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BSP इन सीटों पर चुनाव न लड़ती तो यूपी में NDA 20 सीटों में सिमट जाता? सच या सिर्फ आंकड़ेबाजी?

अपेक्षित था कि चर्चा इस बात पर होती कि बसपा की राजनीतिक छाप कितनी बची है? नहीं बची, तो क्या कारण? आगे की राह क्या हो सकती है? मगर इस चर्चा से ज़्यादा इस सवाल पर बात हो रही है कि कैसे बसपा ने भाजपा को फ़ायदा पहुंचाया.

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बसपा और भाजपा की मिली-भगत की ख़बरें पुरानी हैं. (फ़ोटो - PTI)
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सोम शेखर
6 जून 2024 (Updated: 7 जून 2024, 11:38 IST)
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बहुजन समाज पार्टी. कभी देश की राजनीति की दिशा तय करने वाला दल. आज स्थिति ऐसी कि 9.39 फ़ीसदी वोट शेयर होने के बावजूद लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाया. इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी निल बटे सन्नाटा रही थी, और पिछले विधानसभा चुनाव में भी केवल एक ही सीट जीत पाई थी.

अपेक्षित था कि चर्चा इस बात पर होती कि बसपा की राजनीतिक छाप कितनी बची है? नहीं बची, तो क्या कारण? आगे की राह क्या हो सकती है? मगर इस चर्चा से ज़्यादा इस सवाल पर बात हो रही है कि कैसे बसपा ने भाजपा को फ़ायदा पहुंचाया. चर्चा कि किन सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने INDIA गठबंधन के प्रत्याशियों को फ़ायदा पहुंचाया.

भाजपा की 'B-टीम' बसपा?

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रीमा नागराजन ने नतीजों की समीक्षा की है. उनके मुताबिक़, बसपा भले ही उत्तर प्रदेश में एक भी सीट न जीत सकी, लेकिन 16 सीटें ऐसी हैं, जहां उसे भाजपा या उसके सहयोगी दलों की जीत के मार्जिन से ज़्यादा वोट मिले हैं.

कौन-कौन सी सीटें? इन सीटों में से भाजपा ने 14 और उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल (सोनेलाल) ने एक-एक सीटें जीती हैं.

फ़ोटो - दी लल्लनटॉप

इन आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट्स छपी हैं, चर्चाएं चली हैं कि अगर इन सीटों पर बसपा अपने कैंडिडेट न उतारती या INDIA गठबंधन का हिस्सा होती, तो नतीजे कुछ और हो सकते थे, लोकसभा में भाजपा की संख्या 240 से गिरकर 226 हो जाती और NDA 278 पर आ जाता.

हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बसपा को मिले वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन को ही जाते.

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कांग्रेस ने ये तुर्रा पकड़ लिया. पार्टी की IT सेल की प्रमुख और प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने पोस्ट किया,

अगर बहनजी संकटमोचन न बनतीं, तो BJP और उनके घटक यह 16 सीटें हारते. फिर उत्तर प्रदेश में BJP और घटक दलों की टैली 36 नहीं 20 होती.

कांग्रेस के आरोप हैं कि मायावती की पार्टी ‘भाजपा की बी-टीम’ है. ऐसे आरोप उन पर पहले भी लगे हैं. हालांकि, बसपा को कवर करने वाले और दलित राजनीति की समझ रखने वाले कहते हैं कि ये भी बसपा की साख को कमज़ोर करने वाली बात है. कोई पार्टी ‘बी-टीम’ बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ती.

INDIA को फ़ायदा नहीं हुआ?

यहां ये समीक्षा करना भी बनता है कि जिन सीटों पर सपा या कांग्रेस की जीत हुई वहां के मार्जिन से ज़्यादा बसपा के प्रत्याशी को कितने वोट मिले हैं.

दी लल्लनटॉप की समीक्षा में ये निकल कर आया है कि ऐसी कुल 31 सीटें हैं, जहां INDIA गठबंधन के प्रत्याशी के मार्जिन से ज़्यादा बसपा प्रत्याशी को वोट मिले हैं. 

फ़ोटो - दी लल्लनटॉप.

इन आंकड़ों पर गौर करने के बाद कोई ये भी कह सकता है कि बसपा INDIA गठबंधन की ‘बी-टीम’ है. इस तरह तो ये केवल आरोप-प्रत्यारोप का मसला रह जाता है. 

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पिछले तीन दशकों में ये दूसरी बार है, जब बसपा लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई है. जैसा बताया, 2014 के आम चुनाव में भी निल रहा था. 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ महागठबंधन में बसपा ने 10 सीटें जीती थी. उससे पहले 2009 में 21 सीटें, 2004 में 19 सीटें, 1999 में 14, 1998 में 5 और 1996 में 11 सीटें.

पार्टी का वोट प्रतिशत भी गिरा है. 2019 में बसपा का वोट शेयर 19.43 प्रतिशत था, अब सिर्फ़ 9.35 प्रतिशत रह गया है. इससे पहले साल 2014 में बसपा का वोट प्रतिशत घटकर 4.14 प्रतिशत पहुंचा था.

चुनाव पढ़ने-बूझने वालों का पसंदीदी शगल होता है यूं होता तो क्या होता... ये कुछ-कुछ ऐसा ही है. इसकी प्रबल संभावना है कि बसपा के कोर वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा सपा के हिस्से छिटका हो. कुछ लोगों ने इसमें ‘संविधान फ़ैक्टर’ भी तलाशा. मगर जब दी लल्लनटॉप ने प्रोफ़ेसर और लेखक बद्री नारायण से बात की, तो उनका कहना था कि बिना विस्तृत डेटा के कुछ भी कहना ठीक नहीं. ऐसा तो हो नहीं सकता कि जाटवों का सारा वोट - कुल 13% वोट शेयर - सपा को चला गया हो. ऐसा होता, तो बसपा के प्रत्याशियों को एक भी वोट न पड़ता. और जितना गया भी है, वो संविधान फ़ैक्टर की वजह से ही है, ये कहना भी माकूल नहीं. 

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: NDA और INDIA गठबंधन की मीटिंग में आज क्या तय हुआ?

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