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इमर्शन रॉड पानी कैसे गर्म कर देती है? आपदा में अवसर जैसी है इसके बनने की कहानी

Immersion rod: सर्दी के मौसम में Geyser और इमर्शन रॉड से रोज पानी गर्म करते हैं, आज इनके पीछे की पूरी साइंस भी जान लीजिए, बेहद आसान भाषा में.

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इमर्शन रॉड का काम तो जाबड़ है ही. साथ ही इसके बनने की कहानी भी गजब है. (फोटो: इंडिया टुडे)
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15 जनवरी 2024 (Updated: 15 जनवरी 2024, 20:25 IST)
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कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स हों या ऑफिस जाने वाले युवा, सभी इस सर्दी में रोजाना एक नियम फॉलो करते हैं. सुबह उठकर इमर्शन रोड से पानी गर्म करने का नियम. आपको ये जानकर मज़ा आएगा कि इमर्शन रॉड का कन्सेप्ट इलेक्ट्रिक करंट की एक समस्या से निकला है. यानी वैज्ञानिकों ने आपदा को अवसर में बदल दिया. 1924 में पहली बार इसको जर्मनी के डॉक्टर थियोडोर स्टेबेल (Theodor Stiebel) ने बनाया था. आज जानेंगे इलेक्ट्रिक करंट की किस समस्या से इमर्शन रॉड का रास्ता निकला और इमर्शन रॉड कैसे काम करती है. लेकिन, इन सारी बातों को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि इलेक्ट्रिक करंट एक तार में कैसे चलता है.

करंट कैसे चलता है?

सब्स्टेंस या पदार्थ दो तरह के हो सकते हैं.

नंबर 1. जिसमें करंट चल सकता है. जैसे लोहा, कॉपर, एल्युमीनियम. इन्हें हम फिजिक्स की भाषा में कंडक्टर कहते हैं. 

नंबर 2. जिसमें करंट नहीं चल सकता है. जैसे रबर, कोयला,प्लास्टिक इन्हें हम इंसुलेटर कहते हैं.  

कोई कंडक्टर है, कोई इन्सुलेटर है. इसकी वजह क्या है? इसको समझते हैं एक उदहारण से. मान लीजिये आपको अपने शहर से दूसरे शहर जाना है. और आपके पास न गाड़ी है, न किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का जुगाड़. तो क्या आप जा पाएंगे? वैसे ही करंट भी एक रथ पर चढ़ कर चलता है अगर वो रथ नहीं होगा तो करंट चल नहीं पायेगा. करंट के इस रथ का नाम है इलेक्ट्रॉन.

आप जानते हैं कि एक ऐटम में 3 पार्टिकल्स होते हैं- प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन. 

प्रोटॉन और न्यूट्रॉन गेंदों के ढेर की तरह बीच में होते हैं. जिसे हम ऐटम का न्यूक्लियस कहते हैं. और इलेक्ट्रॉन इस ढेर के चक्कर लगाते हैं.

जब किसी कंडक्टर को बिजली से जोड़ा जाता है तब कुछ इलेक्ट्रॉन ऐटम से फ्री होकर एक दिशा में चलने लगते हैं. इन फ्री इलेक्ट्रॉन्स के सहारे करंट आगे बढ़ता है. या यूं कहें इसी मूवमेंट को करंट कहते है. आपके घर में जितनी भी बिजली की वायरिंग है, वो इसी सिद्धांत पर काम करती है.

लेकिन कहानी सिर्फ इतनी नहीं है. आपने देखा होगा जब बहुत देर तक किसी भी बिजली से चलने वाली चीज जैसे फ्रिज, टीवी का उपयोग होता है. तब उसका तार गरम हो जाता है. कई बार घर में बिजली के तार गरम होकर पिघल भी जाते हैं और आग भी लग जाती है.

ये करंट की बड़ी समस्या है. अब इसकी वजह समझिए.

करंट की इस समस्या की वजह

इसकी वजह है रेजिस्टेंस. रेजिस्टेंस माने बाधा या प्रतिरोध. इसको समझने के लिए फ्रिक्शन को समझना होगा. फ्रिक्शन माने रगड़ना.

इस दुनिया में हर चलती चीज़ के रुकने के पीछे फ्रिक्शन एक बड़ी वजह है. जैसे आप फुटबॉल को लात मारते हैं तो ज़मीन पर रगड़ते हुए जाती है, फिर रुक जाती है. क्यों? क्योंकि ज़मीन उस फुटबॉल के मूवमेंट के उलटे दिशा में फ्रिक्शन की ताकत लगाती है.

अब ऐसा ही कंडक्टर के अंदर चलने वाले फ्री इलेक्ट्रॉन्स के साथ भी होता है. जब ये फ्री इलेक्ट्रॉन्स एक दिशा में चलते हैं. तब उसी कंडक्टर में मौजूद ऐटम और दूसरे फ्री इलेक्ट्रॉन्स टकराते हैं. इसकी वजह से हीट या गर्मी बनती है. जैसे कार के चलने के बाद उसके टायर ज़मीन में रगड़ने की वजह से गर्म हो जाते है. वैसे ही इन फ्री इलेक्ट्रॉन्स के साथ भी होता है.

करंट के मूवमेंट पे जब फ्रिक्शन लगता है. तब इसे फिजिक्स की भाषा में रेजिस्टेंस कहते हैं. आपने इलेक्ट्रीशियन से कई बार सुना होगा. कॉपर का वायर एल्युमीनियम के वायर से ज्यादा अच्छा होता है. क्योंकि कॉपर का रेजिस्टेंस, एल्युमीनियम के मुकाबले कम होता है और इसलिए वो कम गर्म होता है. और आग लगने के चांस भी कम हो जाते हैं.

आपदा में अवसर

अब समस्या का रास्ता तो वैज्ञानिकों ने खोज निकाला. रास्ता सिंपल था जिसका सबसे कम रेजिस्टेंस हो, उसका तार बनाओ. जैसे कॉपर. लेकिन रेजिस्टेंस की समस्या को वैज्ञानिकों ने अपना साथी बनाया और इसके सहारे दूसरी मुश्किलों का हल निकाला. जैसे- प्रेस बनाया. जिससे कपड़े प्रेस हो सकें. सर्दियों में गर्म पानी की दिक्कत दूर करने के लिए इमर्शन रॉड बनाई.

अब समझिए इमर्शन रॉड का स्ट्रक्चर.

इसमें 3 मुख्य हिस्से हैं- ब्लैक बॉक्स, मेटल रॉड और कॉइल

एक-एक करके तीनों को समझते हैं.

ब्लैक बॉक्स में बिजली के तार होते हैं. इसका एक हिस्सा प्लग से कनेक्ट होता है और दूसरा हिस्सा मेटल रॉड से. प्लग से बिजली आती है और मेटल रॉड में जाती है.

मेटल रॉड

ये रॉड बनती है स्टील या कॉपर से. जिससे इसमें जंग न लगे, क्योंकि ये पानी में डूबी रहती है. इस रॉड का एक सिरा जुड़ता है फेस से और दूसरा न्यूट्रल से. फेस से करंट आता है और न्यूट्रल की तरफ से बाहर निकलता है. इसमें एक अर्थिंग का तार भी होता है, जिससे एक्स्ट्रा करंट को हटाया जा सके. 
ये रॉड अंदर से खोखली होती है. इसके अंदर Nichrome के तार की स्पाइरल वायरिंग होती है. 
ये Nichrome का तार क्या होता है? Nichrome एक अलॉय है. माने धातुओं का मिक्सर. इसमें 4 धातु होती हैं, अलग-अलग अनुपात में. इसमें 75% निकल, 20% क्रोमियम और कुछ प्रतिशत मैंगनीज और लोहा.

इस Nichrome वायर का रेजिस्टेंस बहुत ज्यादा होता है. इस वजह से ये बिजली को गर्मी में बदल देता है.
इस वायर और रॉड के बीच में मेग्नीशियम ऑक्साइड का पाउडर होता है. जिससे करंट न लगे.

अब कॉइल की बात. कॉइल का सिर्फ एक मकसद है. इस रॉड की लम्बाई को बढ़ाना. कैसे? अगर हम इस रॉड को सीधा रखेंगे तब ये बहुत बड़ी हो जाएगी.

लेकिन इस रॉड को स्पाइरल बनाने से दो फायदे हैं. एक तो छोटी जगह में उतनी ही लंबाई फिट हो जाती है. दूसरा स्पाइरल एरिया में ज्यादा इंटेंसिटी से हीटिंग हो पाती है. अब ये समझते हैं इमर्शन रॉड काम कैसे करती है?

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#इमर्शन रॉड की वर्किंग

इसकी वर्किंग इसके स्ट्रक्चर से भी ज्यादा सिंपल है. प्लग को स्विच बोर्ड में लगने के बाद. करंट ब्लैक बॉक्स तक आता है. जहां ये तार Nichrome वायर से जुड़ जाते है. रेजिस्टेंस के चलते तार बहुत जल्दी गर्म हो जाता है. वो गर्मी मैग्नीशियम ऑक्साइड पाउडर में आती है और वहां से मेटल रॉड और कॉइल में. कॉइल और मेटल रॉड से पानी धीरे-धीरे गर्म हो जाता है.

अगर पानी में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होगी तो जल्द ही कॉइल और मेटल रॉड के ऊपर सफेद रंग की परत चढ़ जाती है. इसको आप घर में भी सही कर सकते है. सिर्फ इस रॉड को थोड़ी देर के लिए सिरके में डूबा दीजिए.

इमर्शन रॉड हालांकि, बहुत कॉमन टेक्नोलॉजी पर बनी है. लेकिन इसका इस्तेमाल घरों, अस्पतालों और फैक्ट्रियों में भरपूर होता है. जहां जितनी पॉवर के वाटर हीटर की जरूरत होती है, उसी हिसाब की रॉड लगाई जाती है. जैसे घरों में आम तौर पर 1000 से 1500 वॉट की इमर्शन रॉड होती है.

(ये रिपोर्ट हमारे साथी आकाश ने लिखी है)

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