टीएम कृष्णा ने ऐसा क्या गा दिया जो पुरस्कार मिलने पर संगीत के दिग्गजों को दिक्कत हो रही?
हिंदू मिथकों के इर्द-गिर्द बुनी हुई ये कला आज कल विवाद में फंस गई है. विवाद एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है. जिसे कुछ लोग इस कला का माहिर भी कहते हैं, तो कुछ 'विध्वंसक', 'फूहड़'.
भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा की दो मुख्य उपशैलियां हैं, जो हिंदू ग्रंथों और परंपराओं से विकसित हुई हैं. ख़ासकर सामवेद से. एक है, हिंदुस्तानी संगीत. जो उत्तर भारत में उगा, फ़ारसी और हिंदुस्तानी भाषाओं के लम्स के साथ. दूसरा है, दक्षिण भारत का कर्नाटक संगीत (Carnatic Music). इस संगीत में हर राग का एक अलग भाव है. मंच के केंद्र में गायक होता है, साथ में मृदंग और वीणा. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के मंदिरों में सुने-गाए जाने की पुरानी रवायत है.
हिंदू मिथकों के इर्द-गिर्द बुनी हुई ये कला आज कल विवाद में फंसी हुई है. विवाद एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है. जिसे कुछ लोग इस कला का माहिर कहते हैं, तो कुछ ‘विध्वंसक’, ‘फूहड़’. संगीतकार का नाम, टीएम कृष्णा. जब से चेन्नई की संगीत अकादमी ने घोषणा की है कि वो प्रतिष्ठित संगीत कलानिधि पुरस्कार टीएम कृष्णा को दे रहे हैं, शास्त्रीय संगीत विधा के कुछ बड़े नामों ने घोषणा की है कि वो इस समारोह में हिस्सा नहीं लेंगे, परफ़ॉर्म नहीं करेंगे. समारोह दिसंबर में होना है और विरोध अभी से है. उनके आरोप हैं कि टीएम कृष्णा ने कर्नाटक संगीत बिरादरी को बदनाम किया है और भारतीय शास्त्रीय संगीत को बिगाड़ने की कोशिश की है.
वहीं, संगीत को लंबे समय तक सुनने, इस जगत को जानने-समझने वाले कई लोगों का कहना है कि ये आक्रोश कृष्णा के संगीत की वजह से नहीं, उनकी अभिव्यक्ति और विचारों की वजह से है. उनके उन बयानों की वजह से है, जिनमें वो कर्नाटक संगीत में निहित जाति और वर्ग के भेदभाव को खुले तौर पर चुनौती देते हैं.
कौन हैं टीएम कृष्णा?जब से पुरस्कार की घोषणा हुई है - 17 मार्च - तब से ही बवाल कटा हुआ है. रोज़ाना अख़बारों में लंबे-लंबे फ़ीचर पीस लिखे जा रहे हैं, ओपीनियन लिखे जा रहे हैं. मगर ऐसा क्यों? एक ही शख़्स है जहान में क्या?
थोडुर मदाबुसी या टीएम कृष्णा. गायक, लेखक, और एक ऐक्टिविस्ट. संगीत जगत की बड़ी हस्ती हैं. अपने लंबे करियर में कृष्णा कई विवादों में फंसे. मुख्यतः अपने प्रयोगों और विचारों के चलते. एक तरफ़, कर्नाटक संगीत के ढांचे में अलग-अलग शैलियों और विषयों को घोलने की कोशिश ने उन्हें प्रशंसक भी दिए और आलोचक भी. तो दूसरी तरफ़, विचारों का मामला ऐसा रहा कि संगीत जगत में गहरे धसे जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ़ उनकी मुखरता ने उनके आलोचकों की संख्या में इज़ाफ़ा किया.
दोनों पक्षों को एक-एक कर समझते हैं.
संगीत की 'तोड़-मरोड़'
कर्नाटक संगीत भक्ति और अध्यात्म में गहरे निहित है. पारंपरिक रूप से हिंदू देवी-देवताओं की स्तुति में प्रस्तुतियां होती हैं. मुख्य रूप से संस्कृत, तेलुगु और तमिल भाषा में. फिर इस सीन में कृष्णा आए. संगीत के प्रति उनका प्रेम और प्रशिक्षण कम उम्र में ही शुरू हो गया था. दिग्गज कलाकार और गुरु भगवथुला सीताराम शर्मा से शिक्षा ली. लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने अपनी आवाज़ खोजी, प्रयोग से नहीं चूके. उन्होंने कर्नाटक के रागों में बंगाली, मलयालम, हिब्रू और यहां तक कि अरबी में गीत बनाए. विषय में भी एक्सपेरिमेंट किए. जहां हिंदू देवी-देवताओं पर गीत गाए जा रहे थे, वहां धर्मनिरपेक्षता और प्रदूषण जैसे समसामयिक मुद्दों पर रचे गीतों को गाया.
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संगीत के प्रति उनका अप्रोच ही परंपरा से परे है. वो अपने गायन में ऐतिहासिक संदर्भों पर रोशनी डालते हैं, आधुनिक दुनिया में उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाते है. कहते हैं कि कर्नाटक संगीत धार्मिक सीमाओं से परे है, अमूर्त है, ऐब्सट्रैक्ट है. गीत को सजे हुए मंचों से उतार कर उन्होंने मेट्रो स्टेशन्स, बस अड्डों, बसों और बस्तियों में परफ़ॉर्म किया. बिना कहे, ये कहते हुए कि कर्नाटक संगीत समावेशी है, सभी के लिए है.
परंपरा के पक्षकारों को उनके ये प्रयोग नहीं सुहाते. उनका तर्क है कि कृष्णा ने ईसाई और मुस्लिम रचनाओं को परफ़ॉर्म करके कर्नाटक संगीत की प्राचीन परंपरा को कमज़ोर कर दिया है, और उनके हिसाब से उन्होंने एक एजेंडे के तहत ऐसा किया है. हालांकि, कुछ उनके नवाचार को ज़रूरी समझते हैं. मौक़े की बराबरी और सब तक संगीत पहुंचाने वाले के पैरोकार के तौर पर देखते हैं.
ऐक्टिविस्ट कृष्णा
शिक्षा में कृष्णा की सामाजिक चेतना भी घुली-मिली रही. उनका परिवार लंबे समय से मद्रास संगीत अकादमी के साथ जुड़ा रहा है. फिर भी कृष्णा इसकी कुछ प्रथाओं के मुखर आलोचक बन गए. उनके गीतों-प्रस्तुतियों में सामाजिक न्याय का समर्थन और जातिवाद की मुखर आलोचना सुनाई पड़ती है. दरअसल, कर्नाटक संगीत की दुनिया में जाति का इतिहास नत्थी रहा है, और टीएम इन मुद्दों को उजागर करने की वजह से प्रतिष्ठानों के लिए बन गए हैं ‘कांटा’.
उनके आरोप हैं कि संगीत जगत में पर्याप्त समावेशी रवैया नहीं है, प्रतिनिधित्व के बराबर मौक़े नहीं है. विरोध में उन्होंने प्रसिद्ध चेन्नई म्यूजिक सीज़न के एक बड़े कार्यक्रम को बॉयकॉट तक कर दिया था. इसी के बाद कला के फ़ील्ड्स में जाति को लेकर चर्चा छिड़ गई थी.
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कृष्णा बस जाति तक नहीं रुके. उन्होंने पर्यावरण और LGBTQIA+ अधिकारों के लिए भी आवाज़ उठाई. कला और ऐक्टिविज़्म के इस मिक्स ने 2016 में उन्हें प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड दिलवाया. पुरस्कार समारोह में कृष्णा ने कहा था,
विरोध का भरपूर विरोधकला को जाति की बाधाओं से ऊपर उठना चाहिए. एक अनमोल और सौंदर्यपूर्ण अनुभव भी राजनीतिक-सामाजिक टिप्पणी का हिस्सा बन सकता है… यह मेरे लिए साफ़ तौर पर ग़लत था, अनुचित था - समाज के लिए अनुचित था, कला के लिए अनुचित था. इसीलिए मुझे लगा, मुझे इस आधिपत्य का विरोध करना चाहिए.
अब कृष्णा को तो लगा कि आधिपत्य का विरोध करना चाहिए. मगर इस विरोध का बहुत विरोध हुआ. सबसे पहले गायिका रंजनी और गायत्री ने टीएम को अवॉर्ड दिए जाने का विरोध किया. एक लंबा सोशल मीडिया पोस्ट लिखा, कि कैसे कृष्णा ने कर्नाटक संगीतकारों में एक शर्म की भावना फैलाने की कोशिश की है.
द स्क्रोल के अभिक देब की रिपोर्ट के मुताबिक़, गायक त्रिचूर ब्रदर्स ने कहा कि वो दिसंबर में होने वाले महोत्सव में शामिल नहीं होंगे. हरिकथा प्रतिपादक दुष्यन्त श्रीधर ने भी कहा कि वो इस कार्यक्रम से हट रहे हैं. वादक चित्रविना रविकिरण ने तो यहां तक कहा कि अगर कृष्णा को अवॉर्ड मिलता है, तो वो 2017 में उन्हें मिला पुरस्कार वापस कर देंगे.
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संगीत अकादमी के अध्यक्ष एन मुरली ने बयान पर प्रतिक्रिया दी कि जिस तरह से दावे और आक्षेप लगाए जा रहे हैं, वो इसे देखकर स्तब्ध हैं.
और केवल संगीत जगत क्यों, नेताओं ने भी टीएम कृष्णा को नहीं छोड़ा. तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई ने मद्रास संगीत अकादमी की आलोचना की है और उन कलाकारों को अपना समर्थन दिया, जिन्होंने कृष्णा को संगीत कलानिधि पुरस्कार देने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. पहले कहा कि कर्नाटक संगीत के केंद्र में सनातन है और पार्टी की तरफ़ से साफ़ कहा कि प्रदेश बीजेपी संगीत अकादमी के उन सभी प्रतिष्ठित कलाकारों के साथ खड़ी है, जिन्होंने साथ मिलकर अकादमी के मौजूदा अथॉरिटी के ‘शत्रुतापूर्ण नज़रिए’ की आलोचना की है.
वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कृष्णा की आलोचना को खेदजनक बताया है. उनका कहना है,
ये खेद की बात है कि कुछ लोग नफ़रत और एजेंडी की वजह से कृष्णा की आलोचना कर रहे है. वो तो लगातार आम लोगों की बात करते हैं और प्रगतिशील राजनीति का समर्थन करते हैं.
उधर खुद टीएम कृष्णा ने अभी तक इस विवाद पर कोई टिप्पणी नहीं की है. हालांकि, वो अपनी इन आलोचनाओं से वाक़िफ़ हैं. 2023 में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था,
...अगर मैं किसी ऑडिटोरियम में जाता हूं, तो लोग मुझे घूरते हैं. पुरानी पीढ़ी ज़्यादा असहज दिखती है, लेकिन दुर्भाग्य से मैं गाता अच्छा हूं. इसलिए वो अभी भी मेरे कार्यक्रमों में आते हैं. मुझे लगता है कि वो भी अभी इस द्वंद्व को सुलझा नहीं पाए हैं. फिर ऐसे लोग भी हैं, जो मुझे बॉयकॉट करना चाहेंगे. इसलिए मुझे इससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता.
पिछले कुछ समय से तो मैं इसके साथ या बावजूद भी जीने में सक्षम हूं. मैंने अपनी जगह बना ली है. इसलिए मुझे लगता है कि ये लोगों के लिए एक अजीब सी स्थिति है. ऐसे लोग भी हैं, जो चाहते हैं कि मेरा अस्तित्व ही न हो. ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें मेरे राजनीतिक बयानों से बहुत समस्या है. उन्हें मुख्य रूप से जाति और आस्था पर मेरे बयानों से समस्या है. बाक़ी सब अप्रासंगिक है.
टीएम कृष्णा बेशक प्रतिभाशाली संगीतकार हैं, जो संगीत और सामाजिक परंपराओं को चुनौती देते हैं. चाहे उन्हें पसंद किया जाए या उन्हें गरियाया जाए, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने समावेशिता और प्रतिनिधित्व के लिए एक ज़रूरी विमर्श शुरू किया है.