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सिनेमा हॉल में फिल्म एन्जॉय करते हुए कभी DCP, KDM के बारे में सोचा है?

एक फिल्म को बनने के बाद सिनेमा हॉल तक पहुंचने के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. DCP बनना पड़ता है तो KDM का ताला भी खोलना पड़ता है. प्रोड्यूसर से लेकर डिस्ट्रीब्यूटर और एग्ज़िबिटर को पायरेसी रोकने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. आज इसी प्रोसेस की बात करेंगे.

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A digital cinema package is the standard delivery format for film screenings at a digital cinema. Most major movie theatres today are digital cinemas. That means any sort of digital projection, be it a short or feature film, requires a digital cinema package or DCP for short.
फिलम के सनीमा हॉल तक पहुंचने का सफर
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सूर्यकांत मिश्रा
31 जुलाई 2024 (Published: 22:28 IST)
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घर पर फिल्म देखने के लिए क्या करना होता है? टीवी का खटका दबाना होता है या फिर मोबाइल पर उंगलियां फिरानी होती हैं. सिनेमा हॉल में फिल्म देखने के लिए क्या करना होता है? टिकट लेनी होती है. मगर फिल्म दिखाने के लिए क्या करना होता है? आप कहोगे किसको. हम कहेंगे डिस्ट्रीब्यूटर और एग्ज़िबिटर को. आप कहोगे ये क्या बला है. हम कहेंगे बताते हैं लेकिन पहले ये जान लीजिए कि एक फिल्म को हॉल में दिखाने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं.

DCP बनना पड़ता है तो KDM का ताला भी खोलना पड़ता है. पता है अब तक आप पकने लगे होंगे. मन में ख्याल आ रहा होगा कि अमा यार खाम खा क्यों कहानी बना रहे. साफ-साफ बताओ कि किसे क्या करना पड़ता है. बताते हैं दोस्त क्योंकि बात ही कहानी के सबसे बड़े माध्यम मतलब फिल्म की है तो एक ओपनिंग तो बनती है ना. ओपनिंग के बाद अब बताते हैं कि एक फिल्म बनने के बाद सिनेमा हॉल में पहुंचती कैसे है.

कौन होते हैं डिस्ट्रीब्यूटर और एग्ज़िबिटर?

डिस्ट्रीब्यूटर मतलब वो आदमी या कंपनी जो फिल्म के प्रोड्यूसर से उसे खरीदता है. एक फिल्म के एक से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर हो सकते हैं. इसके बाद नंबर आता है एग्ज़िबिटर, मतलब सिनेमा हॉल के मालिक का. जैसे PVR या कोई और थियेटर. यहां फिल्म पहुंचती है DCP के माध्यम से.

कौन है DCP?

डीसीपी मतलब सीनियर पुलिस अंकल नहीं, बल्कि Digital Cinema Package. अपनी भाषा में कहें तो सीडी, डीवीडी, हार्ड ड्राइव. एक किस्म का स्टोरेज डिवाइस जो सिनेमा के महंगे प्रोजेक्टर में इस्तेमाल होता है. इसके अंदर फिल्म का पूरा माल मतलब ऑडियो, वीडियो और मेटाडेटा होता है. मेटाडेटा से मतलब फिल्म के सबटाइटल. हालांकि इसको प्रोजेक्टर में खोंसने से काम नहीं चलता, क्योंकि ये इंक्रिप्टेड  होती है. मतलब इसको ओपन करने के लिए एक विशेष किस्म का पासवर्ड चाहिए होता है. इसके कहते हैं KDM.

क्या है KDM?

Key Delivery Message. हर सिनेमा हॉल का अलग-अलग. DCP को प्रोजेक्टर में डालने के बाद इस KDM को डालना होता है. हर बार अलग-अलग. मतलब जब भी शो होगा तब ये प्रोसेस दोहराया जाता है. ये सब भी पहले से तय होता है. इतना सब होने के बाद फिल्म परदे पर उतरती है. हमें पता है कि आपके मन में सवाल होगा कि इतने बड़े प्रोसेस की क्या जरूरत. एक पेन ड्राइव में डाल देते. नहीं जनाब, क्योंकि पेन ड्राइव से लेकर दूसरे डिवाइस को ओपन करना, उनकी कॉपी करना आसान है. मगर DCP को 'तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है'.

How Do Movies Get to Movie Theaters dcp to kdm
सांकेतिक तस्वीर (IMT)

प्रोड्यूसर से लेकर डिस्ट्रीब्यूटर और एग्ज़िबिटर का 'एकके मकसद है'. कैसे भी फिल्म पायरेसी को रोकना. इसलिए ये प्रोसेस अपनाया जाता है.

वीडियो: DDLJ का ये सीन In The Line Of Fire से हूबहू कॉपी किया गया है?

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