G20 के देश: दुनिया के सबसे ताक़़तवर देश अमेरिका की कहानी!
अमेरिका की यात्रा का पूंजीवाद से गहरा संबंध है. पूंजीवाद ने देश के आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाई है. इसीलिए अमेरिका को प्रगति और अवसर की कहानियों के साथ नत्थी कर के देखा जाता है.
ये लल्लनटॉप है. और, आप हमारी ख़ास कवरेज G20 360 डिग्री देख रहे हैं. इस सीरीज़ में हम आपका परिचय G20 परिवार के सदस्यों (G20 Countries) से करा रहे हैं. आज कहानी, Land of Opportunities यानी अवसरों की धरती के नाम से मशहूर देश अमेरिका (USA) की.
नक्शेबाज़ीअमेरिका, नॉर्थ अमेरिका महाद्वीप में बसा है. पूरब और पश्चिम में समंदर है. पूरब की तरफ़ अटलांटिक महासागर है, जबकि पश्चिम में प्रशांत महासागर पड़ता है. ज़मीनी सीमा कनाडा और मेक्सिको से मिलती है. अमेरिका 50 राज्यों का संघ है. 48 राज्य एक साथ बसे हैं. 49वां प्रांत हवाई प्रशांत महासागर के बीच में है, जबकि 50वां प्रांत अलास्का महाद्वीप के उत्तरी छोर पर है. अलास्का कभी रूसी साम्राज्य का हिस्सा था. 1867 में अमेरिका ने उसको खरीद लिया था. एरिया के मामले में ये अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य है. इसके अलावा, प्युअर्तो रिको, गुआम और नॉदर्न मेरियाना आईलैंड्स भी अमेरिका का हिस्सा हैं. हालांकि, उन्हें राज्य का दर्जा नहीं मिला है.
अमेरिका की कुल आबादी, लगभग 34 करोड़ है.
73 फीसदी से अधिक लोग ईसाई हैं. बाकी में अलग-अलग धर्म आते हैं.
राजधानी वॉशिंगटन डी.सी. है.
हवाई रास्ते से नई दिल्ली से वॉशिंगटन की दूरी 12 हज़ार किलोमीटर से अधिक है.
कुछ और प्रमुख शहरों के भी नाम बता देते हैं - न्यूयॉर्क, लॉस एंजिलिस, लास वेगास, बॉस्टन आदि.
हिस्ट्री का क़िस्सा> अमेरिका में इंसानी सभ्यता के निशान कम से कम 15 हज़ार बरस पुराने हैं. बाहरी दुनिया से उनका साबका पहली बार 1492 में पड़ा. एक इतालवी जहाजी हुए, क्रिस्टोफ़र कोलम्बस. उन्हें एशिया पहुंचने का एक छोटा रास्ता तलाश करने की धुन चढ़ी थी. स्पेन के पूर्वी हिस्से से होते हुए. कोलंबस को असल में भारत और चीन पहुंचना था. लेकिन वो अमेरिका पहुंच गए. इस तरह अमेरिका यूरोप की नज़र में आया. फिर और भी देश आए. 1565 में स्पेन ने पहली कॉलोनी बसाई. सेंट ऑगस्टाइन के नाम से. इसे अब फ़्लोरिडा के नाम से जाना जाता है. ब्रिटिशर्स ने नॉर्थ अमेरिका में पहली कॉलोनी 1607 में बनाई. वर्जीनिया में.
> 18वीं सदी के मध्य तक अधिकांश इलाकों पर ब्रिटेन का नियंत्रण हो चुका था. लेकिन वे स्थानीय लोगों को बुनियादी अधिकार नहीं देना चाहते थे. 1775 में आज़ादी की लड़ाई शुरू हुई. एक बरस बाद कॉलोनियों ने आज़ादी का ऐलान कर दिया. 1783 में ब्रिटेन ने हार मान ली. 1789 में जॉर्ज वॉशिंगटन पहले राष्ट्रपति बने. जिन अमेरिकियों को जीत मिली, वो यूरोप से आकर बसे लोग ही थे. काले लोगों को आज़ादी नहीं मिली, क्योंकि ग़ुलामी की प्रथा जारी रही. आदिवासी, जिन्हें रेड इंडियन कहा गया, उनके लिए भी इस आज़ादी के मायने अधूरे रहे.
> 19वीं सदी में अमेरिका ने तेज़ी से तरक्की. 20वीं सदी में दो विश्वयुद्धों में हिस्सा लिया. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप का दम टूट चुका था. उन्होंने बेहिसाब बर्बादी झेली थी. इसके बरक्स पर्ल-हार्बर को छोड़कर अमेरिकी ज़मीन पर कोई हमला नहीं हुआ था. उसकी फ़ैक्ट्रियां बची थीं. उसके संस्थान सुरक्षित थे. विश्व युद्ध के बाद वो महाशक्ति बनकर उभरा. उसने पूरी दुनिया को अपने पाले में खींचने की कोशिश की. फिर उसे सोवियत संघ से चुनौती मिली. ये चुनौती कोल्ड वॉर में बदली. 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया. उसके बाद अमेरिका इकलौती महाशक्ति बनकर रह गया. आज के समय में रूस और चीन उसे चुनौती देने की कोशिश में लगे हैं.
> इस दौर में राजनेता आते गए और राजनीति चलती गई. लेकिन अमेरिका को अवसर की ज़मीन क्यों कहा जाता है? आपने फ़िल्मों में सुना होगा, द ग्रेट अमेरिकन स्टोरी. असल में ये एक रूपक है. अमेरिका के इतिहास और आदर्शों का एक रूपक. अमेरिका की यात्रा का पूंजीवाद से गहरा संबंध है. संयुक्त राज्य अमेरिका एक पूंजीवादी देश है और पूंजीवाद ने देश के आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाई है. पूंजीवाद के साथ अमेरिका में पर्याप्त उदारवाद भी है, इसीलिए अमेरिका को प्रगति और अवसर की कहानियों के साथ नत्थी कर के देखा जाता है. ऐसी ही एक और कहावत है - द अमेरिकन ड्रीम. ये भी एक विश्वास है कि कोई भी, कहीं से भी आता हो. अमेरिका में उसके पास सफलता के पर्याप्त मौक़े होंगे.
पैसे वाली बातअमेरिका की करेंसी डॉलर है. इंटरनैशनल ट्रेड की सबसे प्रभावशाली और सबसे ज़्यादा चलने वाली करेंसी.
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इंटरैनशनल मॉनिटरी फ़ंड (IMF) की वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक, जीडीपी 26.85 ट्रिलियन डॉलर है. भारतीय रुपयों में लगभग 2 हज़ार 228 लाख करोड़.
प्रति व्यक्ति आय लगभग 67 लाख रुपये है. भारत से तकरीबन 32 गुना ज्यादा.
लेन-देनसाल 2022-23 में भारत और अमेरिका के बीच कुल व्यापार हुआ, 10 लाख करोड़ का.
भारत ने मोती, कीमती पत्थर, सिक्के और धातुएं, दवाइयां, मशीनरी और बॉयलर मिलाकर कुल 6 लाख 49 हजार करोड़ का सामान बेचा.
भारत ने मिनरल फ्यूल, एयरक्राफ्ट, ऑर्गैनिक केमिकल्स वग़ैरह मिलाकर कुल 4 लाख 16 हजार करोड़ का सामान ख़रीदा.
सिम्पल मैथ्स से पता चलता है कि हमने अमेरिका को सामान ज्यादा बेचा, ख़रीदा कम. तो हुआ फायदा, जिसे व्यापार की भाषा में कहते हैं, ट्रेड सरप्लस. ये फायदा था कुल 2 लाख 33 हजार करोड़ रूपये का.
सामरिक रिश्ते- सबसे पहले आया भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का दौर. कोल्ड वॉर शुरू हो चुका था. उन्होंने अमेरिका या सोवियत संघ के दबाव में आने से मना कर दिया. आगे चलकर नॉन-एलाइंड मूवमेंट (NAM) की नींव भी रखी. इसका असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ा. अमेरिका ने भारत की बजाय पाकिस्तान को तरजीह दी. इस बीच, अक्टूबर, 1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू अमेरिका के दौरे पर गए. फिर दिसंबर 1959 में, भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने ड्वाइट डी. आइजेनहॉवर. माने संबंध टू-ऐंड-फ़्रो रहे. तबसे अब तक सात अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आ चुके हैं, इसी कड़ी में आठवें राष्ट्रपति हैं बाइडन, बतौर राष्ट्रपति उनकी ये पहली यात्रा है. जब वो G-20 के लिए भारत आ रहे हैं.
- अच्छा, ये तो हुई अमेरिका के राष्ट्रपतियों के भारत आने की बात. अब बात भारत के प्रधानमंत्रियों की. दूसरा बड़ा दौर आता है, इंदिरा का दौर. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरी दुनिया में घूम-घूमकर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ समर्थन जुटा रही थीं. लेकिन अमेरिका ने पाकिस्तान को रोकने की कोशिश नहीं की. इंदिरा के दौर में ही पोखरण में भारत का पहला परमाणु परीक्षण हुआ. अमेरिका के विरोध के बावजूद, भारत के न्यूक्लियर टेस्ट करने के चलते दोनों देशों में तल्खी बढ़ गई.
- इंदिरा गांधी के हार जाने के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अमेरिका के साथ दोस्ती बढ़ाई. मोरारजी के बाद 1985 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अमेरिका गए थे. राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मिले थे और इसी दौरे में उन्होंने कांग्रेस के जॉइंट सेशन में भाषण भी दिया था. राजीव भी अमेरिका से दोस्ती के पक्ष में थे.
- नरसिम्हार राव के वक़्त ये संबंध बेहतर हुए. 1991 के उदारीकरण के बाद भारत का मार्केट दुनिया के लिए खुला. इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों की संभावनाएं खुलीं.
- वाजपई के दौर में भारत ने पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया. पिछली बार की तरह, इस बार भी अमेरिका ख़िलाफ़ था. अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. इसी बीच बिल क्लिंटन भारत आए. उन्होंने भारत पर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील देने का भरोसा दिया. 9/11 के हमले के बाद भारत ने अमेरिका को 'वॉर ऑन टेरर' में सहयोग देने की बात कही. इसके तुरंत बाद जॉर्ज बुश की सरकार आई. और उन्होंने आर्थिक प्रतिबंधों में और ढील दी.
- मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील का मसौदा तैयार हुआ. इसके तहत भारत ने सिविल और मिलिटरी न्यूक्लियर फ़ैसिलिटीज़ को अलग करने पर सहमति दे दी. सिविल फ़ैसिलिटीज़ को IAEA की निगरानी में रख दिया गया. अमेरिकी संसद ने अक्टूबर 2008 में इस पर मुहर लगा दी. यहां से भारत और अमेरिका प्रगाढ़ होते गए. नवंबर 2008 में जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ, तब मारे गए 166 में 6 अमेरिकी नागरिक भी थे. तब इस हमले की जांच में दोनों देशों ने साथ मिलकर काम किया.
- 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छह बार अमेरिका जा चुके हैं. जून 2023 में पीएम मोदी को स्टेट विज़िट पर बुलाया गया था. वो तीसरे भारतीय नेता हैं, जिन्हें ये सम्मान मिला है. सबसे पहले 1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन और उनके बाद 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह राजकीय दौरे पर गए थे.
पॉलिटिकल सिस्टमअमेरिका एक संघीय गणराज्य है. माने एक केंद्रीय सरकार होती है और 50 राज्यों की अलग-अलग सरकारें हैं. सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति करता है, जिसे हर चार साल में जनता चुनती है.
संसद के दो सदन हैं - सीनेट और हाउस ऑफ़ रेप्रेज़ेंटेटिव. सीनेट में 100 कुल सदस्य हैं. हर राज्य से दो. हाउस ऑफ़ रेप्रेज़ेंटेटिव में में 435 सदस्य होते हैं, जिन्हें हर दो साल में जनता चुनती है.
सुप्रीम कोर्ट में कुल नौ न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं और सिनेट पुष्टि करती है.
अमेरिका का राजनीतिक ढांचा संतुलन के सिद्धांत पर चलता है. राष्ट्रपति, कांग्रेस से पारित क़ानूनों पर वीटो कर सकते हैं. लेकिन अगर कांग्रेस के पास दो-तिहाई बहुमत है, तो वो वीटो रद्द कर सकती है. अगर कांग्रेस या राष्ट्रपति द्वारा पारित क़ानून असंवैधानिक पाए जाएं, तो सर्वोच्च न्यायालय उन्हें रद्द कर सकता है. माने तीनों एक-दूसरे के तड़ पर हैं.
सरकार की कमानअमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन हैं.
जो बाइडन 2021 से अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले बराक ओबामा के तहत 2009 से 2017 तक उपराष्ट्रपति थे.
डेमोक्रेटिक पार्टी से हैं. उनकी राजनीति को लेफ़्ट ऑफ़ सेंटर मानी जाती है. बाइडन की राजनीतिक स्थिति समय के साथ विकसित हुई है, लेकिन उन्होंने लगातार उन नीतियों की वकालत की है, जो आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देती हों.
राष्ट्रपति बनने के बाद से बाइडन ने इनफ़्रास्ट्रक्चर, नौकरी और हिजरत पर कई प्रमुख क़ानून बनाए हैं. जलवायु संकट से निपटने, पेरिस समझौते में फिर से शामिल होने और अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध समाप्त करने के लिए भी कदम उठाए हैं. हालांकि, सफलताओं के साथ उनकी आलोचनाएं भी हैं. उनके आलोचकों का तर्क है कि उन्होंने जीवन-यापन की बढ़ती क़ीमत, मुद्रास्फीति और अपराध के संदर्भ में पर्याप्त काम नहीं किया है. अफ़ग़ानिस्तान से वापसी के उनके प्रबंधन की भी आलोचना की जाती है. वाम और दक्षिण, दोनों ओर से आलोचना का सामना करना पड़ता है. लेकिन वो अपने एजेंडे के प्रति प्रतिबद्ध हैं, जो उनके बकौल है - न्यायसंगत अमेरिका बनाना.
फ़ैक्ट्सअमेरिका क्षेत्रफल के हिसाब से रूस और कनाडा के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. दुनिया की सबसे लंबी तट-रेखा है. दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान - 25,000 वर्ग मील में फैला मोहावे रेगिस्तान है. दुनिया की सबसे बड़ी झील 31,700 वर्ग मील में फैली लेक सुपीरियर यहीं है. दुनिया की सबसे बड़ी नदी प्रणाली - मिसिसिपी नदी प्रणाली - भी यहीं है.
अमेरिका में रहने वाले 35 करोड़ से ज़्यादा लोग 300 से अधिक भाषाएं बोलते हैं.
अमेरिका विश्व का सबसे बड़े रक्षा बजट के साथ विश्व की सबसे ऐडवांस्ड सैन्य ताक़त है.
संयुक्त राष्ट्र, नाटो और विश्व व्यापार संगठन जैसे संस्थानों का संस्थापक रहा है अमेरिका.
पर्यटक आकर्षण तो है ही. हर साल 8 करोड़ से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आते हैं. इसमें कई दुनिया प्रसिद्ध स्थल हैं, जिनमें स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी, वाइट हाउस और गोल्डन गेट ब्रिज शामिल हैं.
वीडियो: दुनियादारी: US राष्ट्रपति जो बाइडन के ख़िलाफ़ किसने जांच बिठा दी, पूरी कहानी क्या है?