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चीन में स्मार्टफोन ऐप्स यूज करने के लिए लेनी होगी सरकार की मंजूरी, लेकिन ये चलेगा कइसा जी?

ऐप्स चाहे 'ऐप स्टोर' से डाउनलोड हो या थर्ड पार्टी से, सरकार का ओके चाहिए ही होगा

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Chinese phones will not be able to install apps that have not been registered with the Chinese government. Even if you manage to install them, you might not be able to access the mobile data services when using such apps.
चाइना का अजीब रूल (तस्वीर साभार: Henry S. Gao ट्विटर)
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सूर्यकांत मिश्रा
10 अगस्त 2023 (Updated: 11 अगस्त 2023, 10:25 IST)
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स्मार्टफोन का सबसे बड़ा फायदा क्या हो सकता है? अच्छे-अच्छे फोटो खींचे जा सकते हैं. बढ़िया क्वालिटी में वीडियो बनाया जा सकता है. ये तो हुए बेसिक फायदे, लेकिन असल मौज तो ऐप्स के इस्तेमाल से आती है. शायद ही कोई ऐसा काम होगा जिसके लिए स्मार्टफोन में ऐप मौजूद नहीं होता. लेकिन सोचकर देखिए, अगर ऐप्स का इस्तेमाल बंद हो जाए तो. या ऐप का इस्तेमाल करने के लिए सरकार की मंजूरी लेनी पड़े तो. ऐसा सोचकर ही भेजा फ्राई होने लगेगा. लेकिन ऐसा होने जा रहा है. ऐप इस्तेमाल करने के लिए लगेगी सरकार की परमिशन. कहां और क्यों, जानते हैं.

चीन का अजब फरमान

घबराएं ना हुजुरेवाला! ये कांड चीन में होने वाला. वो देश जहां दुनिया भर की कंपनियों के स्मार्टफोन बनते हैं और इस्तेमाल होते हैं. एंड्रॉयड स्मार्टफोन के उत्पादन पर तो जैसे उनका ही कब्जा है. इसी चीन ने स्मार्टफोन में ऐप्स को लेकर एक अजीबो-गरीब पॉलिसी लागू की है. अब वहां स्मार्टफोन में इस्तेमाल होने वाले ऐप्स को सरकार की मंजूरी लेनी होगी. मतलब फोन में जो ऐप पहले से इंस्टॉल होंगे उनको सरकार से सर्टिफिकेट लेना होगा. अगर जो यूजर ने जुगाड़ से बिना मंजूरी वाला ऐप डाउनलोड कर भी लिया, तो फोन का नेटवर्क उसको सपोर्ट नहीं करेगा. इतना पढ़ते ही शायद आपके मन में सवाल आया होगा कि अब तो एंड्रॉयड की लंका लग गई. आईफोन का भट्टा बैठ गया. इसलिए आपको ये जानना जरूरी है कि चीन में एंड्रॉयड और iOS का हाल क्या है.

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प्रोफेसर  Henry S. Gao
एंड्रॉयड चलता है पीछे के रास्ते से

चीन में गूगल और उसकी सर्विसेज पर बैन है. लेकिन एंड्रॉयड उसका प्रोडक्ट है तो चलता कैसे है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एंड्रॉयड एक ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म है. मतलब ऑपरेटिंग सिस्टम का बेस गूगल डेवलप करता है और उसके ऊपर कपड़े स्मार्टफोन कंपनियां पहनाती हैं. तकनीक की भाषा में इसको कहते हैं यूजर इंटेरफेस (UI). स्मार्टफोन कंपनियां इसके लिए गूगल को पैसा देती हैं. शाओमी से लेकर ओप्पो, वीवो जैसी तमाम कंपनियां ऐसे ही एंड्रॉयड का इस्तेमाल करती हैं. एंड्रॉयड की स्किन पर अपना ऐप स्टोर बनाकर. सिर्फ हुआवै के पास इसका कोई जुगाड़ नहीं, क्योंकि उसको अमेरिका ने बैन कर रखा है. कंपनी इस समय अपना ऐप स्टोर और ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने पर जोर दे रही है.

इतनी सब पाबंदियों के बावजूद चीन के 78 फीसदी स्मार्टफोन मार्केट पर एंड्रॉयड का कब्जा है. और नई पॉलिसी इसके लिए एक खतरा है. हम ऐप्पल की बात भी करेंगे लेकिन थोड़ी देर से. 

प्लेटफॉर्म का गेम समझ लिया. अब ऐप्स का गेम समझते हैं. एंड्रॉयड में प्ले स्टोर होता है जिसे चीन को छोड़कर दुनिया जहान में गूगल प्ले के नाम से जाना जाता है. इसी स्टोर को, जिसे कंपनियां डेवलप करती हैं, वहां अब सरकार की मंजूरी चाहिए होगी. ऐप पहले से स्मार्टफोन में इंस्टॉल हो या फिर उसे ऐप स्टोर से डाउनलोड किया जाए. माने कि जब भी आप ऐसे ऐप्स को ओपन करेंगे तो चीन का टेलिकॉम नेटवर्क उसको सपोर्ट नहीं करेगा.

इतना ही नहीं, अगर जुगाड़ से बोले तो थर्ड पार्टी ऐप्स डाउनलोड किए तो भी वो काम नहीं करेंगे. थर्ड पार्टी ऐप्स या 'साइडलोडिंग' एंड्रॉयड सिस्टम की वो व्यवस्था है जिसमें प्ले स्टोर से इतर दूसरे रास्ते से ऐप डाउनलोड होते हैं. इसको कहते हैं APK फ़ाइल, मतलब Android Package Kit. प्ले स्टोर पर कई सारे ऐप्स उपलब्ध नहीं होते. अब इसके पीछे कई सारे कारण हो सकते हैं. लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि वो काम के नहीं. कई सारे बड़े डेवलपर्स भी APK फ़ाइल उपलब्ध कराते हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम तो WhatsApp है. 

वॉट्सऐप की पेरेंट कंपनी मेटा (Meta) ‘वॉट्सऐप बिजनेस’ का APK फ़ाइल डेवलपर्स से लेकर दूसरी कई कंपनियों को उपलब्ध कराती है. आप इसके बारे में डिटेल में यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं. जब APK फ़ाइल का जिक्र हुआ है तो एक बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. ये एक दोधारी तलवार है. कई बार इसकी मदद से हैकर भी फोन में अपना अड्डा जमा लेते हैं.  वैसे थर्ड पार्टी ऐप्स का एक और ठिकाना भी है. जैसे सैमसंग गैलेक्सी स्टोर या एमेजॉन स्टोर. वैसे पूरी जानकारी का लुब्ब-ए-लुबाब ये कि कहीं से भी ऐप डाउनलोड करो, जो सरकार का ओके नहीं तो काम नहीं करेंगे.

अब बात करें ऐप्पल की तो उसके यहां थर्ड पार्टी का कोई प्रबंध नहीं है और चीन में iOS पर कोई प्रतिबंध भी नहीं. हालांकि गूगल सर्विसेज नहीं चलती हैं. ऐसे में ऐप्पल इस पॉलिसी के दायरे में आता है या नहीं, वो जानकारी मिलते ही हम साझा करेंगे. चीन के इस कदम पर सोशल मीडिया में कई और बातें भी चल रही. जैसे क्या ऐसे ऐप्स को इंटरनेशनल टेलिकॉम ऑपरेटर की सिम पर चलाया जा सकेगा या नहीं, VPN काम करेगा या नहीं, वगैरा-वगैरा.

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प्रोफेसर  Henry S. Gao

Singapore Management University में प्रोफेसर Henry S. Gao ने अपने ट्विटर पर इसके बारे में काफी बात की है. उनके मुताबिक चीन ने पहले टीचर्स और बैंकर्स के लिए कड़े नियम बनाए और अब डॉक्टर्स के साथ डेवलपर्स की बारी है. हमने उनसे मेल पर संपर्क साधा है. अगर वो इसके बारे में बात करते हैं तो हम आपसे साझा करेंगे.

भारत में क्या नियम 

चलते-चलते भारत में क्या नियम हैं, वो भी जान लीजिए. हमारे देश में ऐप्स डेवलप करने पर सरकार का कोई दखल नहीं है. तभी 10 साल के प्रतिभावान बच्चे भी ऐप बना पाते हैं. हालांकि गूगल और ऐप्पल की तगड़ी पॉलिसी है. फिर बात प्राइवेसी से जुड़ी हो या कंटेन्ट की. ऐप को लाइव होने से पहले दोनों प्लेटफॉर्म से अप्रूवल लेना ही पड़ता है. सरकार ने भी निजता से जुड़े कई नियम बनाए हैं. अगर उनका उल्लंघन होता है तो ऐप को डाउन भी किया जाता है. लेकिन ऐप बनाने का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है.  मामला भले चाइना से जुड़ा है लेकिन गंभीर है. इस पर आगे भी बात करेंगे.  

तब तक आप ‘सानू की’ वाले मीम से काम चला सकते हैं. 

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तस्वीर साभार: मेक मेमे 

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