टोक्यो में भारत ने पहली बार ओलंपिक्स फेंसिंग यानी तलवारबाजी में हिस्सा लेकर इतिहास रचा है. भवानी देवी ने ओलम्पिक्स में भारत का तलवारबाजी में डेब्यू करवाया है.
ओलंपिक के राउंड ऑफ 64 में भवानी देवी ने तुनिशिया की नादिआ बिन अज़ीज़ी को 15-3 से हराया. हालांकि अगले राउंड में वो फ्रांस की मेनन ब्रूनेट से हार गईं.
भवानी का इस मकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था. एक वक्त पर भवानी के तलवारबाजी करियर के लिए उनकी मां ने अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे.
फिर भवानी के इंटरनेशनल करियर की शुरुआत भी बेहद खराब रही. उन्हें पहले ही इंटरनेशनल कंपटिशन में ब्लैक कार्ड पा चुकी थीं.
बाउट के लिए 3 मिनट की देरी से पहुंचने के लिए भवानी को सजा मिली. तलवारबाजी में ब्लैक कार्ड से बड़ी पेनल्टी होती है. यानि आपको टूर्नामेंट से बाहर कर दिया गया है.
भवानी 2016 के रियो ओलंपिक को चूक गईं थीं. जिसके बाद भवानी ने पांच साल तक यूरोप में ट्रेनिंग की. ट्रेनिंग के साथ इवेंट्स में भी भवानी अकसर अकेली भारतीय ही रहती थीं.
साल 2019 में भवानी ने अपने पिता को खो दिया. लेकिन भारत के लिए ओलंपिक्स खेलने के उनके सपने ने उन्हें इस खेल से कभी भी अलग नहीं होने दिया.
आखिरकार 2021 में ओलंपिक्स में भारत की एंट्री के साथ भवानी का वो सपना सच हुआ है. ओलम्पिक्स में तलवारबाजी 1896 से खेली जा रही है.
लेकिन 125 सालों के तलवारबाज़ी के इतिहास में कभी भी कोई भारतीय टोक्यो ओलंपिक से पहले इस इवेंट तक नहीं पहुंच सका.
भवानी देवी भले ही टोक्यो ओलंपिक्स में खिताब नहीं जीत पाईं. लेकिन उन्होंने देश को एक उम्मीद ज़रूर दी है कि भारत तलवारबाज़ी में भी ओलंपिक्स में शिरकत कर सकता है.