हाईवे पर लगे मील के पत्थर या बोर्ड पर जो दूरी लिखी होती है, वो किस पॉइंट तक की होती है?
बॉर्डर से बॉर्डर की दूरी नापेंगे तब तो बहुत कम हो जाएगी. फिर मैटर क्या है?
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अक्सर मील के पत्थर या बोर्ड पर लिखी दूरी देखकर ये कन्फ्यूजन होता है कि ये दूरी उस शहर के किस पॉइंट तक की है. (सांकेतिक फोटो- PTI)
इसी बात से हमारे दिमाग में एक सवाल आया. एक गफ़लत हुई. और सोचा आज बात इसी पर करते हैं. जब हम किसी नेशनल-स्टेट हाईवे पर या एक्सप्रेस वे पर जाते हैं, तो हमें सड़क किनारे मील के पत्थर लगे दिखते हैं. अंग्रेजी में इन्हें माइलस्टोन कहा जाता है. इन पर लिखा होता है कि फलां शहर यहां से इत्ते किलोमीटर है. लेकिन ये दूरी असल में कहां से कहां तक की होती है? क्या दोनों शहरों के बॉर्डर के बीच की दूरी होती है? या कुछ और माजरा होता है?Delhi Meerut Expressway has now been completed & opened to traffic. We have full filled our promise of reducing travel time between Delhi - Meerut from 2.5 hours to 45 minutes. #PragatiKaHighway
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) April 1, 2021
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उदाहरण से समझिए. मैं कानपुर से लखनऊ के लिए निकलता हूं. घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही मुझे बोर्ड लगा मिलता है. लखनऊ- 80 किमी. तो क्या उस जगह से लखनऊ की दूरी 80 किमी है? नहीं, क्योंकि 80 किमी का ही ये बोर्ड कानपुर में हर जगह लगा है. अब हर जगह से लखनऊ की दूरी 80 किमी तो हो नहीं सकती.फिर कानपुर और लखनऊ के बीच मील के पत्थर पर जो ये 80 किमी की दूरी बताते हैं, वो कहां से कहां तक की है? ये दूरी कैसे तय होती है?
तो क्या कानपुर की सीमा से लखनऊ की सीमा के बीच की दूरी 80 किमी है? ऐसा भी नहीं हो सकता. क्योंकि कानपुर की सीमा ख़त्म होने और लखनऊ की सीमा शुरू होने के बीच की दूरी बमुश्किल 50 से 60 किमी होगी. तुम्हारे भाई ने गाड़ी से नापा हुआ है.
![मील के पत्थरों पर लिखी दूरी कहां से कहां तक की होती है. (सांकेतिक फोटो- PTI) Milestone](https://akm-img-a-in.tosshub.com/sites/lallantop/wp-content/uploads/2021/04/milestone_020421-011123.png)
ये हैं पैरामीटर्स ये जानने के लिए हमने National Highway Authority of India (NHAI) के जयपुर में पोस्टेड एक अधिकारी से बात की. नाम न लिखने की बात पर उन्होंने बताया कि इसको लेकर कोई एक सेट पैरामीटर नहीं है. लेकिन कुछ बातें हैं, जिन्हें ध्यान रखा जाता है.
# पहली बात तो ये रहती है कि दोनों शहरों की जिला अदालत के बीच की दूरी नापी जाए. अधिकतर बड़े शहरों के बीच इसी आधार पर दूरी नापी जाती है और वही मील के पत्थर पर लिखी जाती है.
# इसके बाद आते हैं वो छोटे गांव वगैरह, जहां जिला अदालत तो है नहीं. वहां की दूरी हेड पोस्ट ऑफिस या पंचायत ऑफिस के आधार पर नापी जाती है.
# एक और पैरामीटर होता है. अगर शहर में कोई ऐसा पॉइंट है, जहां दो या अधिक नेशनल हाइवे एक-दूसरे को क्रॉस कर रहे हों, तो उसे ‘ज़ीरो पॉइंट’ मान लिया जाता है. यानी फिर इस शहर से बाकी शहरों की दूरी इसी पॉइंट से नापी जाएगी.
एक और कनपुरिया उदाहरण दागते हैं. हमाए कानपुर में है ऐसा चौराहा. रामादेवी चौराहा. तो अब कानपुर से किसी शहर की दूरी नापनी हो तो यहीं से नापी जाएगी. अब मान लो कि हमें यहां से इलाहाबाद की दूरी नापनी है. ज़रूरी नहीं है, इलाहाबाद में भी ऐसा ही चौराहा हो. तो कानपुर के इस ज़ीरो पॉइंट से इलाहाबाद के जिला न्यायालय की दूरी नाप ली जाएगी. वहीं पत्थर पर लिख उठेगी.
तो इन 2-3 पैरामीटर के आधार पर मील के पत्थर पर लिखी जाने वाली दूरी तय होती है.
अब जब हम इस स्टोरी के लिए खोज-पड़ताल कर रहे थे, तो एक और काम की चीज दिख गई. वो भी बताते चलते हैं क्योंकि आप हमारे दोस्त हो पक्के वाले. मील के पत्थर पर नीचे का भाग तो सफेद ही रहता है. लेकिन ऊपर का हिस्सा अगर पीला है, तो इसका मतलब कि आप नेशनल हाइवे पर हैं. हरा है तो माने स्टेट हाइवे पर हैं, काला है तो आप शहर/जिले की सड़क पर हैं. थैंक मी लेटर.