पूर्व आर्मी चीफ को मिल गया चीन का 'असली नक्शा', पूरी कहानी क्या निकली?
इस नक्शे में चीन को कई टुकड़ों में दिखाया गया है और इसमें पड़ोसी देश की पुरानी गुंडागर्दी का इतिहास दिखता है.
भारत और चीन के बीच नक्शा विवाद पुराना है. वो अरुणाचल प्रदेश के एक हिस्से को अपने नक्शे में दिखाता है, जो ज़ाहिरन भारत को नागवार है.
पर इस बीच एक और नक्शे की चर्चा हो रही है. पूर्व आर्मी चीफ मनोज नरवणे ने चीन का एक 'असल' नक्शा सोशल मीडिया पर शेयर किया है जिसमें चीन की पुरानी गुंडागर्दी का इतिहास दिखता है.
उन्होंने X पर एक नक्शा शेयर किया और लिखा,
'आख़िरकार चीन का नक्शा मिल गया, जैसा असल में है.'
इस नक्शे में कई क्षेत्रों को 'चीन के क़ब्ज़े' के रूप में दिखाया गया है. इनमें लद्दाख और तिब्बत सहित दूसरे इलाक़े भी शामिल हैं. यह नक्शा कटाक्ष करता है कि चीन दरअसल कब्ज़ाए हुए क्षेत्रों का समूह है.
हालांकि मनोज नरवणे की बात को केवल कटाक्ष की तरह नहीं लिया जा सकता. वो उन तीन सेवा प्रमुखों में हैं, जो हाल ही में भारत और ताइवान के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग पर चर्चा के लिए ताइवान गए थे.
चीन के नक्शे की कहानी28 अगस्त को चीन ने अपना 2023 का 'स्टैंडर्ड मैप' जारी किया था. जिसमें ताइवान, दक्षिण चीन सागर, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीनी क्षेत्रों के रूप में शामिल किया गया था. इस पर भारत सरकार ने आपत्ति ज़ाहिर की और अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर दावा करने वाले नक्शे को ख़ारिज किया. पलटकर चीन ने अपने मैप को डिफ़ेंड किया. कहा कि उनके क़ानून के हिसाब से ये रूटीन प्रक्रिया है और इसपर ज़रूरत से ज़्यादा चर्चा नहीं होनी चाहिए.
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कुछ दिन पहले ही जापान, मलेशिया, वियतनाम और फिलीपींस जैसे कई आसियान (ASEAN) देशों ने भी चीन के क्षेत्रीय दावे और उनके ‘स्टैंडर्ड मैप’ की निंदा की थी. इन देशों का कहना है कि चीन के दावों को देखते हुए दक्षिण-चीन सागर पर एक आचार संहिता लगनी चाहिए.
इसलिए पहले समझ लेते हैं कि चीन के इस नक्शे की कहानी क्या है? जिन-जिन क्षेत्रों को क़ब्ज़े में दिखाया गया है, उनकी कहानी क्या है?
डिस्क्लेमर: ये सारे क्षेत्र अलग-अलग कालखंडों में चीन के अधीन आए. सब क़ब्ज़े का हिस्सा नहीं थे. अलग-अलग तरीक़ों से चीन का हिस्सा बने.
दक्षिणी मंगोलियामंगोलिया एक देश है. दक्षिण मंगोलिया, चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र. दक्षिण मंगोलिया को भीतरी मंगोलिया (inner-Mongolia) भी कहा जाता है.
1911 की मंगोलियाई क्रांति में मंगोलिया ने चिंग वंश से आज़ादी का एलान किया. बोगद ख़ान के नेतृत्व में यह एक राजतंत्र बन गया. हालांकि, चीन गणराज्य ने चिंग डायनेस्टी के आधीन आने वाले सभी इलाक़ों पर दावा किया और मंगोलिया को अपना इलाक़ा माना.
चीनी सरकार ने - जिसे तब बेयांग सरकार कहा जाता था - मंगोलिया में चिंग राजवंश के ख़िलाफ़ विद्रोह को दबाने के लिए सेना भेजी. मंगोलिया की सेना चीनी सैनिकों को खदेड़ने में सफल रही और मंगोलिया ने रूस की मदद से 1921 में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. हालांकि, दक्षिणी मंगोलिया में चीनी सैनिक घुस आए थे. फिर दूसरे विश्व युद्ध के बाद, चीनी कम्युनिस्टों ने सोवियत कम्युनिस्टों के समर्थन से ‘इनर मंगोलिया’ पर कब्ज़ा कर लिया और 1947 में इनर मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना कर दी.
भीतरी मंगोलिया में चीनी सरकार की नीतियों को लेकर चिंताएं रहती हैं. चीन पर आरोप है कि वो एथनिक मंगोलियन लोगों पर चीनी भाषा और संस्कृति थोपने की कोशिशें करता रहता है.
तिबत्त1950 में चीन ने तिब्बत पर क़ब्ज़ा शुरू किया. माओ त्सेतुंग के नेतृत्व में चीनी सरकार ने देश को दलाई लामा के शासन से "मुक्त" कराने के लिए तिब्बत में सेना भेजी. तिब्बतियों ने विरोध किया लेकिन शांतिप्रिय लोग थे. बहुत प्रभावी सेना नहीं थी, सो हार गए. 1959 में तिब्बत के लोग फिर से लड़े, लेकिन उस विद्रोह को भी कुचल दिया गया और दलाई लामा भारत भाग आए.
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1965 में चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया और अपना शासन थोप दिया. तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत के धर्मशाला में है. अक्सर तिब्बती लोगों के दमन और भेदभाव की ख़बरें आती रहती हैं.
युन्नानयुन्नान चीन के दक्षिण-पश्चिम में स्थित प्रांत है. युन्नान सदियों तक अलग-अलग चीनी राजवंशों का हिस्सा रहा, जैसे- हान, तांग, मिंग और चिंग राजवंश. इस क्षेत्र ने स्वायत्त और क्षेत्रीय शासन भी देखा.
लेकिन सबसे लंबे समय तक युन्ना पर युआन राजवंश का शासन रहा. ब्रिटिश भारत के 1909 के एक नक्शे में युन्नान की दक्षिण और पश्चिमी सीमाएं दिखती हैं. 1911 में चिंग राजवंश के पतन के बाद, युन्नान स्थानीय क़बीलों के नियंत्रण में आ गया. उनके पास अपनी स्वायत्तता थी क्योंकि क्षेत्र बहुत सुदूर था.
दूसरे चीन-जापानी युद्ध (1937-1945) में चीनी सेना ने युन्नान को अपना ठिकाना बनाया. युद्ध के उन आठ बरसों में जापान लगातार यहां बमबारी करता रहा. 1945 में रिपब्लिक की स्थापना से चीन की दक्षिण-पश्चिमी सीमाओं पर कुछ निश्चितता आई. इससे युन्नान पर पहले के अस्पष्ट दावे चीनी राज में तब्दील हो गए.
पूर्वी तुर्किस्तानपूर्वी तुर्किस्तान, उत्तर-पश्चिमी चीन का एक क्षेत्र है. उइगरिस्तान या झिंजियांग भी कहते हैं. यहां मुख्य रूप से तुर्क-भाषी मुस्लिम अल्पसंख्यक उइगर लोगों की बसावट है. 1949 में गणतंत्र की स्थापना के बाद चीन ने पूर्वी-तुर्किस्तान पर क़ब्ज़ा शुरू किया.
चीनी सरकार का दावा है कि पूर्वी-तुर्किस्तान चीन का अभिन्न अंग है. लेकिन उइगर समुदाय लंबे समय से आज़ादी की मांग कर रहा है. चीनी शासन के ख़िलाफ़ कई सशस्त्र विद्रोह हुए हैं. इनमें से सबसे हालिया घटना 2009 में हुई थी. रिपोर्ट्स कहती हैं कि चीनी सरकार ने उइगर स्वतंत्रता आंदोलन को कुचला है. बड़े पैमाने पर हिरासत, यातना और जबरन मज़दूरी की ख़बरें आती रहती हैं.
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कुछ लोगों का मानना है कि पूर्वी तुर्किस्तान पर चीन का कब्ज़ा उइगर लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है. कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि चीनी शासन से क्षेत्र में स्थिरता बनी रहती है. आतंकवाद और अलगाववाद से निपटने की जुगत की जाती है.
मनचूरियामनचूरिया मांचू लोगों की मातृभूमि है. चिंग राजवंश (Qing Dunasty) मूलतः यहीं से आया था. इसकी सीमा की दो परिभाषाएं हैं. पहली, मनचूरिया पूरी तरह से वर्तमान चीन में आता है. दूसरी, पूर्वोत्तर चीन और रूसी-पूर्व के बीच बंटा हुआ है. दूसरी परिभाषा के हिसाब से रूसी हिस्से को बाहरी मनचूरिया (या रूसी मनचूरिया) कहते हैं. वहीं, चीनी हिस्से को मनचूरिया कहते हैं.
1931 में जापान ने मनचूरिया पर आक्रमण किया. वहां अपना एक कठपुतली राज्य बनाया, मानचुको. दूसरे चीन-जापान युद्ध में मनचूरिया में कई लड़ाइयां लड़ी गईं. चीन अपने दावे को जीत नहीं पा रहा था. अंत में सोवियत संघ ने चीन का साथ दिया. मनचूरिया पर आक्रमण किया और 1946 में चीन को मनचूरिया वापस कर दिया गया. हालांकि, ये इलाक़ा आज भी चीन और जापान के बीच तनाव का एक बड़ा कारण है. अब भी कई मुद्दे सुलझे नहीं हैं. मसलन, जापानी युद्ध अपराधियों की स्थिति और मंचूरिया में जापानी संपत्ति का स्वामित्व.
हालांकि, मनचूरिया के लोगों का एक दावा बहुत दिलचस्प है. चूंकि चिंग साम्राज्य के लोग मनचूरिया से ही आए थे, इसीलिए उनका कहना है कि वो किसी के आधीन नहीं; उन्होंने ही समस्त चीन पर राज किया.
हॉन्ग-कॉन्ग156 साल तक अंग्रेज़ो का इस क्षेत्र पर नियंत्रण था. उस दौरान यहां एक अलग राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली विकसित हुई, जो चीन की मुख्य भूमि से अलग थी. 1997 में ये नियंत्रण ख़त्म हुआ. तब चीन को हॉन्ग-कॉन्ग की सत्ता सौंप दी गई.
चीन ‘एक देश, दो प्रणाली’ के सिद्धांत के तहत सरकार और अर्थव्यवस्था के मौजूदा ढांचे को 50 साल तक कायम रखने के लिए सहमत भी हुआ था. हालांकि, ऐसी चिंताएं रही हैं कि चीन हाल के बरसों में हॉन्ग-कॉन्ग की स्वायत्तता को धीरे-धीरे ख़त्म कर रहा है. बीते वर्षों में, चीन के थोपे हुए क़ानूनों के ख़िलाफ़ हॉन्ग-कॉन्ग में कई प्रदर्शन हुए हैं.
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अक्साई चिनअक्साई चिन जम्मू-कश्मीर में उत्तर की ओर है. 1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया. यहां चीन ने तिब्बत और शिंजियांग प्रांत को जोड़ने वाला वेस्टर्न हाइवे बना लिया है जिससे उसका कब्ज़ा और मजबूत हो गया है.
1962 के युद्ध के बाद जब सीज़फायर हुआ, तो उस वक़्त की यथास्थिति को बरकरार रखते हुए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को स्वीकार किया गया. हालांकि दोनों देशों के बीच ये इलाक़ा अब भी विवाद का केंद्र है. ज़्यादा जानकारी इस वीडियो में है:-
काराकोरम-शक्सगामचीन-भारत सीमा विवाद तो चर्चा में रहता है, लेकिन चीन-पाकिस्तान सीमा की बात कम होती है. इसमें एक इलाक़ा है - ट्रांस-काराकोरम क्षेत्र. उत्तर में कुनलुन पर्वत और दक्षिण में कराकोरम चोटियों से घिरा हुआ.
उत्तर में चीन के शिन्जियांग प्रांत और दक्षिण में भारत के जम्मू-कश्मीर से सटा हुआ. पाकिस्तान ने 1963 में इस इलाक़े का प्रशासन चीन को सौंप दिया. तब चीन-पाकिस्तान समझौते के तहत, पाकिस्तान ने शक्सगाम इलाक़े पर चीनी संप्रभुता और चीन ने गिलगित एजेंसी पर पाकिस्तानी संप्रभुता को मान्यता दी थी.
चीन का कराकोरम हाइवे यहां से होकर गुज़रता है. रणनीतिक तौर पर इसकी लोकेशन अहम है क्योंकि ये चीन और पाकिस्तान को एक दूसरे में मिलिट्री एक्सेस देता है. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में भी इस इलाक़े का ख़ासी अहमियत है.
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