Google, Facebook, Starlink, Amazon और Jio में आपको क्या एक जैसा नजर आएगा? बाहरसे देखने पर सभी तकनीक की दुनिया की दिग्गज कंपनियां हैं. सब अलग-अलग तरीके केप्रोडक्टस पर काम करती हैं लेकिन इनके बीच एक समानता है. ये सभी कंपनियां सैटलाइट(Satellite Internet) से इंटरनेट देने में बहुत दिलचस्पी दिखा रही हैं. हाल फिलहालमें जियो ने लग्जमबर्ग बेस्ड कंपनी SES के साथ देशभर में सैटलाइट ब्रॉडबैंड सर्विसदेने के लिए हाथ मिलाया है. एलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक ने तो इंडिया में इसीसर्विस के लिए बुकिंग भी ले ली थी, लेकिन परमिशन नहीं मिलने के कारण प्लान पर ब्रेकलग गई.दुनिया भर में हाई स्पीड इंटरनेट के लिए ऑप्टिकल फाइबर का इस्तेमाल होता है. करीब30 प्रतिशत देशों में 5G सर्विस है और 4G तो लगभग हर जगह. इतना बड़ा नेटवर्क होने केबावजूद कंपनियां सैटलाइट से इंटरनेट क्यों देना चाहती हैं? क्या सैटलाइट से इंटरनेटदेना आसान है? कैसे काम करती है और किसके काम आ सकती है ये सर्विस? इन्हीं सवालोंके जवाब हम तलाशेंगे.क्यों जरूरत है सैटलाइट इंटरनेट की?बड़े शहरों में रहने पर आपको ऑप्टिकल फाइबर और 4G-5G सर्विस सभी जगह दिखाई पड़ती हैंलेकिन हकीकत थोड़ी जुदा है. बड़े शहरों से दूर जाते ही ऑप्टिकल फाइबर आपको कुछ खासनजर नहीं आएगा. आंकड़ों में भी देखें तो 2020 तक 1.5 लाख ग्राम पंचायत ऑप्टिकल फाइबरसे जुड़े हुए थे. भारत सरकार "डिजिटल इंडिया मिशन" के तहत साल 2023 तक 6.0 लाखगांवों को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य लेकर चल रही है. यदि ऐसा हो गया तो भारतके करीब 90 प्रतिशत गांव ऑप्टिकल फाइबर से जुड़ जाएंगे. इस लक्ष्य तक पहुंच पानाआसान नहीं होगा. एक बार के लिए मान भी लें तो ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क की अपनीचुनौतियां हैं. लाइन बिछाने की परमिशन से लेकर उसको मेंटेन रखने तक. बढ़िया से बिछीहुई लाइन को कब कोई सरकारी एजेंसी उखाड़कर फेंक दे, ये कहा नहीं जा सकता. साथ मेंजिस क्षेत्र में ऑप्टिकल फाइबर बिछना है वहां के समीकरण को भी माकूल बनाना आसाननहीं होता. अब इन सारी बाधाओं को पार पाकर यदि ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क गांव-गांव तकपहुंच भी गया तो क्या गारंटी है कि पब्लिक उसको अपना लेगी. मोबाइल इंटरनेट की अपनीसीमाएं हैं. ऑप्टिकल फाइबर से मिलने वाले इंटरनेट को हर कोई अपनाएगा इसमें डाउट है.टेलिकॉम टॉक के मुताबिक, इंडिया में मई 2021 तक सिर्फ 1 प्रतिशत घरों में ऑप्टिकलफाइबर कनेक्शन थे. दुनियाभर का आंकड़ा भी सिर्फ 30 प्रतिशत पर है. ऐसे में सैटलाइटइंटरनेट के लिए दरवाजा खुल जाता है, क्योंकि वो तो किसी गुब्बारे से, किसी बहुत बड़ेटावर से एक बड़े एरिया को इंटरनेट प्रदान कर सकता है.ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क सभी जगह नहीं है.कैसे काम करता है?सैटलाइट क्या चीज है? अंतरिक्ष में चक्कर लगाने वाले वो डिवाइस जो मौसम की जानकारीसे लेकर, लाइव प्रसारण तक के काम आते हैं. वैसे इंसान के बनाए सैटलाइट से अलगनैचुरल सैटलाइट भी होते हैं, जैसे कि चंद्रमा हमारी पृथ्वी का. इंटरनेट देने के लिएभी सैटलाइट का इस्तेमाल किया जाता है. जो भी इंटरनेट सर्विस प्रोवायडर (ISP) होताहै वो सिग्नल भेजता है सैटलाइट को और वहां से डिश एंटीना के जरिए वो आप तक पहुंचजाता है. भारत में सैटलाइट से इंटरनेट देना कोई नई बात नहीं है. Tikona जैसीकंपनियां इसी तरीके से सर्विस देती हैं. एक मॉडम (डिश/एंटीना), वायरलेस राउटर और छतसे कमरे तक के लिए एक छोटी केबल से ये सर्विस आप तक पहुंच जाती है. ऐसी जगह जहांफाइबर केबल बिछाना मुश्किल है, सुदूर गांवों तक इंटरनेट पहुचाने में सैटलाइटइंटरनेट गेम चेंजर साबित हो सकता है.सैटलाइट इंटरनेट गाँव तक पहुंच सकता है.मुश्किल क्या है?सैटलाइट इंटरनेट की स्पीड पहले के मुकाबले अब काफी अच्छी हो गई है, लेकिन फाइबर सेतुलना नहीं की जा सकती. नॉर्मल इंटरनेट सर्फ करते समय शायद पता ना चले लेकिन हाईग्राफिक्स वाले गेम खेलते समय और 4K में वीडियो देखते समय लेटेंसी महसूस होती है.लेटेंसी वो टाइम है जो डाटा भेजने और रिसीव होने में लगता है. सैटलाइट इंटरनेट मेंआपके डिवाइस से इनफॉर्मेशन पहले एंटीना, फिर ऑर्बिट में स्थित सैटलाइट और फिर आपकेइंटरनेट सर्विस प्रोवायडर (ISP) तक पहुंचता है. आसान भाषा में कहें तो सैटलाइटपृथ्वी की ऊपरी कक्षा में होते हैं, लेकिन ये दूरी पृथ्वी की ऊपरी सतह से करीब22000 मील की होती है. इसी प्रोसेस को फॉलो करने के कारण लेटेंसी 600 मिली सेकंड तकहो सकती है. ऑप्टिकल फाइबर में यही 20-50 मिली सेकंड होती है. सैटलाइट इंटरनेट अभीनॉर्मल इंटरनेट की तुलना में महंगा भी है. तेज बारिश, बर्फबारी और तूफान में सिग्नलके डिस्टर्ब होने की भी एक दिक्कत है. बारिश से होने वाले डिस्टरबेंस को आम भाषामें "रेन फेड" कहा जाता है वो आपने डीटीएच सेवा में भी देखा होगा. भले ये दिक्कतकुछ देर की होती है, लेकिन कई मौकों पर ये थोड़ी सी देर भी भारी पड़ सकती है.बड़ी कंपनियों की दिलचस्पी क्यों?साफ दिखता है कि सैटलाइट इंटरनेट वहां तक पहुंच सकता है जहां ऑप्टिकल फाइबर कापहुंचना बहुत मुश्किल या लगभग असंभव है. अभी भले Google के Project Loon में कोईसरगर्मी ना दिख रही हो, फ़ेसबुक से कोई खबर नहीं आ रही हो, लेकिन कई कंपनियां इस तरफगंभीरता से काम कर रही हैं. फ़ेसबुक सैटलाइट इंटरनेट टीम अब एमेजॉन के साथ इस दिशामें काम कर रही है जिसका लक्ष्य 2029 तक तकरीबन 3236 सैटलाइट स्थापित करना है. Jioऔर Starlink तो हैं ही. तकनीकी दुश्वारियों को यदि दूर कर लिया गया तो भविष्यउज्ज्वल नजर आता है.