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'वेट सॉक मेथड' बुखार भगाने का पुराना तरीका, पर पता है इससे कितने 'बवाल' पीछे पड़ सकते हैं?

'वेट सॉक मेथड' बुखार उतारने का पुराना तरीका है. इसे तब अपनाया जाता था, जब बुखार ठीक करने के नए तरीके मौजूद नहीं थे. लेकिन डॉक्टर्स इसे लेकर तमाम दिक्कत होने की बात भी कहते हैं?

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know pros and cons of wet sock method used to treat fever
वेट सॉक मेथड में पैर में पहले ठंडे मोज़े पहने जाते हैं और फिर नॉर्मल मोज़े
12 नवंबर 2024 (Updated: 12 नवंबर 2024, 17:10 IST)
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जब आपको या आपके घर में किसी को बुखार चढ़ता है. तो आप क्या करते हैं? ज़ाहिर है, सिर पर ठंडी पट्टियां करते हैं. दवाई खाते हैं. अगर फिर भी बुखार नहीं उतरता तो डॉक्टर के पास जाते हैं. लेकिन, आजकल बुखार उतारने का एक काफ़ी पुराना तरीका फिर से चलन में आ रहा है. या कहें कि ट्रेंड कर रहा है. इस तरीके का नाम है वेट सॉक मेथड (Wet Sock Method). वेट यानी गीला. सॉक यानी मोज़ा. 

मगर एक गीला मोज़ा बुखार कैसे उतार सकता है? और, अगर ये तरीका इतना ही कारगर था तो चलन से बाहर क्यों हो गया? इन्हीं सवालों के जवाब आज हम डॉक्टर साहब से जानेंगे. पता करेंगे कि बुखार उतारने का 'वेट सॉक मेथड' क्या है. इसे कैसे किया जाता है. आज के समय में डॉक्टर्स इस तरीके का इस्तेमाल करने से मना क्यों करते हैं. और, अगर ये नहीं, तो बुखार उतारने का सही तरीका क्या है.

बुखार उतारने का 'वेट सॉक मेथड' क्या है?

ये हमें बताया डॉक्टर कुलदीप कुमार ग्रोवर ने.

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डॉ. कुलदीप कुमार ग्रोवर, हेड, पल्मोनोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

वेट सॉक मेथड बुखार कम करने का तरीका है. सालों पहले इसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता था. वेट सॉक मेथड में बुखार से पीड़ित व्यक्ति को गर्म पानी से नहाना होता है. फिर पूरे शरीर को अच्छे से पोंछना होता है. ऐसा रात को सोने से पहले करना है. मगर तब ही, जब व्यक्ति बुखार उतारने की कोई दवा नहीं खाना चाहता. इसके बाद बर्फ वाले ठंडे पानी में भीगे मोज़े पहनने होते हैं. फिर उसके ऊपर सूखे मोज़े और अपने बाकी कपड़े पहनकर सोना होता है. 

'वेट सॉक मेथड' से बुखार उतरने का कारण

वेट सॉक मेथड में जब गर्म के बाद ठंडा कपड़ा पहना जाता है. तब खून का फ्लो सीने से शरीर के निचले हिस्से में होने लगता है. इससे शरीर के ऊपरी हिस्से में खून की सप्लाई कम हो जाती है. सांस की नली, नाक, गले, फेफड़ों, कान और साइनस में भरा कफ. जो कंजेशन और बुखार की वजह से बनता है, वो कम होने लगता है. इससे कंजेशन (जमा हुआ बलगम) और बुखार भी कम हो जाता है. 

ये बुखार उतारने का पुराना तरीका है. इसे तब अपनाया जाता था, जब बुखार ठीक करने के नए तरीके मौजूद नहीं थे. ये कोई साइंटिफिक मेथड नहीं है, लेकिन कई मरीज़ों को इससे फायदा मिलता था. ये उन मरीज़ों में इस्तेमाल किया जाता था जिनका बुखार, जुकाम और कंजेशन दवाई लेने के बाद भी ठीक नहीं होता था.

wet sock method
आज के समय में वेट सॉक मेथड का इस्तेमाल सेहत से जुड़े जोखिम बढ़ा सकता है 
डॉक्टर्स  'वेट सॉक मेथड' का इस्तेमाल करने से क्यों मना करते हैं?

वेट सॉक मेथड को खतरनाक माना जाता है क्योंकि आज के समय में इसका इस्तेमाल करने से जोखिम बढ़ सकता है. आपको ऐसा लगेगा कि ये तरीका बुखार उतार देगा, पर इससे और दिक्कतें हो सकती हैं. जैसे अगर आपको 104 डिग्री बुखार है और आप ये तरीका अपना रहे हैं तो रात में बुखार से जुड़ी कोई कॉम्प्लिकेशन हो सकती है. जैसे डिहाइड्रेशन होना, BP कम होना. 

अगर आप गर्म के बाद ठंडा कपड़ा पहन रहे हैं तो स्किन में फंगल इंफेक्शन हो सकता है, छाले पड़ सकते हैं. अगर आप डायबिटिक या बुज़ुर्ग हैं तो सांस से जुड़े इंफेक्शन हो सकते हैं. कोई क्रोनिक (लंबे समय तक चलने वाली) या एक्यूट (अचानक शुरू होने वाली) दिक्कत भी हो सकती है. लिहाज़ा जिनका इम्यून सिस्टम कमज़ोर है. जैसे कैंसर, डायबिटीज़ और क्रोनिक बीमारियों से ग्रसित मरीज़. उन्हें ‘वेट सॉक मेथड’ कभी भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. 

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बुखार उतारने के लिए सिर पर सिर पर ठंडी पट्टियां लगा सकते हैं (सांकेतिक तस्वीर)
बुखार उतारने का सही तरीका क्या है?

बुखार उतारने का पहला तरीका नॉन-फॉर्मास्यूटिकल है. इसमें दवाई नहीं दी जाती और इसे घर पर ही किया जाता है. इस तरीके में सिर पर ठंडी पट्टियां लगाई जाती हैं. ये बुखार उतारने का सबसे आम तरीका है. आप पैरासिटामॉल भी ले सकते हैं. अगर उम्र कम है तो 500 mg और अगर उम्र ज़्यादा है तो 650 mg पैरासिटामॉल लेनी चाहिए. पैरासिटामॉल टैबलेट अक्सर घर में आसानी से मिल जाती है.

पैरासिटामॉल देने के साथ कोल्ड स्पंजिंग (ठंडे कपड़े से शरीर को पोंछना) भी कर सकते हैं. अगर पैरासिटामॉल असर नहीं कर रही है तो कोई भी दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न लें. पहले अस्पताल जाएं और अपना टेस्ट कराएं ताकि ये पता चल सके कि प्लेटलेट्स तो कम नहीं हैं. अगर आप एंटीपायरेटिक (बुखार उतारने वाली दवाएं) टैबलेट लेते हैं, तो प्लेटलेट्स और कम हो सकते हैं. लिहाज़ा सावधानी ही बचाव है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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