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विधानसभा रिजल्ट

विधानसभा चुनाव 2024 में पूछे जाने वाले प्रश्न

महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. जहां महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं, वहीं झारखंड में सीटों की संख्या 81 है. महाराष्ट्र में मुकालबा दो बड़े गठबंधनों महायुति और महाअघाड़ी के बीच है. महायुति में BJP, शिवसेना (शिंदे गुट) और NCP (अजित गुट) शामिल हैं. वहीं महाअघाड़ी कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट) और NCP (शरद गुट) का गठबंधन है. इधर, झारखंड में लड़ाई BJP वाले NDA और कांग्रेस-JMM वाले INDIA गठबंधन के बीच है. ये चुनाव कैसे हो रहे हैं? मतदाता सूची में आपका नाम जुड़ा है या नहीं, ये कैसे पता करेंगे? अगर वोटर आईडी कार्ड नहीं बना है तो क्या फिर भी आप अपना वोट डाल सकते हैं? ऐसे कई सवाल हैं जो इन दो राज्यों के मतदाताओं के मन में उठ रहे हैं. वोटर्स की सुविधा के लिए हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब यहां दे रहे हैं.

अपने पोलिंग बूथ का पता कैसे लगाएं?

अपने पोलिंग बूथ की जानकारी के लिए चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा. इसके बाद आप राज्य चुनें फिर उसमें अपनी संसदीय सीट का चुनाव करें. आखिर में आपको अपने विधानसभा क्षेत्र का चुनाव करना है. इसके बाद आपको पोलिंग बूथ का पता मिल जाएगा.

मेरे निर्वाचन क्षेत्र से कौन-कौन उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं?

राष्ट्रीय मतदाता पंजीकरण पोर्टल (https://voters.eci.gov.in/Homepage) पर अपना ब्यौरा दर्ज करें. इसके बाद पोर्टल आपके निर्वाचन क्षेत्र का नाम और अन्य जरूरी जानकारियां मुहैया कराएगा.

क्या एक मतदाता एक ही समय दो जगहों पर अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करा सकता है?

दो अलग-अलग स्थानों, राज्यों या क्षेत्रों से पंजीकरण करना अवैध है. यदि कोई मतदान की संस्था को मूर्ख बनाने की कोशिश करता है, तो वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 31 के तहत दंडित किया जा सकता है.

फॉर्म 6, 6A, 8 और 8A क्या हैं?

चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सहूलियत के लिए फॉर्म 6, 6A, 8 और 8A की व्यवस्था की है. चुनाव की तारीख के एलान से पहले तक जिन मतदाताओं की उम्र 18 वर्ष की हो गई है, ऐसे लोगों को फॉर्म 6 भरना होगा. वहीं भारतीय मूल के विदेशों में रहने वाले उन लोगों को फॉर्म 6A भरना होगा जो चुनाव में हिस्सा लेना चाहते हैं. जिन लोगों को वोटर कार्ड पर अपना नाम, फोटो, उम्र, वोटर कार्ड (EPIC) नंबर, पता, जन्मतिथि, रिश्तेदार का नाम, रिश्तों के प्रकार, लिंग में बदलाव और दूसरे सुधार करने हों, उन्हें फॉर्म 8 भरना होगा. यदि किसी मतदाता ने अपने संसदीय क्षेत्र में अपना ठिकाना एक जगह से दूसरे जगह बदल लिया है तो उसमें बदलाव के लिए उसे फॉर्म 8A ऑनलाइन भरना होगा.

मतदाता सूची में नाम जोड़ने या बदलाव के लिए दिए गए अपने आवेदन की स्थिति कैसे जानें?

मतदाता को इस लिंक https://electoralsearch.in/ पर जाकर मतदाता सूची को देखना होगा. अगर आपका नाम सूची में है तो आप मत डालने के लिए योग्य हैं, नहीं तो आपको इस लिंक https://www.nvsp.in/ पर जाकर दोबारा से रजिस्टर करना होगा. ऐसी स्थिति में आप मतदाता हेल्पलाइन ऐप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

क्या आधार कार्ड दिखाकर वोट डाला जा सकता है?

हां, अगर आपका नाम मतदाता सूची में है तो आप मतदान वाले दिन पोलिंग बूथ पर जा सकते हैं और आईडी प्रूफ के रूप में आधार कार्ड दिखाकर अपना वोट डाल सकते हैं.

मतदाता सूची में नाम शामिल कराने के लिए ऑफलाइन आवेदन कैसे करें?

मतदाता को चुनाव पंजीकरण ऑफिसर या उप चुनाव पंजीकरण ऑफिसर या फिर बूथ लेवल ऑफिसर से फॉर्म 6 की 2 प्रति लेकर, उनको भरकर सारे सही दस्तावेजों के साथ जमा करना होगा.

अपने घर से दूर पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं अपना वोट कैसे डाल सकते हैं?

स्टूडेंट्स हॉस्टल/मेस के पते से एक मतदाता के रूप में पंजीकरण कर सकते हैं जहां वह कुछ समय के लिए निवासी हैं. फॉर्म 6 के साथ वो अपने शिक्षण संस्थान के हेडमास्टर/प्रिंसिपल/डायरेक्टर/रजिस्ट्रार/डीन से (चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध फॉर्म 6 से जुड़े एनेक्सर II के अनुसार) एक बोनाफाइड प्रमाणपत्र अटैच कर सकते हैं.

कोई व्यक्ति अगर बेघर है तो क्या उसका नाम भी वोटर लिस्ट में जुड़ सकता है?

जवाब है हां. एक बेघर शख्स भी मत डालने का अधिकार रखता है. वोटर लिस्ट में उसका नाम जोड़ने से पहले एक बूथ स्तर के अधिकारी को उस बेघर व्यक्ति के सोने के स्थान को सत्यापित करना होगा और फिर निवास स्थान के कोई दस्तावेजी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होगी.

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM क्या है?

(EVM) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल वोट डालने और वोटों की गिनती के लिए किया जाता है जिसको मतपत्र के बाद लाया गया. इस मशीन को दो यूनिट के साथ बनाया गया है जिसमें एक कंट्रोल यूनिट और दूसरी बैलेटिंग यूनिट. इन दोनों को एक साथ एक तार से जोड़ा गया है, जिसका कंट्रोल यूनिट पोलिंग ऑफिसर के पास होता है. इस मशीन में उम्मीदवारों के नाम और उनकी पार्टी के चिह्न होते हैं. जिनके ठीक सामने एक बटन रहता है. इसे दबा कर आप उम्मीदवार को वोट कर सकते हैं.

EVM का इस्तेमाल पहली बार कब किया गया? इसे किसने डिजाइन किया?

भारत में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल साल 1982 में केरल राज्य के उत्तरी पारावुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में किया गया था. चुनाव आयोग की टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के साथ मिलकर ईवीएम को डिजाइन किया है. इन मशीनों में दो भाग होते हैं: एक नियंत्रण इकाई और दूसरा केबल द्वारा जुड़ी मतदान इकाई. नियंत्रण इकाई चुनाव अधिकारी के पास होती है, और मतदान इकाई मतदान कक्ष में होती है. कागजी मतपत्र के बजाय, अधिकारी एक डिजिटल मतपत्र जारी करता है, और मतदाता अपने चुने हुए उम्मीदवार के लिए मतदान इकाई पर एक बटन दबाकर अपना वोट डालते हैं.

EVM और VVPAT की मदद से मतों की गिनती कैसे की जाती है?

सबसे पहले मतगणना केंद्र पर पोस्टल बैलट गिने जाते हैं. पोस्टल बैलट सर्विस वोटर, चुनाव प्रक्रिया में शामिल कर्मचारी होते हैं. इनकी गिनती के आधे घंटे के बाद ईवीएम से डाले गए वोटों की गिनती शुरू होती है. पोस्टल बैलट भी अब ईवीएम के साथ काउंटिंग टेबल पर पहुंच जाते हैं. एक बार में अधिकतम 14 ईवीएम की गिनती की जाती है. मतगणना केंद्र पर तैनात पर्यवेक्षक पहले ईवीएम की सुरक्षा जांच करते हैं. वे इस बात की पुष्ट‍ि करते हैं कि कहीं मशीन से कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गई. बटन दबाकर वोट की गणना करने का काम चुनाव अधिकारी का होता है. उसके बाद ईवीएम के कंट्रोल यूनिट का रिजल्ट बटन दबाने पर ही कुल वोटों का पता चल जाता है. साथ ही यह भी पता चलता है कि किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले. वोटों की गिनती का मिलान पांचों VVPAT से करके रिटर्निंग ऑफिसर को भेजा जाता है.

क्या ईवीएम पर भरोसा किया जा सकता है?

चुनाव आयोग के मुताबिक, ईवीएम बिलकुल सुरक्षित और सटीक हैं. ईवीएम से वोटों की गिनती में तेजी आती है, कागजी मतपत्रों से हफ्तों की तुलना में पूरे निर्वाचन क्षेत् की मतगणना में में केवल कुछ घंटे लगते हैं. यह तेज़ प्रक्रिया छेड़छाड़ के जोखिमों को कम करती है, चुनावी दक्षता को बढ़ाती है. कुछ लोगों द्वारा समय-समय पर चिंताएं जाहिर किए जाने के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि पारंपरिक मतपेटियों की तुलना में ईवीएम में हेरफेर की आशंका कम होती है. ईवीएम की ये खूबियां इन्हें भारत में बड़े पैमाने पर और कुशल चुनावों के संचालन के लिए महत्वपूर्ण बनाती हैं.

किसी पोलिंग बूथ में ईवीएम खराब हो जाने की दशा में क्या होता है?

अगर किसी मतदान केंद्र पर कोई ईवीएम खराब हो जाती है, तो उसे नई ईवीएम से बदल दिया जाता है. ईवीएम में खराबी आने तक रिकॉर्ड किए गए वोट कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में सुरक्षित रूप से स्टोर हो जाते हैं. मतदान केंद्र के अंतिम परिणाम के लिए दोनों नियंत्रण इकाइयों के वोटों का मिलान किया जाता है.

मैं पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल करके अपना वोट कैसे डाल सकता हूं?

आप डाक मतपत्र या पोस्टल बैलट (Postal Ballot) का उपयोग करके केवल तभी मतदान कर सकते हैं यदि आप सेना और सरकार के लिए काम करते हैं या चुनाव ड्यूटी पर हैं और अपने राज्य के बाहर तैनात हैं; या आपको 'प्रिवेंटिव डिटेंशन' के रूप में हिरासत में लिया गया है.

नोटा (NOTA) क्या है, इसकी शुरुआत कब हुई?

नोटा या 'इनमें से कोई नहीं' ईवीएम पर एक मतदान विकल्प है जो मतदाताओं को अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक उम्मीदवार को अस्वीकार करने की अनुमति देता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अक्टूबर 2013 में इसका प्रावधान किया गया. 2015 के विधानसभा चुनाव में, बिहार में सबसे अधिक 2.48 प्रतिशत NOTA वोट दर्ज किए गए, उसके बाद 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 1.8 प्रतिशत वोट दर्ज किए गए. 2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में, छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 1.29 प्रतिशत नोटा वोट दर्ज किए गए.

अगर नोटा के तहत पड़े वोटों की संख्या सारे उम्मीदवारों को मिले वोटों से ज्यादा हो तो क्या होगा?

चुनाव आयोग के अनुसार, भले ही नोटा चुनने वाले मतदाताओं की संख्या किसी भी उम्मीदवार को मिले वोटों की संख्या से अधिक हो, फिर भी सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाना चाहिए.

निर्वाचक पंजीकरण अफसर के खिलाफ शिकायत कैसे दर्ज कराई जा सकती है?

इसके लिए कई संस्थाएं हैं जहां आप निर्वाचक पंजीकरण ऑफिसर की शिकायत दर्ज करा सकते हैं. संशोधन अवधि के दौरान इसकी शिकायत जिला चुनाव अधिकारी के पास कर सकते हैं. इसके बाद आपकी शिकायत जिला मजिस्ट्रेट/अपर डीएम/कार्यकारी मजिस्ट्रेट/जिले के संबंधित जिला कलेक्टर के पास आएगी. अंत में, अपीलीय प्राधिकार के आदेश के खिलाफ राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के सामने अपील होगी.

चुनाव के दौरान किसी भी गलत गतिविधि की शिकायत कैसे करें?

ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने के लिए NGSP के पोर्टल https://eci-citizenservices.eci.nic.in/default.aspx पर जाकर शिकायत दर्ज करा सकते हैं. शिकायत दर्ज कराने के बाद आपको एक आईडी मिलेगी, जिससे आप इस https://eci-citizenservices.eci.nic.in/trackstatus.aspx पर जाकर उसकी स्थिति की जानकारी ले सकते हैं. या फिर आप complaints@eci.gov.in. पर मेल कर सकते हैं.

एग्जिट पोल क्या होता है?

एग्जिट पोल के नतीजे हमेशा मतदान के आखिरी दिन ही जारी किए जाते हैं. हालांकि, डेटा कलेक्शन जिस दिन वोटिंग होती है उस दिन भी किया जाता है. आखिरी फेज की वोटिंग के दिन जब मतदाता वोट डालकर निकल रहा होता है तब उससे पूछा जाता है कि उसने किसे वोट दिया. इस आधार पर किए गए सर्वेक्षण से जो व्यापक नतीजे निकाले जाते हैं, उसे ही एग्जिट पोल कहते हैं. आमतौर पर टीवी चैनल वोटिंग के आखिरी दिन एग्जिट पोल दिखाते हैं.

एग्जिट पोल की शुरुआत कब हुई?

एग्जिट पोल शुरू करने का श्रेय नीदरलैंड्स के एक समाजशास्त्री और पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम को जाता है. उन्होंने 15 फरवरी, 1967 को पहली बार इसका इस्तेमाल किया था. नीदरलैंड्स में हुए चुनाव में उनका आकलन सटीक बैठा था. जबकि भारत में इसकी शुरुआत का श्रेय इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के मुखिया एरिक डी कोस्टा को जाता है. चुनाव के दौरान इस विधा द्वारा जनता के मिजाज को परखने वाले वे पहले व्यक्ति थे.

पोस्ट पोल सर्वे क्या होता है?

पोस्ट पोल एग्जिट के परिणाम ज्यादा सटीक होते हैं. एग्जिट पोल में सर्वे एजेंसीज मतदान के तुरंत बाद मतदाता से राय जानकर मोटा-मोटा हिसाब लगा लेती हैं. जबकि पोस्ट पोल हमेशा मतदान के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं. जैसे मान लीजिए 6वें चरण की वोटिंग 12 मई को हुई थी, तो सर्वे करने वाली एजेंसी मतदाताओं से 13, 14, या 15 मई तक इस चरण में वोट देने वाले मतदाताओं से उनकी राय जानने की कोशिश करें, तो इसे पोस्ट पोल कहा जाता है.

ओपिनियन पोल क्या होता है?

ओपिनियन पोल एग्जिट पोल से अलग होते हैं. ओपिनियन पोल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल पत्रकार, चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसीज करती हैं. इनके जरिए पत्रकार विभिन्न मसलों, मुद्दों और चुनावों में जनता की नब्ज टटोलने का प्रयास करते हैं. इस विधि का श्रेय जॉर्ज गैलप और क्लॉड रॉबिंसन को जाता है. उन्होंने ही सबसे पहले इसका इस्तेमाल किया था.

ओपिनियन पोल के लिए सैंपलिंग कैसे होती है?

ओपिनियन पोल तैयार करने में सबसे बड़ा काम फील्ड वर्क का होता है. इसकी सैंपलिंग के लिए चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसी के कर्मचारी आम लोगों से मिलते हैं और कुछ सवाल पूछते हैं. कैंडिडेट अच्छा है या बुरा. इस आधार पर भी एक मोटा-माटी राय जान ली जाती है. वहीं इस प्रक्रिया में जिन लोगों को शामिल किया जाता है उन्हें एक फॉर्म भी भरने को दिया जाता है. फॉर्म को भरवाने की भी एक लंबी प्रक्रिया होती है. मतदाताओं की पहचान गुप्त रहे और वो बेझिझक आपनी राय दें, ऐसे में उनके लिए सीलबंद डिब्बा रखा जाता है. ताकि वे अपने पसंद के उम्मीदवार के बारे में भरा पर्चा उसमें डाल दें. ओपिनियन पोल में सबसे महत्वपूर्ण चीज सैंपलिंग होती है. सैंपलिंग का मतलब है कि किन लोगों से राय जानने की कोशिश की गई है या की जाएगी.

आदर्श आचार संहिता क्या होती है?

आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) दिशा-निर्देशों का एक सेट है जिसका उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों और सरकारों को चुनावों को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए पालन करना चाहिए. यह मूल रूप से 'क्या करें और क्या न करें' का एक सेट है जो चुनावों से पहले राजनीतिक दलों के आचरण को नियंत्रित करता है. इनमें आमतौर पर सरकारी घोषणाओं और मुफ्त सुविधाओं पर प्रतिबंध शामिल हैं, जो मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं. चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तारीखों की घोषणा होते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है.

क्या कोई सांसद भी विधानसभा चुनाव लड़ सकता है?

हां, एक संसद सदस्य भारत में विधानसभा चुनाव लड़ सकता है. हालांकि, नियमों के मुताबिक, जीत हासिल होने की सूरत में उन्हें विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के 14 दिनों के भीतर लोकसभा से इस्तीफा देना होगा. यदि वह चौदह दिनों के भीतर दो में से एक सदस्यता से इस्तीफा देने में विफल रहते हैं, तो विधानसभा में उनकी सीट खाली हो जाएगी. इसलिए वे दोनों पदों पर नहीं रह सकते

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