जितना ज़्यादा, उतना बेहतर. स्मार्टफोन के हिसाब से ये बहस का विषय है. यहां बातस्मार्टफोन की साइज और बैटरी की नहीं हो रही है. हम बात कर रहे हैं फोन की उसमेमोरी की जिसे रैम (RAM) कहते हैं. कंपनी फोन को बेचने के लिए मार्केटिंग मेंप्रोसेसर, डिस्प्ले, कैमरा सेटअप और बैटरी क्षमता के साथ RAM का ज़िक्र ज़रूर करतीहै. फोन में 4 जीबी रैम और 6 जीबी रैम होना आम बात है. अब तो कुछ फोन 18 जीबी रैमके साथ भी आते हैं. रैम तो बढ़ती ही जा रही, लेकिन इसका सीधा कनेक्शन फोन कीपरफॉर्मेंस से पूरी तरह से नहीं है. भले ही कंपनियां ज्यादा रैम से अच्छीपरफॉर्मेंस के दावे कर ले, लेकिन हकीकत ये भी है कि कुछ ऐप्स खोले, फिर पावरफुलग्राफिक्स वाला गेम खेल लिया, और फोन हांफने लगा. अब बात मुद्दे की. क्या आपको सचमें बहुत ज्यादा रैम की जरूरत है? फोन खरीदने से पहले रैम को लेकर कोई न्यूनतमआंकड़ा भी रखना चाहिए? सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि रैम क्या है?स्मार्टफोन में RAM क्या है?Random Access Memory यानी रैम (RAM) के नाम में ही सब साफ समझ आ जाता है. आसानभाषा में कहें तो फोन का वो हिस्सा जो ऐसी जानकारी को स्टोर करता है जो आप अभी तोइस्तेमाल नहीं कर रहे, लेकिन थोड़ी देर में कर सकते हैं. ऐसी मेमोरी जो स्मार्टफोनके इंटरनल स्टोरेज से बहुत तेज है लेकिन कम मात्रा में मिलती है. फोन केस्पेसिफिकेशन में साफ ज़िक्र होता है- 8 जीबी + 128 जीबी. यहां पर 128 जीबी इनबिल्टस्टोरेज है और 8 जीबी रैम. इसे थोड़ा और आसान बनाते हैं. एक डेस्क और उसकेकंपार्टमेंट के उदाहरण से समझते हैं. कोई भी सामान जो आपके हाथों की रेंज में हैउसे इधर-उधर करना बहुत आसान है. फिर भी आप सब कुछ डेस्क के ऊपर नहीं रखते, बल्किउसी डेस्क में कंपार्टमेंट या ड्रॉअर्स बनाते हैं. अब जरूरत हुई तो सामान आसानी सेनिकाला और फिर वापस रख दिया. फोन की RAM भी ऐसे ही काम करती है. मतलब जब जरूरत तबइस्तेमाल. आप फोन पर गेम खेल रहे थे और कॉल आ गया. आप कॉल उठाओगे ही सही और पूरेचांस हैं कि वापस गेम खेलने भी लग जाओगे. अब सोचिए कि जब आप वापस गेम पर पहुंचे तोवो फिर से स्टार्ट हो तो आपको कैसा लगेगा. जाहिर है कि बहुत कोफ्त होगी और इसीकोफ्त से बचाने के लिए है रैम. बैकएंड पर काम करती है और आपने गेम को जहां पर छोड़ाथा वहीं से ही आपको फिर मिल जाता है. इतनी कहानी से तो लगता है कि ऐसे बहुत से गेमया ऐप्स को संभालने के लिए बहुत सारी RAM चाहिए. मतलब ढेर सारी रैम और परेशानीखत्म. लेकिन ऐसा होता नहीं है. क्योंकि कई बार ज़्यादा रैम वाला एक स्मार्टफोनपरफॉर्मेंस के मामले में कम रैम वाले iPhone के सामने पानी मांगते नजर आता है. आपकहोगे कि आईफोन कहां से बीच में ले आए तो हमने सिर्फ रैम मैनेजमेंट को जांचने केलिए ये उदाहरण दिया. क्योंकि रैम तो रैम होती है फिर वो किसी एंड्रॉयड फोन में होया आईफोन में.अब ऐसा होता कैसे है?इस सवाल का जवाब जानने से पहले जान लीजिए कि Apple अपने आईफोन में खुद का प्रोसेसरइस्तेमाल करता है और सॉफ्टवेयर पर भी पूरा कंट्रोल रखता है. एंड्रॉयड के ओपनप्लेटफॉर्म के सामने ये बहुत बोरिंग है, लेकिन जब बात फोन की परफ़ॉर्मेंस की आती हैतो यही कंट्रोल बाजी मार जाता है. फोनबफ नाम की एक कंपनी है जो फोन की स्पीड,बैटरी, ड्रॉप टेस्ट जैसे प्वाइंट को कवर करती है. इस कंपनी ने एक 3 जीबी रैम वालेआईफोन और एक 8 जीबी रैम वाले फ्लैगशिप एंड्रॉयड फोन को टेस्ट किया. नतीजे आंखे खोलदेने वाले रहे. दोनों फोन पर एक साथ एक ही संख्या मे ऐप्स को ओपन किया गया और उन परएक जैसे ही टास्क परफ़ॉर्म किए गए. यदि एक फोन से कोई सोशल मीडिया ऐप पर पोस्ट डालीगई तो सेम पोस्ट दूसरे फोन से भी डाली गई. कमाल की बात ये कि ऐसा एक रोबोटिक आर्मकी मदद से किया गया जिससे किसी भी किस्म का टाइम डिफरेंस पैदा ना हो. एक साथ कईटास्क परफ़ॉर्म करने के बाद उनको फिर से ओपन करके भी देखा गया. फिर से ओपन करने कामतलब फोन कॉल और गेम वाली प्रोसेस से है जो हमने आपको ऊपर बताई है. अब जाहिर सी बातहै कि जब ऐप्स को पहली दफा ओपन किया गया तो फोन का प्रोसेसर यूज हुआ लेकिन रीओपनकरते समय मेमोरी या रैम को अपना कमाल दिखाना था. कमाल से मतलब ऐप्स कितनी जल्दी फिरसे खुलने को तैयार थे. टेस्ट का नतीजा ये निकला कि दोनों फोन के बीच में टाई होगया. आंकड़ों के हिसाब से ऐसा होना नहीं चाहिए था. मतलब कहां 3 जीबी और कहां 8जीबी.थोड़े में बहुत ज्यादाऐसा ही कुछ किया आईफोन ने. जब ऐप्स को ओपन करने और टास्क परफ़ॉर्म करने की बारी आईतो एंड्रॉयड फोन के मुकाबले सब थोड़ा फास्ट किया. ऐसा करने से एक फायदा ये हुआ कियदि ऐप को बैकग्राउंड में बंद भी करना पड़ा तो भी फिर से बहुत तेजी से ओपन करने मेंदिक्कत नहीं आई. एंड्रॉयड फोन में जितने ऐप्स ओपन किए गए वो सारे के सारे मेमोरीमें भी पड़े रहे. वहीं आईफोन ने अपना दिमाग इस्तेमाल करके लगभग 70 प्रतिशत ऐप्स कोही बैकग्राउंड में ओपन रखा जिसमें गेम ऐप्स भी शामिल थे. आप कहोगे कि एक एंड्रॉयडफोन यदि फेल हो गया तो क्या हुआ, दूसरे फोन अच्छा करते हैं. इसी बात को ध्यान मेंरखकर एक 4 जीबी वाले आईफोन और 4 जीबी वाले दूसरे एंड्रॉयड फ्लैगशिप को जांचा गया तोआईफोन ने एक मिनट से ऊपर के अंतराल से एंड्रॉयड फोन को मात दे दी. एंड्रॉयड फोनबहुत से मेकर्स बनाते हैं तो रैम मैनेजमेंट का सबका अपना-अपना तरीका होता है. इसकेअलावा मार्केट में प्रतिस्पर्धा भी ज़्यादा है. ऐसे में दूसरे प्रोडक्ट से बेहतरकरने का दबाव भी होता है. फिर 10,12 और 16 जीबी को मार्केटिंग एंगल से भी देखनाज़रूरी है. लेकिन रैम का इस्तेमाल समझदारी से होना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहींहै. गूगल ने अपने एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में रैम मैनेजमेंट को ठीक करने की दिशामें काफी काम किया है. सारी बातचीत का सार यही है कि फोन में ज़्यादा मेमोरी अच्छीबात है. लेकिन वो स्मार्टफोन की दुनिया का बस एक प्यादा है. फोन का प्रोसेसर, बैटरीऔर सॉफ्टवेयर की भूमिका नज़रअंदाज नहीं की जा सकती. एक स्मार्टफोन की परफॉर्मेंस इनसारे पैमाने पर निर्भर है. वैसे आम इस्तेमाल में देखा जाए तो 6 जीबी रैम वाला फोनकाफी होता है.