत कुछ ऐसा होता रहता है जो सूरज के सौर मंडल को प्रभावित करता है.
अब बात सूरज के सर्फेस की. हम इसके जिस हिस्से को पृथ्वी से देखते हैं. उसे फोटोस्फेयर कहा जाता है. ये भी कोई सॉलिड सर्फेस नहीं है. बस हमें एक गोल चमकदार आकृति सा दिखता है. इसके ऊपर होता है सूरज का एटमॉस्फियर यानी वातावरण. इस एटमॉस्फियर की सबसे निचली परत को क्रोमोस्फेयर कहते हैं. और सबसे ऊपर की परत को कोरोना कहते हैं. सूरज की रोशनी के चलते सामान्य तौर पर कोरोना दिखता नहीं. लेकिन सूर्यग्रहण के दौरान या फिर स्पेशल इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए इसे देखा जा सकता है. और इसी कोरोना पर कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं.
सूरज की सतह पर क्या-क्या होता है?पहली घटना जो सूरज की सतह पर होती है वो है- सोलर प्रॉमिनेंस.
100 वाट का फिलामेंट वाला बल्ब आपने देखा ही होगा. सोलर प्रॉमिनेंस माने वही जलता हुआ सा फिलामेंट समझ लीजिए. जिसका एक सिरा टूटा हुआ है. सोलर प्रॉमिनेंस फोटोस्फेयर से शुरू होकर सूरज के बाहरी एटमॉस्फियर यानी कोरोना तक आता है. जैसे कि सूरज के बाहर हजारों किलोमीटर का एक जलता हुआ तार अर्धवृत्त के आकार में बाहर निकला हो. ये कभी एक दिन के लिए बनता है तो कभी कोरोना में ही महीनों तक बना रह सकता है. वैज्ञानिक अब तक खोज रहे हैं कि सोलर प्रॉमिनेंस क्यों बनते हैं.
दूसरी चीज है, सोलर एक्टिविटी.
नासा के मुताबिक, सूरज की ऊपरी सतह पर बहुत सारी इलेक्ट्रिकली चार्ज्ड गैसें होती हैं, जिनकी वजह से बहुत ताकतवर मैग्नेटिक फील्ड्स बनती हैं. सूरज की आवेशित गैसें कोई स्थिर चुम्बक तो है नहीं, बल्कि लगातार इधर-उधर मूव कर रही हैं, इसलिए मैग्नेटिक फील्ड भी मुड़ती, सिकुड़ती, फैलती या अपना रास्ता बदलती रहती हैं. इसे एक शब्द में कहा जाता है सोलर एक्टिविटी. और ये एक्टिविटी हमेशा एक जैसी नहीं रहती, कभी कम तो कभी ज्यादा होती है. ज्यादा सोलर एक्टिविटी के कारण ज्यादा सनस्पॉट बनते हैं. सनस्पॉट माने काले धब्बे. सूरज की सतह पर जहां-जहां मैग्नेटिक फील्ड बहुत ज्यादा होती है, वहां सूरज की अंदरूनी एनर्जी अंदर ही रुक जाती है. इसलिए काला धब्बा सा दिखता है.
एक शब्द, जिसका हमने जिक्र किया, वो है- सोलर फ्लेयर. इसे भी समझ लीजिए.
सनस्पॉट्स के आस-पास मैग्नेटिक फील्ड बहुत ज्यादा होती हैं. और मैग्नेटिक फील्ड लाइंस आपस में उलझती हैं या एक दूसरे को क्रॉस करती हैं या फिर आपस में मिलती हैं. और इस सबकी वजह से अचानक तेज विस्फोट होता है. इसे ही सोलर फ्लेयर कहते हैं. इस विस्फोट के चलते दो काम होते हैं- एक कि कुछ ही मिनट में बहुत ज्यादा मात्रा में सूरज से एनर्जी रिलीज होकर स्पेस में जाती है. और दूसरा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव पैदा होती हैं. वो भी हर वेवलेंथ की. माने एक्सरेज़ से लेकर गामा रेज़ तक, हर तरह की.
कोरोनल मास इजेक्शन (CME) भी समझ लीजिए-
नाम से अर्थ निकलता है- सूरज की कोरोना लेयर से किसी चीज का बाहर आना. ये दरअसल बड़े-बड़े गैस के बबल हैं जिन पर मैग्नेटिक फील्ड लाइंस लिपटी होती हैं. ये सूरज की कोरोना लेयर से निकलते हैं. और ये प्रक्रिया कई घंटे तक चलती है. वहीं नासा के मुताबिक, CME दरअसल रेडिएशन और सूरज के पार्टिकल्स के गोले हैं. जो मैग्नेटिक लाइंस फील्ड्स के एक साथ आने पर बहुत तेजी से फटते हैं.
सबसे जरूरी चीज है- सोलर स्टॉर्म.
जब सूरज से एक CME रिलीज होता है तो उसके साथ-साथ स्पेस में सूरज के करोड़ों टन चार्ज्ड पार्टिकल भी रिलीज होते हैं. ये पार्टिकल 30 लाख किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलते हैं और अगर इनकी दिशा पृथ्वी की तरफ है तो पृथ्वी पर जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म या दूसरे शब्दों में कहें तो आता है सोलर स्टॉर्म. सोलर स्टॉर्म पृथ्वी पर कई तरह के बुरे प्रभाव डाल सकते हैं. मसलन, सोलर तूफ़ान से वायरलेस कम्युनिकेशन, जीपीएस और मोबाइल फ़ोन सर्विसेज बाधित हो सकती हैं. एयरलाइंस, रेडियो और ड्रोन कंट्रोल करने वाली डिवाइसेज के ऑपरेशन में दिक्कत आ सकती है. फ्लाइट्स लेट हो सकती हैं, पानी के जहाज़ों को अपना रास्ता बदलना पड़ सकता है रेडियो के लो फ्रीक्वेंसी चैनल्स ठप पड़ सकते हैं. जब CME के चार्ज्ड पार्टिकल पृथ्वी से टकराते हैं तो इलेक्ट्रिक करेंट पैदा हो सकता है जिसके चलते पावर सप्लाई की लाइनें खराब हो सकती हैं, बिजली के उपकरण काम करना बंद सकते हैं.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर सोलर स्टॉर्म बहुत ताकतवर हो तो अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष में घूम रहीं सैटेलाइट्स तक के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है. इनके ऑर्बिट बदल सकते हैं. इनमें लगे उपकरण ख़राब हो सकते हैं. हालांकि सूरज की सतह से उपजने वाली सोलर स्टॉर्म जैसी तमाम घटनाओं को लेकर अभी बहुत व्यापक और पुष्ट जानकारियां वैज्ञानिकों के पास भी नहीं हैं. इसलिए ISRO और NASA जैसी स्पेस रिसर्च एजेंसी सूरज की सतह पर होने वाली घटनाओं को बेहतर तरीके से समझना चाहती हैं.
आदित्य-L1 कहां तक जाएगा?आदित्य-L1 मिशन में जो L1 है, उसे समझ लीजिए. सूरज और पृथ्वी दोनों के अंदर गुरुत्वाकर्षण है. सूरज का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से कहीं ज्यादा है. लेकिन दोनों के बीच एक निश्चित पॉइंट पर दोनों के गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे को संतुलित करते हैं. माने अगर इस पॉइंट से गुजरने वाले ऑर्बिट में कोई सैटेलाइट रखी जाए तो उसे न ही सूरज अपनी तरफ खींचेगा और न पृथ्वी अपनी तरफ. सूरज और पृथ्वी के बीच एक सीधी लाइन पर ऐसे ही 5 पॉइंट तय किए गए हैं. मैथेमैटीशियन जोसेफी-लुई लैग्रेंज के नाम पर इन्हें लैग्रेंज पॉइंट कहते हैं. L1 इन्हीं में से एक है. L1 पॉइंट पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है. ये दूरी पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी का लगभग सौवां हिस्सा है. L1 का फायदा ये भी है कि इससे गुजरने वाले ऑर्बिट (जिसे हैलो ऑर्बिट कहते हैं) में घूम रही चीज सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण में नहीं छिपती. ISRO के मुताबिक, सूरज से निकलकर पृथ्वी की तरफ जाने वाला सोलर स्टॉर्म भी L1 से होकर गुजरता है. इसीलिए आदित्य-L1 मिशन के लिए सैटलाइट को L1 से गुजरने वाली हैलो ऑर्बिट में लॉन्च किया जाएगा. ये इस ऑर्बिट में रहते वक़्त लगातार सूरज की तरफ देखते हुए जानकारी इकठ्ठा करेगा.
ये भी पढ़ें: NASA के नाम पर वायरल चंद्रयान-3 की मून लैंडिंग के वीडियो में बड़ा 'झोल' मिला
इससे पहले अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA ने 2018 में पार्कर सोलर प्रोब मिशन लॉन्च किया था. इस मिशन के तहत भेजी गई सैटेलाइट सूरज के और नजदीक गई. लेकिन ये सूरज से विपरीत दिशा में देख रही है. जबकि इससे पहले 1976 में नासा और तत्कालीन वेस्ट जर्मनी की स्पेस एजेंसी ने एक जॉइंट मिशन लॉन्च किया था. हेलियोस-2 सोलर प्रोब नाम के इस मिशन के तहत सैटेलाइट को सूरज की सतह से 43 लाख किलोमीटर की दूरी के अंदर तक भेजा गया था.
कितनी गर्मी का सामना करेगा आदित्य-एल1?NASA के पार्कर सोलर प्रोब ने एक हजार डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म तापमान का सामना किया है और पूरी तरह से काम भी किया. हालांकि, आदित्य-L1 को इतनी गर्मी का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि नासा के मिशन की तुलना में यह सूर्य से बहुत दूर रहेगा. लेकिन इसके लिए और चुनौतियां रहेंगी.
इस मिशन के लिए कई उपकरण और कॉम्पोनेंट्स भारत में पहली बार बने हैं.
(इस स्टोरी में हमारी साथी मनीषा ने भी मदद की है.)
वीडियो: चंद्रयान 3 ने लैन्डिंग के बाद चांद की पहली तस्वीर भेजी, ISRO के वैज्ञानिकों ने क्या बताया?