Zomato को 'पकाया' दीपेंदर गोयल ने, लेकिन 'स्वाद' चखने का असली मजा ये आदमी ले रहा
इस शख्स का नाम है Sanjeev Bikhchandani. यही भाईसाहब हैं जिन्होंने ऐप को पहले-पहले फंडिंग दी थी. इतनी फंडिंग कि आज वो कंपनी के सबसे बड़े शेयर होल्डर हैं. मगर ये उनके परिचय का इत्तू सा हिस्सा है. संजीव तो ‘डॉट कॉम’ के किंग हैं. पूरी बात बताते हैं.
Zomato का मार्केट कैप 2 लाख करोड़ रुपये से भी ऊपर पहुंच गया है. कंपनी ने 2000 करोड़ रुपये में Paytm का टिकट बिजनेस खरीद लिया है. Zomato के कॉन्सर्ट में सिंगर Dua Lipa परफ़ॉर्म करेंगी, वगैरा-वगैरा. ऐसा लगता है Zomato तो वाकई में बहुत मोटो (बड़ा) हो गया. लेकिन ऐसा हुआ कैसे है और किस वजह से हुआ. जवाब में शायद ऐप के फाउंडर और सीईओ Deepinder Goyal का नाम कौंधेगा. सच बात है, खाने का ऐप ‘पकाया’ तो Deepinder ने ही. मगर ‘मसाले’ किसी और की देन हैं.
इस शख्स का नाम है Sanjeev Bikhchandani. यही भाईसाहब हैं जिन्होंने ऐप को पहले-पहले फंडिंग दी थी. इतनी फंडिंग कि आज वो कंपनी के सबसे बड़े शेयर होल्डर हैं. मगर ये उनके परिचय का इत्तू सा हिस्सा है. संजीव तो ‘डॉट कॉम’ के किंग हैं. पूरी बात बताते हैं.
डॉट कॉम के धुरंधरZomato और मिस्टर Sanjeev Bikhchandani ने मिल कर क्या खिचड़ी पकाई, वो बाद में बताएंगे. पहले इनकी नेटवर्थ जान लीजिए. फोर्ब्स के मुताबिक 3.8 बिलियन डॉलर. भारतीय रुपये में कहें तो 30 हजार करोड़ रुपये के अल्ले-पल्ले. संजीव Info Edge नाम के पोर्टल के मालिक हैं. इस नाम से कोई इन्फो नहीं मिलेगी तो naukri.com, jeevasathi.com, 99acres.com और shiksha.com से पक्का इनफॉर्मेशन मिल जाएगी.
देश के इंटरनेट परिदृश्य में इन कंपनियों को हर कोई जानता है. हमने 'इंटरनेट' जानकर लिखा क्योंकि संजीव ने Info Edge को तब बनाया जब मोबाइल ऐप्स का जमाना नहीं था. इंटरनेट भी बेहद सीमित लोगों के पास था. संजीव IIM Ahmedabad से पढ़ाई करने के बाद Horlicks ब्रांड के साथ काम कर रहे थे. मगर साल 1995 में नौकरी छोड़कर Info Edge पोर्टल बनाया.
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दरअसल उस समय फूड बिजनेस में दो ही कंपनियां होती थीं. एक Hindustan Milkfood Manufacturers, जिसके पास Horlicks था. और दूसरी Nestle. कंपटीशन ऐसा कि दोनों कंपनियां एक दूसरे के कर्मचारी भी भर्ती नहीं करती थीं. यही दिक्कत संजीव के लिए आइडिया बना. बोले तो इंसान नौकरी कहां खोजेगा. यहीं संजीव, दीपेंदर से मिले. कैसे वो आगे बताते.
संजीव ने अपना पोर्टल स्टार्ट किया और सिर्फ दो साल बाद यानी 1997 में उन्होंने naukri.com बनाई. वो अखबारों में आने वाले नौकरी के इश्तेहारों को अपने पोर्टल पर अपडेट करते. धीरे-धीरे बात बन गई और पोर्टल पर ट्रैफिक आने लगा.
सबसे कमाल की बात, संजीव ने अपने आपको उस फुग्गे के फटने से भी बचा लिया जो दुनिया की कई कंपनियों को लील गया. दरअसल साल 2000 में इंटरनेट कंपनियों की हालत बहुत खराब हुई. इसे ही ‘dotcom bubble’ कहा गया. बड़े-बड़े दिग्गज, जैसे Webvan, 360Networks इसमें फूट गए. मगर संजीव बच गए. यहां इंटरनेट कंपनियों के एक्सपर्ट संजीव का परिचय समाप्त. अब बात इन्वेस्टर संजीव की.
Zomato को बुलाकर पैसे दिएSanjeev Bikhchandani कंपनी के शुरुआती इन्वेस्टर हैं. दिलचस्प बात ये है कि जहां स्टार्टअप फाउंडर इन्वेस्टर को तलाशते हैं, किसी तरह एक मीटिंग का जुगाड़ लगाते हैं, वहीं Zomato के केस में उल्टा हुआ. संजीव ने दीपेंदर को ढूंढा और इन्वेस्ट किया. हुआ ये कि संजीव के बेटे सप्ताहांत पर खाना खाने के लिए एक पोर्टल का इस्तेमाल कर रहे थे. इसका नाम था FOODIEBAY.
इस पोर्टल पर कई सारे रेस्टोरेंट के मेनू कार्ड लिस्टिड थे. इसकी मदद से खाना ऑर्डर कर सकते थे. संजीव को ये बहुत पसंद आया, लेकिन ये पता नहीं चल रहा था कि इसका कर्ता-धर्ता कौन है. आखिरकार उन्होंने वेबसाइट की पोर्टल डोमेन लिस्ट से दीपेंदर का ईमेल निकाला और उनको मिलने के लिए अपना नंबर ड्रॉप किया.
फिर हुई मुलाकात और संजीव ने FOODIEBAY में एक मिलियन डॉलर लगाए. साल 2008 के हिसाब से 5 करोड़ रुपये. यही FOODIEBAY जो आगे चलकर Zomato बना. पता है-पता है, आप कहोगे कि तुम तो दोनों को साल 1997 में मिला दिए थे. बताते हैं, लेकिन इसके लिए ये जान लीजिए कि Zomato कैसे बना.
दरअसल Deepinder Goyal दिल्ली में ग्लोबल मैनेजमेंट कंपनी Bain Consulting के साथ काम कर रहे थे. यहां लंच टाइम में होती थी भसड़. कंपनी ने पचासों रेस्टोरेंट के मेनू लाकर रखे हुए थे. हर कोई इनसे देखकर ऑर्डर करता और फिर 45-50 मिनट में खाना आता. गोयल इससे पक गए और एक दिन उन्होंने सारे मेनू उठाकर अपने सर्वर पर लोड कर दिए. ऑफिस का काम आसान हो गया. मगर कंपनी का पूरा इंटरनेट ट्रैफिक उनके सिस्टम पर आने लगा.
यहीं उनको आया आइडिया जो FOODIEBAY में बदला. जैसे नौकरी ढूंढने का आइडिया संजीव को आया था, वैसे खाना तलाशने का दीपेंदर को. खुद संजीव कई पॉडकास्ट में इसके बारे में बता चुके हैं. इसलिए हमने लिखा कि संजीव को दीपेंदर काफी पहले ही मिल गए थे.
5 करोड़ से 20 हजार करोड़संजीव ने Zomato को फंडिंग जारी रखी. दीपेंदर का स्टार्टअप देश का पहला यूनिकॉर्न बना. बोले तो जिसकी valuation 1 बिलियन डॉलर (8 हजार करोड़ से ज्यादा) हो गई. पिछले साल जुलाई में मार्केट में लिस्ट होने से पहले संजीव की हिस्सेदारी 14,918 करोड़ रुपये थी. लिस्टिंग के बाद इसमें 5,221 करोड़ रुपये और जुड़े. बोले तो 20 हजार करोड़. माने वो कंपनी के फाउंडर से भी ज्यादा हिस्सेदारी रखते हैं क्योंकि लिस्टिंग के समय दीपेंदर की हिस्सेदारी 9,380 करोड़ रुपये के लगभग थी.
माने असल डिश तो Sanjeev Bikhchandani ने बनाई. वैसे उनके इनवेस्टमेंट की एक कहानी और है. उन्होंने Policybazaar को सिर्फ 45 मिनट में, कागज देखकर ही, 20 करोड़ का चेक फाड़ दिया था. वो कहानी भी कभी बताएंगे.
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