GOT से ये सबक़ ले लिए, तो फ़ैन्स के बीच छा जाएगी 'हाउस ऑफ़ द ड्रैगन'!
लोग दोबारा इस यूनिवर्स में इन्वॉल्व हो सकते हैं, बशर्ते मेकर्स अपना यूएसपी क़ायदे से भुना पाएं.
भोरे-भोरे हाउस ऑफ़ द ड्रैगन (House of the Dragon) देख ली. एक तो हम इस यूनिवर्स के पुराने मद्दाह रहे हैं, दूसरे, हमारे साथी अनुभव के ललित निबंधों ने इस सीरीज़ की उत्सुकता और बढ़ा दी थी. ट्विटर के रिएक्शन्स देखकर लग रहा है, गोया जनता दोबारा जॉर्ज आर आर मार्टिन की दुनिया में ढुकने के लिए तैयार है. लेकिन (ऐसे कई लेकिन आते रहेंगे), पहला एपिसोड कैसा लगा, जमा कि नहीं, 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' की कितनी याद दिलाता है, ये बता देते हैं.
है ये गेम ऑफ़ ‘थ्रोन्स’ ही!वैसे तो ये कहानी ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ की कहानी से 172 साल पहले घट रही है, लेकिन सेटअप वही पुराना है. केवल दुनिया नहीं, तख़्त के खेल में भी कोई बदलाव नहीं है. झूठ, कपट, लालसा, पॉलिटिक्स सब उसी दिशा में बढ़ती हुई नज़र आ रही है. ये भी हो सकता है कि दुनिया जिस ढंग में ढली है, हमारी और उनकी, उसमें हर गद्दी को पाने का सेट पैटर्न ऐसा ही हो. कहानी के मुख्य किरदार से लेकर सारे सह-किरदारों तक, सबकी अपनी ख़्वाहिश है, सबका अपना क़िस्सा. ख़ैर, ये तो पहला एपिसोड है. आगे देखते हैं कि इस बार थ्रोन के लिए किस हद के कपट का इस्तेमाल होता है.
इसके अलावा जगहें भी वैसी ही हैं. डॉर्न, वेल, हाईटावर, किंग्स लैंडिंग जैसे नाम सुनाई देंगे और संभवतः आगे दिखाई देंगे. हालांकि, ये तो समझ आता है क्योंकि मानव जीवन के 150-200 सालों में प्रकृति कितना ही बदलेगी!
बैकलॉग क्लीयर कर पाएगी कि नहीं?'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' के आख़िरी 'सीज़न्स' की निराशा से निपटना, इस सीरीज़ के मेकर्स की पहली चुनौती थी. केवल आठवे सीज़न की नहीं, आख़िरी के तीन सीज़न्स तक की. तो गेम ऑफ़ थ्रोन्स के दो तरह के मुरीद हैं. एक हमाई तरह के काहिल, जिन्ने केवल सीरीज़ देखी है. दूसरे, किताब वाले. जो असल कहानी जानते हैं. तो किताब वाले तो टीवी सीरीज़ से पांचवे सीज़न के बाद ही उचट गए थे. आगे बताएंगे क्यों. बहरहाल, अभी जनता का रिएक्शन और रिव्यूज़ पढ़कर लगता है, मेकर्स इस सार्वभौमिक निराशा से पार पा लेंगे. बशर्ते वो इस फ्रेंचाइज़ी के USP को क़ायदे से भुना पाएं.
और, इसी यूएसपी से जुड़ी हुई है निराशा. एक ही यूएसपी है, अनिश्चितता. जो GOT के मेकर्स ने पॉपुलर अपील के चक्कर में गोड़ दी. लोगों के लिए ये कहानी इसीलिए नई थी, अलग थी कि इसमें हीरो ही मर जाता था. बार-बार. जिसको भी आप हीरो चुनो, वो सीज़न के अंत में निपट जाता. फिर एक नया हीरो आता, ऑडियंस को उम्मीद देता, फिर वो भी..
लेकिन फिर आया जॉन स्नो. वही जॉन स्नो, जो कुछ नहीं जानता था. जिसने हमेशा ख़ुद के ऊपर 'कॉज़' को रखा. अपने वचन और शासन के बूते हर तरह का भेद मिटाया. ग्रेटर इविल से लड़ने के लिए इंसानों को एकजुट किया. उनका नेतृत्व किया और अंत में चला गया. बिना कुछ क्लेम किए. शून्य में. अपने भेड़िए के साथ. अब किताब के हिसाब से तो इस किरदार को पांचवे सीज़न में ही मर जाना था. मर भी गया, लेकिन दर्शकों को ये हजम नहीं हुआ. मेकर्स ने उसे दोबारा जिला दिया, तो किताब प्रेमियों ने सीरीज़ का बहिष्कार कर दिया. फिर आठवे सीज़न के अंत तक आते-आते तो दर्शकों का भी मोहभंग हो गया. कई कारण रहे. कहानी दिशाहीन सी लगने लगी थी, प्लॉट खोखला सा और कई घटनाएं जस्टिफ़ाई नहीं हो रही थीं.
हालांकि, इस लार्जर दैन लाइफ़ फ्रेंचाइज़ी का महात्म्य इतना है कि लोग दुबारा इसमें इन्वॉल्व होने के लिए तैयार हो सकते हैं. बस सही तार सही जगह लगें.
क्या नया? क्या पुराना?अब जब इस सीरीज़ की भी सेंट्रल थीम वही है, तो मेकर्स के पास गुंजाइश है किरदारों में. किरदारों के शेड्स के साथ अच्छा खेल सकते हैं. कहानी, इस सीज़न तक तो तीन मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द रहेगी. तात्कालिक राजा विसेरिस, उनका भाई डेमॉन और उनकी बिटिया रेनेरा. राजा विसेरिस का तख़्त किसका होगा चाचा-भतीजी इसी पर लड़ने में ख़र्च होंगे. राजा विसेरिस की कोई ख़ास डिटेलिंग मालूम नहीं पड़ती. बस इतना कि उनके चाचा ने अपनी बेटी के मुक़ाबले, उन्हें अपनी गद्दी सौंप दी थी. और, अपने पुरखों की तरह ही विसेरिस भी अपनी बिटिया को राजशाही के लिए ना'क़ाबिल समझते हैं. और, लड़का हो जाए, इसके लिए सब जतन करते हैं.
हालांकि, बाद में वो मन बदल लेते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो प्रोग्रेसिव हो गए थे. मामला परिस्थितिजन्य था. हम स्पॉयलर नहीं देंगे. आप देख लीजिएगा.
डेमॉन का किरदार वैसा ही है, जैसा अमूमन राजा के छोटे भाई का होता है. ताक़तवर, चार्मिंग, एंबिशियस, बिगड़ैल और अहंकारी. अपने बड़े भाई से चिढ़ा हुआ क्योंकि मुन्ना भईया की तरह उसे भी तकलीफ़ होती है की वो योग्य है और लोग उसकी योग्यता पहचान नहीं पा रहे. इस एपिसोड के घटने तक डेमॉन को इस बात पर यक़ीन था कि उसके अलावा तख़्त का कोई और हक़दार हो ही नहीं सकता. अब उसे झटका लगा है, तो वो इस खेल में भरसक रहेगा. एक सेंट्रल किरदार के तौर पर.
रेनेरा का किरदार बहुत हद तक अपनी पर-पर-पर पोती डिनेरियस टार्गेरियन से मेल खाता है. आफ़्टर ऑल, उन दोनों के बीच में आठ पीढ़ियां ज़रूर हैं, लेकिन वो एक ही ख़ून है. ड्रैगन्स ब्लड. वैसी ही कद-काठी, वैसी ही मासूमियत और वैसा ही रौब. डिनेरियस बनते बनते बनी थीं और रेनेरा को अपने डार्क मोड में जल्दी ही जाना पड़ेगा. तो एक ही ज़मीन से आए दो किरदारों पर कितना प्रयोग मुमकिन है, ये आने वाले एपिसोड्स में देखने को मिलेगा.
कुछ नाम, कुछ कथन सुनकर तुरंत 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' की इमेज फ़्लैश करती है. मसलन, रेनेरा का 'ड्रकारियस' कहना, या हाउस स्टार्क, हाउस बराथियन और हाउस वेल का ज़िक्र आना. जो लोग इस फ्रेंचाइज़ी में इन्वेस्टेड रहे हैं, वो ये सुनेंगे तो दिमाग़ में कुछ तो खड़केगा. जैसे, विसेरिस और रेनेरा के संवाद में 'लॉन्ग नाइट' की बात आई, तो लगा कि 'ओोोोोोोह, इनको तभी से पता था!?' इन्हें भी एक ख़्वाब आया था, जिसके पीछे पूरी उहापोह है. ख़िलजियों के जैसा. या, ऑटमन सम्राज्य के संस्थापक उस्मान के जैसा.
अब कुछ बातें एक जबरा फ़ैन के बकौल. हमने पांचवे सीज़न से इस सीरीज़ को जिया है. यानी हफ़्ते-दर-हफ़्ते देखा है. एक हफ़्ते बातचीत का केवल एक ही विषय होता था और केवल अपने दोस्तों के बीच नहीं, इंटरनेट पर भी. तब जियो नहीं आया था, तो इंटरनेट भी बहुत इंटरनेट नहीं था. लेकिन जितना था, इन्हीं सब बातों से लदा रहता था. उस वक़्त इसका क्रेज़ ही ऐसा था. अगल-अलग कारणों से.
सीरीज़ को टेलीविज़न इतिहास की सबसे बड़ी सीरीज़ कहते हैं. थ्रोन्स सीरीज़ के सारे सीज़न के औसत व्यू काउंट निकालें, तो ये आता है क़रीब 44.7 मिलियन, यानी औसतन साढ़े चार करोड़ लोगों ने इसका हर सीज़न देखा है. तो 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' देखने के बाद ये टाइम और स्पेस देखना बहुत सुखद है. सीरीज़ के शुरुआती चार-पांच मिनटों में ही ड्रैगन दिख जाता है. और, ड्रैगन्स जितने ख़तरनाक़ जीवों का रोमैंटिसाइज़ेशन इस क़दर है कि हर बार ड्रैगन के स्क्रीन पर आने से आपको अलग ही चिल्स मिलते हैं. और, एंड क्रेडिट के समय 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' की थीम बजना, तो जैसे नेक्स्ट-लेवल हिट था.
हमने इस कॉपी की हेडिंग दी - GOT से ये सबक़ ले लें, तो फ़ैन्स के बीच छा जाएगी 'हाउस ऑफ़ द ड्रैगन'! इस कहानी के क़ातिब जॉर्ज आर आर मार्टिन का एक मारक कथन है - art is not democracy, you don't get to vote on how it ends. असल में सबक़ यही है कि मेकर्स फ़ैन्स के बारे में सोचें ही न. पॉपुलर सेंटिमेंट्स के नाम पर अपने सृजन को सीमित न करें. और, मार्टिन के मंत्र पर चलें. एक ज़ोरदार कहानी कहें.
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