पॉलिसी का प्रीमियम अगर दोस्त ने भर दिया तो क्लेम कैंसिल? सच हमसे जान लो गुरु
सोशल मीडिया पर कई ऐसी रील दिखती हैं जिसमें बताया जाता है कि अगर आपके इंश्योरेंस का प्रीमियम आपकी जगह किसी और ने भर दिया तो संबंधित कंपनी आपका क्लेम रिजेक्ट कर सकती है.
एक “WhatsApp यूनिवर्सिटी” क्या कम थी, जो अब Instagram आ गया है. छोटे भइया यानी वॉट्सऐप पर ऊल-जलूल बातें तो फैलती ही थीं. अब नया अड्डा इंस्टाग्राम हो रखा है. एक रील बनाओ और कुछ भी बोल दो. डर और भ्रम का माहौल बनाओ और व्यूज कमाओ. तकरीबन रोज ही ऐसा कुछ नजर आता है. ऐसी ही कई रील कुछ दिनों से नजर आ रहीं, जिसमें इंश्योरेंस को लेकर कुछ भी बोला जा रहा है.
ऐसी रील में बताया जाता है कि अगर आपके इंश्योरेंस का प्रीमियम आपकी जगह किसी और ने भर दिया तो संबंधित कंपनी आपका क्लेम रिजेक्ट कर सकती है. ऐसा करना Money laundering माना जाएगा. वगैरा-वगैरा. इतना पढ़कर अगर आप भी अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी चेक करने जा रहे हैं तो तनिक धीरज धरिए. हम बताते क्या मामला है.
थोड़ी हकीकत और पूरा फ़सानाआप एकदम सही पढ़े, क्योंकि रील में जो कहा जा रहा वो सच है मगर सिर्फ थोड़ा सा. पॉलिसी का प्रीमियम अगर कोई और भरेगा तो उसके कुछ नुकसान तो जरूर हैं मगर जैसा रील में बता दिया, वैसा कछु नहीं है. बहुत माथा पच्ची करने की जरूरत नहीं है. बस एक पॉलिसी का प्रोसेस समझ लेते हैं.
एक पॉलिसी को आप अपने लिए खरीदते हैं. अपने पेरेंट्स से लेकर बच्चे और पत्नी के लिए या फिर अपने परिवार में किसी और के लिए भी. जो आपने अपने लिए पॉलिसी खरीदी है तो प्रीमियम आप ही भरेंगे. अगर किसी और के लिए तो भी आप उस पॉलिसी के प्रपोजर होंगे. मतलब आपकी आईडी इस पॉलिसी के साथ नत्थी होगी. ऐसे में आप पेमेंट करें या फिर जिसके नाम से पॉलिसी है वो. कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आपने पॉलिसी किसी एजेंट से खरीदी है और वो आपकी तरफ से प्रीमियम भर रहा है तब भी सब ठीक है. फिर गलत क्या है? Money laundering कहां से आ गया?
इसके लिए हमने बात की मंदीप से. मंदीप और उनके साथी ऋषभ का Labour Law Advisor के नाम से यूट्यूब चैनल है. जहां ऐसे ही कई मसलों पर बात होती है. मंदीप के मुताबिक,
“जिस पॉलिसी में आप प्रपोजर हैं वहां तो कोई दिक्कत ही नहीं. लेकिन अगर आप अपने दोस्त की पॉलिसी का प्रीमियम भर रहे या वो आपकी, तो इससे उस इंश्योरेंस कंपनी और सरकार, दोनों को दिक्कत है. इसका कारण है पैसे के सोर्स पता नहीं चलना. हालांकि हर पॉलिसी में दिक्कत नहीं मगर जिस पॉलिसी में प्रीमियम पूरा होने के बाद पैसा मिलना है, वहां दिक्कत ही दिक्कत. मतलब ऐसी पॉलिसी जो mature होती है. जैसे मनी बैक, यूलिप आदि. ऐसी पॉलिसी में मुमकिन है कि झोल हो. माने कि पॉलिसी किसी एक व्यक्ति के नाम से ली जाए और उसका प्रीमियम कोई और भरे, वो भी कैश में. जब पॉलिसी पूरी हो जाए तो मिलने वाली धनराशि में से कुछ हिस्सा कमीशन के तौर पर उस व्यक्ति को देकर कांड कर लिया जाए. इसी फर्जीवाड़े को रोकने के लिए थर्ड पार्टी पेमेंट नहीं माना जाता है. ऐसा करना भी Money laundering के दायरे में आएगा.”
लेकिन हेल्थ या टर्म इंश्योरेंस वाली पॉलिसी का क्या? और अगर किसी वजह से पॉलिसी का पेमेंट किसी और को करना पड़ा तो? इस पर मंदीप कहते हैं,
“अगर थर्ड पार्टी आपकी तरफ से पेमेंट करती है तो उसकी जानकारी आपको इंश्योरेंस कंपनी को देनी होगी. मतलब पैन से लेकर KYC तक. ऐसा नहीं है कि गेंद हमेशा पॉलिसी लेने वाले के पाले में है. अगर पेमेंट किया गया और कंपनी ने उसको स्वीकार कर लिया तो फिर वो क्लेम से मना नहीं कर सकते. मतलब उनकी भी पूरी जिम्मेदारी है कि अपने ग्राहक के बारे में पूरी जानकारी रखे.”
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कंपनियां ऐसा करती भी हैं. मसलन पॉलिसी की एक लिमिट रखना. उदाहरण के लिए इनकम का 20 गुणा तक की पॉलिसी मिलती है. एक रुपये की इनकम पर 100 रुपये की पॉलिसी साफ बता देती है कि कुछ तो गड़बड़ है दया.
रही बात रील वाले ज्ञान की, तो उसका क्या ही करें. मुसीबत में अगर आपके दोस्त ने आपकी पॉलिसी का प्रीमियम भर दिया तो अपनी कंपनी का फोन घुमा दीजिए. डरने जैसा कुछ नहीं. अगर इसके बाद भी कोई सवाल या उलझन दिमाग में है तो हमें बताएं.
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