Google और Apple का याराना Facebook का बंटाधार कैसे कर रहा है?
सुंदर पिचाई और टिम कुक के याराना वाली तस्वीर ने मार्क जकरबर्ग की टेंशन बढ़ा रखी है.
अमेरिका के सिलिकॉन वैली में मार्च 2017 कि एक शाम दो लोगों ने खाना खाया और एक कंपनी को खोखला करने की इबारत लिख डाली. हम बात कर रहे हैं Apple और Google के सीईओ के Tamarine नाम के एक महंगे से वियतनामी रेस्टोरेंट में हुए प्राइवेट डिनर की. अगली सुबह ये खबर अमेरिका से लेकर दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियां बनी. अब ये तो तय था कि ऐपल के सीईओ टिम कुक और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने बिना वजह ही तो गलबहियां डालकर डिनर नहीं किया होगा. क्योंकि उस शाम दोनों दिग्गजों ने टेक जगत के इतिहास में सबसे लाभदायक सौदे को रिन्यू किया जिसका असर आज दिख रहा है, वो भी एक तीसरी दिग्गज कंपनी Facebook पर.
मशहूर लेखक Steve Sims ने भी अपने इंस्टा अकाउंट पर उसी दिन दोनों कि फोटो शेयर करते हुए लिखा था, 'आप जानते हैं ये अच्छा रेस्टोरेंट है, जब टिम कुक और सुंदर पिचाई एक ही जगह पर हों.'
कहानी भले फिल्मी लगे, लेकिन पूरी सच है. जय और वीरू टाइप (Apple and Google) इस सौदे से किसको हुआ फायदा और गब्बर कि तरह किसको हो रहा है तगड़ा नुकसान, आपके सारे सवालों के जवाब हम देंगे आपको.
गूगल, ऐपल, फ़ेसबुक, सैमसंग ये सब टेक जगत की दिग्गज कंपनियां हैं. दिग्गज कितनी ही हो, लेकिन कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ना बंद नहीं करतीं. कभी एक किसी पर केस करता है तो कभी दूसरा अपने नुकसान के लिए किसी तीसरे को जिम्मेदार मानता है. आपको याद होगा कैसे कुछ महीने पहले जब मेटा (फ़ेसबुक) के ऐक्टिव यूजर्स कम हुए और जेब पर तगड़ा फटका लगा तो उसने टिकटॉक के साथ ऐपल की प्राइवेसी पॉलिसी को भी कसूरवार ठहराया. मेटा के चीफ फाइनेंस ऑफिसर डेविड वेनर ने ऐपल और गूगल के बीच सांठ गांठ होने का आरोप भी जड़ दिया. बोले कि गूगल को ट्रैक करने की इजाजत होने से टार्गेटेड एडवर्टाइजिंग में मदद मिलती है. अभी कुछ दिन पहले मेटा ने यही राग अलापते हुए कहा कि वो नई भर्तियां नहीं कर रहे. कारण वही, ऐपल का ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी (ATT) फ्रेमवर्क.
अब इस बात में सच्चाई तो है, क्योंकि ऐपल की प्राइवेसी पॉलिसी वाले फ्रेमवर्क से गूगल बाबा बाहर हैं. ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी (ATT) फ्रेमवर्क के बारे में हमने आपको विस्तार से बताया है, लेकिन आपकी जानकारी के लिए शॉर्ट एंड स्वीट तरीके से फिर से बता देते हैं. ऐपल ने पिछले साल अप्रैल में एक नया सॉफ्टवेयर अपडेट 14.5 पुश किया. नए अपडेट के मुताबिक, ऐप डेवलपर को इस बात के लिए फोर्स किया गया कि वो एक पॉपअप के जरिए यूजर से परमिशन लें कि वो उनकी गतिविधि ट्रैक कर सकते हैं या नहीं.
अब आईफोन यूजर्स कोई भी नया ऐप डाउनलोड करते हैं तो उन्हें पॉपअप भेजकर एक्टिविटी (गतिविधि) ट्रैक करने की इजाजत भी लेनी होगी. एक बात ध्यान रखिए कि ये इजाजत देना या नहीं देना सिर्फ यूजर के हाथ में है. दो विकल्प होते हैं. उनमें से एक को चुनना होता है. आईफोन यूजर्स खुद भी एक्टिविटी ट्रेकिंग के इस फीचर को इस्तेमाल कर सकते हैं, उसके लिए उनको सेटिंग्स में प्राइवेसी के अंदर ऑप्शन मिलता है. यहां तय किया जा सकता है कि कौन सा ऐप ट्रैक करेगा और कौन सा नहीं.
जैसा डेविड वेनर ने फरमाया दुनियाभर के सारे ऐप्स इसके दायरे में आते हैं सिवाय गूगल और गूगल के दूसरे ऐप्स. ये तो हुई ऐपल की बात, लेकिन गूगल अपने खुद के प्लेटफॉर्म मतलब एंड्रॉयड पर भी फ़ेसबुक की खटिया खड़ी करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है. एंड्रॉयड 12 से ऐड्वर्टाइज़िंग आईडी डिलीट करने का फीचर जुड़ गया है. एक बार आपने ऐड्वर्टाइज़िंग आईडी डिलीट मारी नहीं कि ऐप्स को आपकी पसंद और नापसंद का पता चलने में बहुत दिक्कत होने लगेगी. नतीजा वो टारगेट ऐड्वर्टाइज़िंग नहीं कर पाएंगे.
इतना काफी नहीं था कि अब एंड्रॉयड 13 के साथ कुछ ऐसे फीचर आने वाले हैं जो यूजर ट्रेकिंग पर और लगाम लगाएंगे. उदाहरण के लिए अगर किसी ऐप के पास आपकी निजी जानकारी को एक्सेस करने कि इजाजत है और कुछ दिनों के बाद उसकी जरूरत नहीं तो वो इजाजत अपने आप ही खत्म हो जाएगी. एक शब्द में कहें तो यूजर कि निजता पर दोनों दिग्गज कंपनियां खूब काम करती दिख रही हैं.
फेसबुक की आफतसवाल ये है इन दो दिग्गज कंपनियों की इस दोस्ती का असर किस पर पड़ रहा है. शायद आप समझ गए होंगे. नहीं समझे तो हम बताते हैं. फ़ेसबुक पर. सबको पता है कि फ़ेसबुक का रेवेन्यू मॉडल क्या है. और ऐसे में जब दो दिग्गज कंपनियां यूजर के व्यवहार, उसकी पसंद और नापसंद का ब्योरा फ़ेसबुक और कई दूसरे डेवलपर से साझा नहीं करेंगी तो जाहिर है उनके तो करोड़ों डूब जाएंगे.
लेकिन सवाल ये भी है कि गूगल और ऐपल की दोस्ती सच में है या फिर कुछ और खिचड़ी पक रही है. टेक वर्ल्ड के कई एक्सपर्ट का कहना है कि हकीकत में ये दोस्ती सिर्फ दिखाने के लिए है. अंग्रेजी में इसको Frenemies कहा जाता है. आसान भाषा में समझें तो एक तरफ तो ये कंपनियां यूजर्स को अपने साथ जोड़ने के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा करती हैं, दूसरी तरफ दरवाजे के पीछे से अरबों डॉलर की पार्टनरशिप करती हैं. इधर भी ऐसा ही है, गूगल अपनी दोस्ती के लिए ऐपल को अरबों रुपए अदा करता है.
क्या हुआ झटका लगा! लेकिन ये सच है और इसकी नींव काफी पहले डल गई थी और परवान चढ़ी 2017 में जब गूगल बना डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन ऐपल के प्रोडक्टस पर.
The Wall Street Journal (WSJ) के मुताबिक गूगल के सीईओ जब ऐपल के बोर्ड में शामिल थे तब इस दोस्ती का पौधा रोपा गया था. आगे बढ़ने से पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर गूगल पैसे किस बात के देता है.
दरअसल गूगल ऐपल के सभी उत्पादों जैसे iPhone, iPad, MacBook पर डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन होता है. बोले तो जब आप किसी ऐप पर कुछ सर्च करते हैं या सफारी पर कुछ ब्राउज़िंग करते हैं तो सर्च लिंक खुलता है सीधे गूगल पर. यकीन नहीं होता तो एक बार करके देख लीजिए. अब इससे क्या होगा वो आपको अच्छे से पता है. रकम भी कोई मामूली नहीं हैं. वैसे तो दोनों दिग्गज कभी इसके बारे में नहीं बोलते, लेकिन खबरों कि मानें तो गूगल हर साल 8 से 12 बिलियन डॉलर मतलब 62 हजार करोड़ रुपये भुगतान करता है ऐपल को.
और फ़ेसबुक क्या देता है? एक धेला नहीं. तो जाहिर सी बात है कि ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी (ATT) फ्रेमवर्क से तो गूगल बाबा बाहर ही रहेंगे.
एक कहावत है दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. फ़ेसबुक की दुश्मनी तो दोनों कंपनियों से कैसी है उसके कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे. गूगल ने उठाया इसका फायदा और जा बैठा ऐपल कि गोदी में. एंड्रॉयड तो उसका खुद का बच्चा है तो दिक्कत ही नहीं. कहने का मतलब लगता तो यही है कि टेक जगत के दोनों दिग्गज मिलकर फ़ेसबुक कि किताब बंद करने पर तुले हैं.
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