21 May 2024
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सिलिकॉन इंटेलिजेंस और सुपर ब्रेन जैसी कुछ कंपनियों ने मरे हुए लोगों का डिजिटल वर्जन बनाना शुरू कर दिया है. इन्हें डिजिटल घोस्ट, ग्रीफ बॉट या डेड बॉट नाम दिया जा रहा है.
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डिजिटल बॉट उसी शख्स की तरह बोलता और दिखता है, जैसे वो जब मौजूद थे. ये बॉट जेनरेटिव AI वाली तकनीक पर काम करते हैं.
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इसके साथ एक और जटिल सा शब्द आता है, लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM). ये दोनों क्या बला हैं? और इनसे लोगों को ‘अमर’ कैसे किया जा रहा है?
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LLM यानी लार्ज लैंग्वेज मॉडल, ये ऐसे डिजिटल मॉडल हैं, जो बहुत ज्यादा डाटा या जानकारी से लैस होते हैं. कहें तो इन्हें इस डाटा के आधार पर ट्रेन किया जाता है. ताकि ये इंसानी भाषा जैसी नकल कर पाएं.
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हालांकि LLM का नाम AI की चर्चा के साथ ही ज्यादा लिया जाने लगा. लेकिन इनपर काफी पहले से काम चल रहा है. IBM, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियां इस पर सालों से काम करती आई हैं.
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इंसानी भाषा को समझकर (Natural Language Processing, NLP) उसका ठीक-ठीक अर्थ समझने के लिए भी इन्हें ट्रेन किया जाता है. यानी जानकारी तो इन मॉडल्स के पास इंटरनेट वगैरह से आती है.
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इन डिजिटल घोस्ट के मामले में, ये डाटा इन्हें दिया जाता है. शख्स की फोटो, ऑडियो रिकार्डिंग, वीडियो या फिर उस इंसान ने जो कुछ भी लिखा हो उससे.
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इस जानकारी के आधार पर AI की मदद से उस इंसान का डिजिटल वर्जन तैयार किया जाता है. जो वैसी ही बातें कर सकता है, जैसा जिंदा होने पर वो शख्स किया करते थे.
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