सादा जीवन जिया, फिर भी हो गया कैंसर! क्यों होता है ऐसा? पता चल गया
कई बार कुछ जीन्स कैंसर के रिस्क को थोड़ा बढ़ा देते हैं. अलग-अलग जीन के हिसाब से अलग-अलग अंगों में कैंसर हो सकता है. डॉक्टर ने इस बारे में सबकुछ बताया है, आइए जानते हैं.
आपने देखा होगा. कई बार कुछ लोग न तो शराब पीते हैं. न सिगरेट पीते हैं. न ही किसी तरह का नशा करते हैं. फिर भी उन्हें कैंसर हो जाता है. ये काफी शॉकिंग होता है. न शराब पी, न सिगरेट पी. फिर भी कैंसर हो गया? ऐसा कैसे? दरअसल, इसमें बड़ा हाथ होता है जीन्स का. कैसे? ये आज डॉक्टर से जानते हैं. साथ ही समझेंगे कि इंसान का DNA कैसे तय करता है उसे कैंसर होगा या नहीं. कौन लोग कैंसर के ज़्यादा रिस्क पर होते हैं और इससे बचाव कैसे किया जाए.
क्या हमारे जीन्स/DNA कैंसर के रिस्क को बढ़ाते हैं?ये हमें बताया डॉक्टर करन चंचलानी ने.
कई बार कुछ जीन्स कैंसर के रिस्क को थोड़ा बढ़ा देते हैं. अलग-अलग जीन के हिसाब से अलग-अलग अंगों में कैंसर हो सकता है. जैसे रेटिनोब्लास्टोमा जीन, ये बच्चों में आंख का ट्यूमर पैदा करता है. NF1 नाम का एक जीन है, इसे न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस कहते हैं. ये युवाओं में कई ब्रेन ट्यूमर्स पैदा कर सकता है. हालांकि ये बहुत घातक नहीं होता.
इसी तरह एक जीन ब्रेस्ट कैंसर से भी जुड़ा है. ये जीन सिर्फ ब्रेस्ट कैंसर ही नहीं करता बल्कि महिलाओं में ओवरी का कैंसर भी करता है. यहां तक कि अगर ये जीन किसी महिला से उसके बेटे में चला जाए. तो उस पुरुष को प्रोस्टेट कैंसर का रिस्क हो सकता है.
इसके अलावा पेट और पैंक्रियाटिक कैंसर होने का खतरा भी रहता है. यानी कैंसर के कुछ ट्यूमर्स होने का रिस्क हमारे जीन्स की वजह से बढ़ जाता है. जितने भी कैंसर के मामले आते हैं, उनमें 5 से 10 परसेंट जीन्स से जुड़े होते हैं.
इसके पीछे क्या वजह है?कुछ-कुछ जीन्स हमारे अंदर कैंसर के रिस्क को बढ़ाते हैं. जैसे प्रोटो-ऑन्कोजीन नाम का एक जीन ग्रुप होता है. ये हमारे शरीर में काम करता है और अचानक पैदा नहीं होता. इसी तरह ट्यूमर सप्रेसर जीन्स नाम का एक दूसरा जीन ग्रुप होता है. ये दोनों ही जीन ग्रुप सेल्स के सही से काम करने के लिए ज़रूरी हैं.
अगर इनमें से प्रोटो-ऑन्कोजीन बहुत ज़्यादा एक्टिव हो जाए. तो ये सेल्स को तेज़ी से विभाजित करना शुरू कर देता है. इससे कैंसर का ट्यूमर बन सकता है. इस जीन को बैलेंस करने का काम ट्यूमर सप्रेसर जीन करता है. ये चेक करता रहता है कि कहीं जीन अनियंत्रित रूप से बंटकर बढ़ तो नहीं रहे. ऐसा करके ये प्रोटो-ऑन्कोजीन के साथ बैलेंस बनाए रखता है. लेकिन, फिर जब हम शराब या तंबाकू का सेवन करते हैं. तब ये बैलेंस बिगड़ जाता है और हमें ट्यूमर हो जाता है.
बचाव और इलाजकैंसर से बचाव के लिए पहले ये देखा जाता है कि कैंसर किसी जीन की वजह से है या नहीं. इसके लिए कुछ गाइडलाइंस हैं. जैसे अगर किसी बच्चे को लो ग्रेड ट्यूमर हो रहा है (कैंसर का वो ट्यूमर जो धीरे-धीरे बढ़ता हो और कम घातक हो). जैसे मल्टीपल ब्रेन ट्यूमर्स या फिर बाइलेटरल वेस्टिबुलर श्वानोमा या मल्टीपल मेनिनजियोमा. तब मरीज़ को जेनेटिक टेस्टिंग की सलाह दी जा सकती है. इसके बाद टेस्ट करके कंफर्म किया जा सकता है कि कैंसर उसी जीन की वजह से है या नहीं.
ऐसे ट्यूमर्स का इलाज थोड़ा अलग तरीके से किया जाता है. मसलन, अगर मल्टीपल न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस की बात करें. तो मरीज़ के पूरे शरीर में बहुत सारे ट्यूमर्स दिखते हैं. लेकिन इन सारे ट्यूमर्स को निकालने या इनका इलाज करने की ज़रूरत नहीं होती. कई बार थोड़ा इंतज़ार किया जाता है क्योंकि बहुत सारे ट्यूमर्स हैं, इसलिए इन्हें निकालना आसान नहीं. ऐसे मरीज़ों की टारगेटेड थेरेपी की जा सकती है. हालांकि कैंसर के हर मरीज़ को जेनेटिक टेस्टिंग करने की ज़रूरत नहीं है. अगर आपके अंदर रिस्क फैक्टर्स हैं तो ही आपको जेनेटिक टेस्टिंग करनी चाहिए.
देखिए, हमारे जीन्स कैसे हैं, ये तो हमारे कंट्रोल में नहीं है. लेकिन, दूसरे रिस्क फैक्टर्स को हम कंट्रोल कर सकते हैं. जैसे सिगरेट-शराब न पीना. रोज़ थोड़ी देर ही सही, एक्सरसाइज़ ज़रूर करना. हेल्दी खाना खाना. ऐसा खाना जिसमें हरी सब्ज़ियां हों, फल हों, पोषक तत्व हो. स्ट्रेस सही तरह मैनेज करना. इन बातों का ध्यान रखिए और लक्षण दिखने पर डॉक्टर से तुरंत ज़रूर मिलिए. ताकी सही समय पर जांच और इलाज हो सके.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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