टोक्यो में रेपेचेज़ भी काम ना आया
टोक्यो ओलंपिक 2020 में तीन अगस्त को भारत को फ्री स्टाइल रेसलिंग में निराशा हाथ लगी. डेब्यू मुक़ाबला खेल रहीं सोनम को मंगोलिया की रेसलर ने हराया.
62kg कैटेगरी के मुक़ाबले के अंत में स्कोर 2-2 की बराबरी पर रहा. लेकिन ज्यादा पॉइंट वाला दांव लगाने के चलते मंगोलियन रेसलर को जीत मिली.
इस हार के बावजूद सभी भारतीय प्रशंसकों की नज़रें रेसलिंग के एक ऐसे नियम पर टिक गईं जो सोनम के मेडल की उम्मीद जगा सकता था. वो नियम है रेपेचेज़ नियम.
रेपेचेज़ नियम के मुताबिक, शुरुआती राउंड में जीतने वाला खिलाड़ी अगर फाइनल में पहुंच जाए तो हारे हुए खिलाड़ी को ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने का मौका मिलता है.
सोनम के केस में ऐसा नहीं हुआ. मंगोलियन रेसलर बोलोरतूया क्वार्टर फाइनल में जीत के बाद ताइबे यूसेन से हारकर बाहर हो गईं.
अब से पहले लगातार तीनों ओलंपिक में भारतीय पहलवान सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त और साक्षी मलिक को रेपेचेज़ राउंड में एंट्री के साथ ओलंपिक का मेडल मिला है.
2008 बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार रेपेचेज़ के जरिए ही मेडल तक पहुंच सके थे. 2012 में सिल्वर जीतने से पहले बीजिंग से सुशील ब्रॉन्ज़ मेडल लेकर लौटे थे.
इसके बाद 2012 लंदन ओलंपिक्स में भी रेपेचेज़ नियम का फायदा भारत को मिला और पहलवान योगेश्वर दत्त 60kg वर्ग में ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर आए.
ऐसा ही कुछ साल 2016 रियो ओलंपिक्स में साक्षी मलिक के साथ भी हुआ था. मुकाबला हारने के बाद साक्षी ने रेपचेज़ के जरिए ब्रॉन्ज़ मेडल जीता था.
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