The Lallantop
X
Advertisement

भारत में बिना लाइसेंस के कौन सी बंदूक मिलती है? कितनी खतरनाक है?

2016 से पहले देश में एयर गन के प्रोडक्शन और बिक्री पर कोई नियम नहीं थे. खिलौनों की दुकानों में भी एयर गन मिल जाती थी. फिर गृह मंत्रालय ने इस मसले का संज्ञान लिया और नोटिफ़िकेशन जारी किया. जानिए अब क्या नियम है?

Advertisement
gun shop
दुकान में यह वाली बंदूक़ नहीं मिलती. (सांकेतिक तस्वीर - फ़्रीपिक)
pic
सोम शेखर
7 नवंबर 2024 (Updated: 8 नवंबर 2024, 15:59 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

भारत में बंदूक़ चाहिए, तो सीधी बात है कि लाइसेंस लगेगा. फिर कहा जा सकेगा - ‘लाइसेंसी है’. मगर देश में एक बंदूक़ बिना लाइसेंस के भी मिल जाती है. कौन सी? एयर गन. बचपन में जिसके पीले छर्रों से कांच तोड़ते थे, वो नहीं. उससे ज़्यादा घातक. उससे कहीं अधिक महंगी.

बिना लाइसेंस की बंदूक़

नियम-क़ायदे से पहले दो कीवर्ड जानना ज़रूरी है - जूल्स और बोर - क्योंकि बंदूक़ों को इन्हीं पैमानों पर अलग-अलग कैटगरी में डाला गया है.

  • जूल ऊर्जा (एनर्जी) मापने की इकाई है. मसलन, एक जूल भर से एक टेनिस की गेंद 21.6 किमी प्रति घंटा की गति से निकलेगी.
  • बोर माने बंदूक़ की नली के अंदर की ख़ाली जगह. बोर से ही तय होता है कि कितने कैलिबर की गोली लोड हो सकती है. कैलिबर मल्लब गोलियों की बाहरी गोलाई.

अब क़ायदा समझिए:

भारत में एयर राइफ़ल और एयर गन का उत्पादन, इस्तेमाल और बिक्री शस्त्र नियम, 2016 के अंतर्गत आते हैं. 2016 से पहले देश में एयर गन के प्रोडक्शन और बिक्री पर कोई नियम नहीं थे. खिलौनों की दुकानों में भी एयर गन मिल जाती थी. फिर गृह मंत्रालय ने इस मसले का संज्ञान लिया और नोटिफ़िकेशन जारी किया.

मौजूदा नियमों के मुताबिक़, एयर आर्म्स दो कैटगरी के होते हैं.

  • 20 जूल से ज़्यादा एनर्जी या 4.5 मिलीमीटर (0.177-इंच) से ज़्यादा बोर वाले हथियार 'श्रेणी III(f)(i)' में गिने जाते हैं. इस कैटगरी के हथियारों के लिए विशेष लाइसेंस की ज़रूरत होती है. जैसे, बंदूक़ों की रेप्लिका, ब्लैंक गन, पेंटबॉल मार्कर्स और पेलेट गन्स. 
  • श्रेणी III(f)(ii) हथियारों की एनर्जी 20 जूल से और बोर 4.5 मिमी से कम होती है. इनके लिए कोई लाइसेंस नहीं चाहिए होता.

एयर-सॉफ़्ट गन इंडिया नाम की एक वेबसाइट है. इनका अपना यूट्यूब चैनल भी है. कंपनी एयर-सॉफ़्ट गन्स बेचती है. हल्की बंदूक़ें 2500 रुपयों से शुरू हो जाती हैं और अच्छी बंदूक़ें 45-50 हज़ार रुपयों तक. इनके पास आपको छर्रे, लाइटर, बंदूक़ें सब मिल जाएंगी. कैलिबर तय सीमा के भीतर और एनर्जी तो तय सीमा से बहुत कम. 20 जूल्स तक की इजाज़त है; 3 से 5 तक की बंदूक़ें मिलती हैं.

यह भी पढ़ें - हिटलर की उस बंदूक की कहानी, जिससे चलती थी 7000 किलो की गोली

क्या कोई आई-डी लगती है? इसके लिए एक बंदूक़ ऑर्डर ही कर के देखी. बस नाम, ईमेल-ID, पता, नंबर देते ही ऑर्डर प्लेस हो गया. कोई पहचान पत्र नहीं, कोई ताम-झाम नहीं. इसके बाद एक ई-मेल आया:

आपके ऑर्डर के लिए धन्यवाद. आपकी पेमेंट होने तक आपका ऑर्डर होल्ड पर है. कृपया नीचे दिए गए खाते में भुगतान करें. भुगतान हो जाने के बाद हमें अपने ऑर्डर नंबर के साथ एक स्क्रीनशॉट भेजें. अगर आप क्रेडिट कार्ड से पैसे देना चाहते हैं, तो कृपया मेल के ज़रिए हमें सूचित करें. ताकि हम आपको क्रेडिट कार्ड वाला लिंक भेज सकें. इस बंदूक़ को ख़रीदने के लिए हमें आपकी एक फ़ोटो आईडी की भी ज़रूरत होगी. आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, कुछ भी. आधार कार्ड हो तो बेहतर.

तो बस टैक्स जोड़ कर 64,999 रुपये निम्न बैंक खाते में ट्रांसफ़र करवाना है और काम पैंतिस. 

हमने नहीं करवाए.

कितनी घातक?

पहली बात: भारत में सार्वजनिक स्थानों या फ़ायरआर्म-फ़्री एरिया में बंदूक़ लहराना क़ानूनी नहीं है. भारतीय न्याय संहिता और 1959 के शस्त्र अधिनियम के मुताबिक़, पब्लिक स्पेस में बंदूक़ लहराने, यहां तक कि ख़ाली बंदूक़ या बंदूक़ जैसा लाइटर तक लहराना, या किसी की ओर पॉइंट करना जुर्म है. भले लाइसेंस न लेना पड़े, मगर क़ानून तोड़ने पर शस्त्र अधिनियम के तहत सज़ा मिलती है.

दूसरी बात: सोचा जा सकता है कि इसका इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए किया जा सकता है. जैसा कि वीडियोज़ में ज़ाहिर है, इसकी पावर इतनी तो नहीं है कि किसी का शरीर भेद दे. टिन के कैन, तरबूज़ या किसी फल में छेद करने जितनी ऊर्जा होती है. इसीलिए बंदूक़ के पारंपरिक काम तो नहीं आएगी. लेकिन अगर निशाना लगाकर आंख या किसी संवेदनशील हिस्से पर मारा जाए, तो बहुत डैमेज कर सकती है.

जिस वेबसाइट से एयर सॉफ़्ट गन ख़रीदते-ख़रीदते हम रह गए, उनका एक यूट्यूब चैनल है. इसमें वे अपने अलग-अलग प्रोडक्ट्स का प्रचार करते हैं. इसी में एक नसीहती वीडियो है - ‘आत्मरक्षा के लिए एयरगन का उपयोग न करें’. ज़ाहिर है, लोग उनके प्रोडक्ट्स ख़रीदकर कुछ उल्टा-सीधा कर बैठे, तो ऐसी-तैसी हो जाएगी. अब इनके तो दो तर्क हैं:

  1. अगर एयर गन का इस्तेमाल डराने या धमकाने के लिए किया जा रहा है, तो ग़ैर-क़ानूनी है.
  2. आत्मरक्षा में आपने बंदूक़ निकाल ली और अगले के पास भी हथियार है, तो पैनिक की स्थिति में वह हमला भी कर सकता है. 

उनकी नसीहत यह भी है कि अगर इस एयर गन को लेकर साथ चल रहे हैं, तो बाक़ायदा डिब्बे में लेकर चलिए. ताकि लोगों को कहीं भी ऐसा न लगे कि यह एक असली बंदूक़ है. 

भारत में बंदूक़ ख़रीदने का क़ायदा क्या है?

चूंकि हम उस बंदूक़ के बारे में बता रहे हैं, जिसके लिए लाइसेंस नहीं चाहिए. तो संक्षेप में यह भी जान लीजिए कि देश में बंदूक़ों को लेकर क़ानून क्या हैं?

दो मुख्य क़ानून हैं: आर्म्स ऐक्ट, 1959 और आर्म्स रूल्स, 1962. लाइसेंस लेने की पूरी प्रक्रिया इस वीडियो में देख लीजिए -

अब सवाल: क्या कोई भी बंदूक़ ख़रीद सकते हैं? एकदम फ़ुल-भौकाल वाली बंदूक भी? जवाब है, नहीं. 

लाइसेंसी हथियारों की भी एक सीमा होती है. सब कुछ नहीं मिलता. हथियार की दो कैटेगरी होती है. एक, नॉन-प्रॉहिबिटेड बोर (NPB) और दूसरा, प्रॉहिबिटेड बोर (PB). 

  • NPB में 312 बोर की राइफ़ल, .22 बोर रिवॉल्वर, .45 बोर की पिस्तौल जैसी बंदूकें आती है.
  • PB में 9mm पिस्तौल, .303 राइफल, एके-47, मशीनगन जैसे हथियार आते हैं.

मोटा-मोटी समझ लीजिए कि नॉन-प्रॉहिबिटेड बोर में जो बंदूकें आती हैं, वे ऑटोमैटिक नहीं होतीं. जबकि प्रॉहिबिटेड बोर में सेमी-ऑटोमैटिक से लेकर फ़ुली ऑटोमैटिक बंदूकें आती हैं. यही हथियार सेना और सुरक्षाबलों के पास होते हैं.

गन कल्चर की बहस

आख़िर में मुद्दे की बात. बंदूक़ ख़रीदनी कैसे है? उसके लिए क्या चाहिए, क्या नहीं? कितनी इजाज़त है? कितना डैमेज करती है? सब बता दिया. लेकिन 21वीं सदी में बंदूक़ें चाहिए क्यों? क्या नागरिकों के पास हथियार होना सुरक्षा के लिहाज़ से सही है?

इन सवालों का जवाब मिलता है, ‘गन कल्चर’ की बहस में. अमेरिकी संविधान का दूसरा संशोधन नागरिकों को हथियार रखने के अधिकार की गारंटी देता है. लेकिन आज अमेरिका के हालात सबके सामने हैं. हर दूसरे महीने मास-शूटिंग की घटनाएं. कभी दस, कभी बीस, कभी इससे भी ज़्यादा बेक़ुसूर लोगों की हत्या की ख़बरें. जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, तो दो धड़े सामने आते हैं. दो तर्क सामने आते हैं. पहला, कि इस तरह की हिंसा को ख़त्म करने के लिए गन कंट्रोल क़ानूनों को सख़्त करना चाहिए. दूसरा, कि नागरिकों को अपनी रक्षा करने का मौलिक अधिकार है. अच्छे और बुरे लोग हर जगह होते हैं. क़ानून चाहे कितने भी सख़्त कर लें, बुरे लोग बुरा काम करने के तरीक़े खोज ही लेंगे. मगर उनकी वजह से अच्छे लोगों के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए. 

माने एक पक्ष का कहना है कि बंदूक़ें रहने से सुरक्षा बढ़ेगी, दूसरा कहता है कि सुरक्षा घटेगी.

यह भी पढ़ें - अमेरिका में हज़ारों हत्याएं करने वाले 'गन कल्चर' को कोई राष्ट्रपति ख़त्म क्यों नहीं कर पाया?

इसीलिए बंदूक़ कम जूल्स की हो या ज़्यादा की, नीति के स्तर पर चिंतन-मनन का विषय है, क्योंकि यह राज्य की अवधारणा की नींव को चुनौती देती है. राज्य के पास हिंसा पर एकाधिकार है, क्योंकि वो नियम-क़ायदों के अनुरूप चलने के लिए है.

वीडियो: तारीख: जब भारत में आई पहली बंदूक

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement