इस गांव में 300 सालों से 'गोबर मार होली' से खत्म हो रही दिवाली
300 साल पुराना यह उत्सव स्पेन के टोमाटीना की तर्ज़ पर 'गोबरटीना' नहीं कहलाता. मगर दिवाली के चार रोज़ बाद लोग बीरेश्वर मंदिर उत्सव में जुटते हैं, कहकहे होते हैं.
इस देश में भांति-भांति के रीति-रवाज़ हैं. जैसे तमिलनाडु के इरोड ज़िले के थलावडी के एक सुदूर गांव में पिछले 300 सालों से लोग एक-दूसरे पर गोबर फेंक रहे हैं. 300 साल पुराना यह उत्सव स्पेन के टोमाटीना की तर्ज़ पर 'गोबरटीना' नहीं कहलाता. मगर दिवाली के चार रोज़ बाद लोग बीरेश्वर मंदिर उत्सव में जुटते हैं, कहकहे होते हैं.
गोमूत्र पीने के वैज्ञानिक फ़ायदे गिनवाने और गोबर लीप कर न्यूक्लीयर हमले से बचने के नुस्ख़े बांटने वाले दौर में इस त्योहार की कहानी आस्था और धुंधले इतिहास के इर्द-गिर्द ही है. ऐसा कहा जाता है कि कई शताब्दियों तक प्राकृतिक खाद के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले गड्ढे में ही शिवलिंग की खोज हुई थी. अब यह शिवलिंग बीरेश्वर मंदिर के अंदर रख दिया गया है.
उत्सव में एक उपयोगिता का ऐंगल भी है. जब गोबर फेंकने की रस्म पूरी हो जाती है, तो गोबर को गांव वालों में बांट दिया जाता है. फिर वे इसका इस्तेमाल खेती में करते हैं और मानते हैं कि इससे साल भर की उपज बढ़ती है.
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कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित गुमातापुरा गांव में भी ऐसा कुछ होता है. गांव वाले हर साल दिवाली के अंत में इसी तरह गोबर की होली खेलते हैं. कर्नाटक में मनाया जाने वाला यह त्योहार ‘गोरेहब्बा’ कहलाता है. बताया जाता है कि यह सौ साल से भी ज़्यादा पुराना है.
रहिमन इस संसार में भांति-भांति के अतरंगी लोग. ऐसी ही कीचड़ की होली बृज में भी खेली जाती है. इसके अलावा भी भारत के कई प्रदेशों में खेली जाती है. हुरियारों की टोली सबको कीचड़ से बिगाड़ती चलती है. इस होली से लोगों को डर भी लगता है, पर मजा भी उतना ही आता है. जो खेलते हैं, उन्हें.
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