The Lallantop
X
Advertisement

मणिपुर में बीरेन सिंह सरकार ने मैतेई बहुल इलाक़ों में AFSPA क्यों नहीं लगाया?

राज्य के 19 थाना क्षेत्रों को रियायत देने फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं, कि एन बीरेन सिंह सरकार ने चुन-चुन कर मैतेई-बाहुल इलाक़ों को रियायत दी है.

Advertisement
Biren Singh govt imposed AFSPA in Manipur.
1980 से ही मणिपुर के ज़्यादातर हिस्सों में आफ़स्पा लागू था. इसके तहत ये 19 थाने भी थे, जो अब बाहर हैं. (फोटो - इंडिया टुडे)
pic
सोम शेखर
28 सितंबर 2023 (Updated: 29 सितंबर 2023, 11:36 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

बीते रोज़ - 27 सितंबर को - ख़बर आई थी कि मणिपुर में मौजूदा क़ानून व्यवस्था के हालात देखते हुए राज्य सरकार ने पूरे राज्य को  'अशांत क्षेत्र' (disturbed area) घोषित कर दिया है. 19 थाना क्षेत्रों को छोड़कर. अब इन्हीं 19 थाना क्षेत्रों के रियायत देने फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं, कि क्या एन बीरेन सिंह सरकार ने चुन-चुन कर मैतेई-बाहुल इलाक़ों को रियायत दी है? 

राज्य सरकार की अधिसूचना के मुताबिक़, मणिपुर में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ स्पेशल पावर ऐक्ट (AFSPA) अगले छह महीनों के लिए बढ़ा दिया गया है. AFSPA के तहत भारतीय सेना को अशांत क्षेत्रों में कार्रवाई की विशेष शक्तियां मिली होती हैं. मसलन, बिना वॉरंट के भी कहीं जाकर छानबीन या गिरफ़्तारी की जा सकती है. और, इन शक्तियों के इस्तेमाल के लिए भारतीय सेना पर केंद्र सरकार की मंज़ूरी के बिना कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती. 19 पुलिस थाना क्षेत्रों को रियायत दी गई है. कौन-कौन से थाने? इम्फाल, इम्फाल सिटी, लाम्फेल, सिंग्जामेई, सेकमई, लामसान्ग, पेस्टल, वांगोई, पोरोमट, हिंगैंग, लामाई, इरिबुंग, लेमाखोंग, थोबल, बिष्णुपुर, नंबोल, मोइरंग, काकचीन और जिरबाम.

टेलिग्राफ़ अख़बार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, जिन इलाक़ों में AFSPA नहीं लगाया गया है, मई में हिंसा फूटने के बाद से सबसे ज़्यादा हिंसा यहीं हुई. राज्य में मारे गए 175 लोगों में से 80 फ़ीसदी लोगों की मौत भी इन्हीं जगहों में हुई है. इम्फाल, थोबल और बिष्णुपुर का नाम तो अक्सर ही हिंसा की रिपोर्ट्स में दिखता रहा है. फिर सवाल ये है कि बीरेन सिंह सरकार ने इन इलाक़ों को क्यों छोड़ा?

ये भी पढ़ें - छात्रों के मर्डर के बाद फिर से मणिपुर में हिंसा, इम्फाल में CM के घर की तरफ बढ़ी भीड़!

इसमें एक तथ्य और है. 1980 से ही मणिपुर के ज़्यादातर हिस्सों में आफ़स्पा लागू था. इसके तहत ये 19 थाने भी थे. और, इसी साल की पहली अप्रैल को इन्हीं 19 थानों को छोड़कर पूरे राज्य से AFSPA हटाया गया था. आधिकारिक सूत्रों के हवाले से छपा है कि राज्य में हिंसा भड़कने का एक बड़ा कारण ये फै़सला भी था. अब जब हिंसा भड़की, वापस AFSPA लगाया गया है तो इन इलाक़ों को बाहर रख दिया गया. 

राज्य के सुरक्षा तंत्र से जुड़े एक सूत्र ने टेलीग्राफ़ के बताया कि मणिपुर में क़ानून व्यवस्था तभी स्थिर हो सकती है, जब पूरे राज्य में अफस्पा लागू किया जाए. उन्होंने ये भी बताया कि सरकार को ये सलाह पहुंचा दी गई थी. मगर फिर भी उन्होंने कुछ हिस्सों छोड़ दिया. इसके पीछे कोई साफ़ वजह सूत्र के पास नहीं थी.

ये भी पढ़ें - मणिपुर हिंसा के पीछे म्यांमार के आतंकी संगठनों का हाथ? 

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, राज्य में कुकी, ज़ोमी और नागा जनजातियों के प्रतिनिधि समूहों ने भी बीरेन सिंह सरकार की अधिसूचना पर कड़ी आपत्ति जताई है. उनका आपत्ति है कि राज्य में केवल पहाड़ी ज़िलों में AFSPA लगाया गया है और ये फ़ैसला रणनीतिक से ज़्यादा राजनीतिक है, पक्षपाती है.

बाक़ी, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के कुकी-ज़ोमी समुदायों को निशाना बनाते हुए, क्या-क्या और कितने बयान दिए हैं आपको एक गूगल सर्च में मिल जाएगा. हिंसा की शुरूआत में तो उन्होंने कुकी समुदाय के समूहों को ‘आतंकवादी’ तक कहा था

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: 'इंडिया' या भारत की बहस में मणिपुर का ये सच जानिए

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement