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संसद में घुसपैठ तो ग़ैर-क़ानूनी है, मगर विरोध की वजह कितनी जायज़?

विरोध का तरीक़ा सरासर ग़लत है, असंवैधानिक है, राज्य की नज़र में आतंकवादी गतिविधि है. मगर क्या जो वजहें उन्होंने गिनाई हैं, वो वैध हैं?

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बेरोज़गारी ज़ाहिर तौर पर देश में एक बड़ा चैलेंज है. (फ़ोटो - इंडिया टुडे)
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सोम शेखर
17 दिसंबर 2023 (Updated: 17 दिसंबर 2023, 17:56 IST)
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13 दिसंबर को लोकसभा में घुसपैठ हुई. एक पटाखा दागा गया. पीला धुआं लोकसभा में भर गया. सदन की कार्यवाही रोक दी गई. दो लोग सदन के अंदर से पकड़े गए, दो बाहर से. प्लैन में कम से कम छह लोगों का हाथ है और सभी आरोपी पुलिस रिमांड में हैं. उनके ख़िलाफ़ UAPA के तहत केस दर्ज हुआ है. जांच एजेंसियां आरोपियों से हर एंगल से पूछताछ कर रही हैं. उनके बैकग्राउंड, उनके मक़सद की जांच कर रही हैं. उनका आपस में क्या कनेक्शन है, इसकी भी जांच की जा रही है.

पूछताछ के दौरान आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उनका उद्देश्य अलग-अलग मुद्दों पर सरकार का ध्यान खींचना था. सूत्रों के हवाले से मीडिया रपटों में छपा है कि चारों बेरोज़गारी, किसानों की परेशानी और मणिपुर हिंसा जैसे मुद्दों से परेशान थे. उन्होंने पुलिस से कहा कि ध्यान खींचने के लिए ही उन्होंने ये कांड किया, ताकि नीति-नियंता इन मुद्दों पर चर्चा करें.

क्या ये आरोपी किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा थे? इसका पता जांच एजेंसियां लग रही हैं. जांच निष्कर्ष तक पहुंचे, उससे पहले कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी. फिलहाल हम इतना जानते हैं कि इन्होंने नियमों के परे जाकर संसद में घुसपैठ की. एक प्रतिबंधित चीज़ अपने साथ छिपाकर ले गए. और जिस तरह इन्होंने लोकसभा में छलांग लगाई, उससे सांसदों को चोट पहुंच सकती थी. ख़ुद इनकी जान बहुत बड़े ख़तरे में थी, क्योंकि अगर ये सब होते देख सुरक्षा-कर्मी साफ़ निशाना पाते, तो इनकी भी जान पर बन आती. हम याद रखें कि संसद पर एक बार आतंकवादी हमला हो चुका है, जिसमें 9 जानें गई थीं. ऐसे में सुरक्षा कर्मी गोली चला देते, तो वो पूरी तरह जायज़ ही ठहराया जाता. इसीलिये आरोपियों के कथित विरोध का तरीक़ा नाजायज़ कहलाएगा. लेकिन बेरोज़गारी, कृषि संकट और मणिपुर हिंसा ऐसे मुद्दे हैं, जो व्यापक चर्चा की मांग तो करते ही हैं.

बेरोज़गारी कितना बड़ा मुद्दा?

आरोपियों की जो जानकारी अभी तक हमारे पास आई, उस पर ग़ौर करते हैं.

  • सागर शर्मा: उम्र, 26 साल. उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले हैं. पिता बढ़ई का काम करते हैं. आर्थिक स्थिति की वजह से 12वीं तक ही पढ़ाई की.
  • मनोरंजन देवराजगोवड़ा: उम्र, 34 साल. कर्नाटक के मैसूर से हैं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. पिता किसान हैं, उन्हीं की मदद करते हैं.
  • नीलम सिंह/वर्मा: उम्र, 37 साल. हरियाणा के जींद से. संस्कृत में MPhil किया हुआ है. इसके अलावा NET, HTET और CTET जैसे इग्ज़ाम निकाल रखा है और अभी सिविल सेवा परिक्षा की तैयारी कर रही हैं.
  • अनमोल धनराज शिंदे: उम्र, 25 साल. महाराष्ट्र के लातूर के रहने वाले. मां-बाप खेतिहर मज़दूर हैं. 12वीं कर चुके हैं. भारतीय सेना और पुलिस सेवाओं की तैयारी कर रहे हैं.
  • ललित झा: बिहार से हैं, कोलकाता में काम. पेशे से टीचर.
  • विक्की शर्मा: हरियाणा के हिसार का रहने वाला. काफ़ी समय से गुरुग्राम में रह रहा था. लॉकडाउन के बाद नौकरी छूट गई.

इंडिया टुडे से जुड़े अरविंद ओझा की रिपोर्ट के मुताबिक, पकड़े गए सभी आरोपियों की विचारधारा एक जैसी है. वो बार-बार एक ही बात कह रहे हैं: बेरोज़गारी, किसानों की समस्याओं और मणिपुर संकट जैसे मसलों पर सरकार को ध्यान दिलाना चाहते थे. हालांकि, जांच एजेंसी पूरी तरह इस बात पर यक़ीन नहीं कर रही है. वो पता लगा रही हैं कि कहीं ये आरोपी किसी संगठन के इशारे पर तो काम नहीं कर रहे हैं.

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बेरोज़गारी एक प्रमुख बिंदु बनकर सामने आ रहा है. ज़ाहिर तौर पर देश में एक बड़ा चैलेंज है. आए दिन विरोध प्रदर्शन होते हैं. कभी विपक्ष ये मुद्दा उठाता है, कभी छात्र सड़कों पर उतरते हैं. तो जिन राज्यों से ये आरोपी आते हैं, उसकी स्थिति भी देख लेते हैं.

पहले दो-एक बेसिक बातें. बेरोज़गार किसे कहा जाएगा? उन वर्कर्स को, जो काम करने में सक्षम हैं और इच्छुक हैं, लेकिन उनके पास काम नहीं है. सक्षम हैं कि नहीं? इसकी पैमाइश ऐसी होती है कि अमुक काम के लिए जो क्वॉलिफ़िकेशन चाहिए, वो है या नहीं. मसलन, इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, डिग्री है, लेकिन कोई काम नहीं. 

किसी राज्य या देश में बेरोज़गारी मापने के लिए होती है बेरोज़गारी दर. अंग्रेज़ी में, unemployment rate. कुल लेबर फ़ोर्स में बेरोज़गार कितने हैं, उससे तय होता है. दर ज़्यादा = बेरोज़गार ज़्यादा.

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पहले सरकार बेरोज़गारी के आंकड़ें जारी करती थी. अब नहीं करती. इसीलिए ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों का सहारा लेना पड़ता है. अर्थव्यवस्था और रोज़गार पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग ऑफ़ इंडियन इकॉनमी (CMIE) हर महीने बेरोज़गारी से संबंधित रिपोर्ट जारी करती है. अक्टूबर, 2023 के आंकड़ों के मुताबिक़, भारत की बेरोज़गारी दो साल के सबसे बदतर 10.09% पर पहुंच गई है. 10.09 का मतलब, 1000 लोगों में 100 लोगों के पास काम नहीं है. ये आंकड़ा मामूली लग सकता है, मगर दशमलव के आगे छोटी से छोटी संख्या बहुत बड़ा असर डालती है.

मैक्रो-टेंड्स नाम की वेबसाइट ने बीते 30 सालों के आंकड़ों के आधार पर चार्ट बनाए हैं. इसमें हम आपको दो आंकड़े दिखा रहे हैं. बीते 20 सालों के (2004-24) और बीते 10 सालों के (2014 से 24).

चार्ट 1: 2004 से 2022.
चार्ट 2: 2014 से 2022.

अब एक-एक कर उन राज्यों की स्थिति भी टोह लेते हैं, जहां से ये आरोपी आते हैं.

उत्तर प्रदेश: जनवरी, 2023 में बेरोज़गारी दर - 4.2%. उस समय देश के हालात (7.1%) से काफ़ी कम. जनवरी से अक्टूबर आते-आते CMIE ने छापा कि ग्रामीण बेरोज़गारी दर 6.2% से बढ़कर 10.8% हो गई, शहरों में 8.4%. 

उत्तर प्रदेश की रोज़गार योग्यता दर देश में सबसे ज़्यादा है – 72.5%. रोज़गार योग्यता दर या employability rate मतलब एक औसत ग्रैजुएट व्यक्ति अपनी फ़ील्ड में नौकरी पाने के लिए कितना योग्य है. उत्तर प्रदेश का ग्रैजुएट सबसे योग्य है, लेकिन हालिया आंकड़ें बताते हैं: 15 से 24 साल आयुवर्ग में बेरोज़गारी दर 10.1 फ़ीसदी हो गई. माने सूबे के वर्क फ़ोर्स में युवा भागीदारी घट रही है. CMIE के महेश व्यास का तर्क है:

इस आयु वर्ग के लोगों में ज़्यादातर वो लोग होते हैं, जो पढ़ाई के तुरंत बाद नौकरी करने आते हैं. अगर ये लोग मार्केट में नहीं आ रहे, मतलब वो बाज़ार की स्थिति से ख़ुश नहीं हैं. और, काम न करने या कहीं बाहर काम करने जा रहे हैं.

हालांकि, सबसे हालिया पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे (PLFS) कहता है कि 2017-18 से 2022-23 के बीच बेरोज़गारी की स्थिति काफ़ी बेहतर हुई है.

हरियाणा: देश में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी दर हरियाणा में है: 37.4%. माने 1000 में से 374 योग्य और इच्छुक अभ्यर्थियों के पास रोज़गार नहीं है. ये आंकड़ा जनवरी, 2023 में आया था. विपक्ष की ओर से मनोहरलाल खट्टर सरकार के ‘कौशल रोजगार निगम’ पर सवाल उठाए गए. इस योजना के ज़रिए खट्टर सरकार राज्य के बेकार लोगों को एक साल की अस्थायी नौकरियां देती है. इसके अलावा एक स्कीम के तहत बेरोज़गारी भत्ता भी दिया जाता है. पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे में भी यही आया कि राज्य की स्थिति बहुत ख़राब है. 

राजस्व और प्रति व्यक्ति आय के लिहाज़ से हरियाणा एक समृद्ध राज्य है. बावजूद इसके, ये स्थिति है. आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि हरियाणा में एक आर्थिक संकट है. इंडस्ट्री की ज़रूरतों और स्किल डेवलपमेंट के बीच अंतर है. इससे रोज़गार योग्यता दर कम है. फिर अनियमित मॉनसून, बढ़ती आबादी, बढ़ती महंगाई और बढ़ती उपभोक्ता मांग की वजह से बोकारी दर भी बढ़ रही है. 

कर्नाटक: जनवरी 2016 और मार्च 2023 के बीच - लगभग 85-87 महीनों तक - प्रदेश की बेकारी दर राष्ट्रीय औसत से कम थी. मार्च, 2023 में जब राष्ट्रीय औसत 7.8% था, कर्नाटक में बेरोज़गारी दर 2.3% थी. लेकिन सितंबर-दिसंबर 2022 में राज्य की युवा आबादी (15-24 वर्ष) की दर बहुत ज़्यादा थी – 22.1%. अब वापस कुछ स्थिरता आई है, लेकिन युवाओं का मार्केट में न आना एक चिंता का विषय है.

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महाराष्ट्र: डेटा प्लेटफ़ॉर्म नोएमा के मुताबिक़, मार्च 2023 में महाराष्ट्र में बेरोज़गारी दर 5.54% रही. हाल के महीनों में राज्य में काफ़ी उतार-चढ़ाव आए हैं, लेकिन अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के बीच बेरोज़गारी बढ़ी ही है.

राज्य में प्रति व्यक्ति आय लगभग ₹2,42,247 का अनुमान है. माने एक दिन के 665 रुपये.

बिहार: CMIE के आंकड़े के अनुसार, दिसंबर 2022 में बिहार की बेरोज़गारी दर 19.1% थी. पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे (PLFS) के निष्कर्ष बताते हैं कि बिहार में लेबर-पॉपुलेशन अनुपात सबसे कम है –  25.6%. यानी कामगार आबादी, कुल आबादी का लगभग एक-चौथाई है. 

बिहार में प्रति व्यक्ति क़रीब 54,110 रुपये है. महीने के 4,509 रुपये; दिन का 148 रुपया. इतनी ख़राब अर्थ और बेकारी के पीछे अर्थशास्त्री एक बड़ी वजह बताते हैं, उद्योगों की कमी. राज्य के आर्थिक सर्वे ने साफ़ संकेत दिए हैं कि बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि और संबद्धित क्षेत्र ही आय का मुख्य स्रोत हैं. फ़ैक्ट्रियां बहुत कम हैं. जो थीं, अधिकतर बंद हो गईं. कम रोज़गार है, सो राज्य छोड़ कर जाना पड़ता है. फिर काम करने वाली आबादी पलायन कर जाती है, तो कंपनियां निवेश में झिझकती हैं. एक तरह का दुष्चक्र बन गया है.

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सरकार को चाहिए कि वो युवाओं को इसी दुष्चक्र से निकाले. उन्हीं के राज्यों में उन्हें ज़्यादा मौक़े और बेहतर जीवन स्तर मुहैया हो. जैसा अर्थशास्त्री कहते हैं, खेती की स्थिति देखते हुए छोटे उद्योग का एक मज़बूत नेटवर्क विकसित करे. बड़े उद्योगों में जगह-ज़रूरत देख कर निवेश करे. और, अर्थव्य्वस्था को 5-10 ट्रिलियन तक पहुंचाने के साथ एक न्यायसंगत वितरण का सिस्टम तैयार करे. ताकि आय और मौक़ों की ग़ैर-बराबरी न हो.

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