टूटे पुल से कार नीचे गिरने के पीछे Google Maps की गलती? आखिर काम कैसे करती है ये टेक्नोलॉजी?
बरेली(Bareilly bridge accident) का हादसा कोई नया नहीं है क्योंकि Google Maps की वजह से पहले भी लोग परेशान हुए हैं. कभी इसने लोगों को रेगिस्तान में धंसा दिया तो कभी गाड़ी को सीढ़ियों पर मोड़ दिया.
Google Maps पिछले शनिवार देर रात को बरेली में हुए हादसे के बाद चर्चा में है. हादसे में निर्माणाधीन पुल पर चढ़ी कार रामगंगा में जा गिरी और तीन लोगों की मौत हो गई. ड्राइवर गूगल मैप के सहारे गाड़ी चला रहा था. जब तक उसे पता चल पाता कि आगे सड़क नहीं है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. हादसे के बाद प्रशासन पर कई सवाल खड़े हो गए हैं. पांच इंजीनियरों की लापरवाही सामने आई है और साथ में गूगल मैप्स पर भी उंगली उठ रही है. क्योंकि ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है.
Google Maps की वजह से लोग पहले भी परेशान हुए हैं. कभी इसने लोगों को रेगिस्तान में धंसा दिया तो कभी गाड़ी को सीढ़ियों पर मोड़ दिया. ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आख़िर दुनिया की सबसे लोकप्रिय मैप सर्विस काम कैसे करती है? रास्तों का पता और लाइव ट्रैफिक का आइडिया उसे मिलता कैसे है?
Google Maps काम कैसे करता है?बरेली हादसे में गूगल मैप जिम्मेदार है या नहीं, वो जांच के बाद पता चल जाएगा. हम सिर्फ़ मैप के काम करने के तरीक़े के बारे में समझने की कोशिश करेंगे. कोशिश इसलिए क्योंकि गूगल खुद इसके बारे में नहीं बताता है. एक किस्म का ब्लैक होल समझ लीजिए. इसलिए हमने कई रिपोर्ट्स को खंगाला और साथ में मैप एक्सपर्ट से भी बात की. सबसे पहले जान लेते हैं कि गूगल मैप्स बना कैसे.
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गूगल ने अपने शुरुआती दिनों में Keyhole नाम की एक कंपनी को खरीदा था. इस कंपनी ने मैप जैसा कुछ बनाया था मगर डेस्कटॉप के लिए. इसी कंपनी की तकनीक को बेस बनाकर गूगल ने मैप को डेवलप किया. कुछ और कंपनियों को लेकर भी ऐसी ही भ्रांति है. दूसरी भ्रांति गूगल मैप्स के सैटेलाइट एक्सेस को लेकर है. आमतौर पर माना जाता है कि गूगल सैटेलाइट से लाइव डेटा लेता है और तस्वीरें भी वहीं से आती हैं. ऐसा एकदम नहीं है.
गूगल ने पहले-पहल मैप डेवलप करने के लिए जरूर सैटेलाइट सर्विस का सहारा लिया था. एक बार जो मैप बन गया मतलब बिल्डिंग से लेकर अस्पताल तक और नदी से लेकर पुल तक जब मैप में दिखने लगे तो कंपनी ने सैटेलाइट से पल्ला झाड़ लिया. वैसे भी सैटेलाइट इमेज एक महंगा सौदा है और मैप तो मुफ्त है. अब अगर गूगल सैटेलाइट एक्सेस करता भी होगा तो वो उसका सीक्रेट. पता है-पता है, आप कहोगे फिर मैप पर दिखने वाला सैटेलाइट मोड क्या है.
Maxar Tech का माल हैMaxar Tech एक अमेरिकन कंपनी है जो स्पेस से लेकर सैटेलाइट पर काम करती है. गूगल इसी कंपनी से जरूरत पड़ने पर तस्वीरें खरीदता है. सिर्फ़ ज़रूरत पड़ने पर क्योंकि जैसा हमने लिखा, ये बहुत खर्चीला सौदा है. आप ख़ुद जब भी मैप पर सैटेलाइट व्यू देखेंगे तो इस कंपनी का नाम क्रेडिट में दिखेगा. क्योंकि सारी तस्वीरें आजकल 3D में दिखती हैं तो लगता है जैसे कि सब लाइव है. तो फिर गूगल का पास डेटा आता कहां से है?
सब खुल्ला-खाता हैगूगल मैप्स का सबसे बड़ा सोर्स आप और हम हैं. दुनिया जहान के करोड़ों स्मार्टफोन यूजर्स मिलकर मैप को बनाते हैं. कई बार सीधे-सीधे और कई बार टेढ़े-टेढ़े. मैप एक ओपन सोर्स है या कहें क्राउड सोर्स प्लेटफॉर्म है. यहां पब्लिक से लेकर सरकारें अपना डेटा अपलोड करती हैं. हालांकि, भारत में सरकारी संस्थान मैप पर कोई डेटा अपलोड नहीं करते मगर कई देशों में पूरा डिजटल मैप गूगल मैप पर अपलोड होता है और अपडेट भी. इसके बाद आते हैं आप और हम. अब ये कोई छिपी हुई बात तो है नहीं कि बाबा गूगल हमारी लोकेशन ट्रैक करते हैं. वैसे तो लोकेशन ट्रैकिंग को बंद करने का ऑप्शन है मगर कई बार उसको ऑन करना ही पड़ता है. यही डेटा मैप की भूख शांत करता है.
इसके साथ मैप पर डेटा अपलोड करने का भी ऑप्शन है. एक अदद गूगल अकाउंट है आपके पास तो आप आसानी से डेटा अपलोड कर सकते हैं. जैसे आपकी दुकान या मकान या फिर आपका संस्थान. आजकल मैप पर Contribute करने का ऑप्शन स्क्रीन पर सामने ही नजर आ जाता है. एक जमाना था जब गूगल यूजर्स को डेटा अपलोड करने के लिए कहता था. आजकल तो मैप का भौकाल इतना है कि हम ख़ुद ही डेटा अपलोड और अपडेट करते हैं. अपडेट एक जरूरी प्रोसेस है जो मैप को रास्ता दिखाती है. मतलब जो डेटा अपडेट नहीं तो फिर गलती होना तय है. जब भी आप डेटा अपडेट करते हैं तो छोटे-मोटे अपडेट या आपके निजी स्थान अपने आप ही बदल जाते हैं. मगर जो आप कोई बड़ा अपडेट करते हैं मसलन किसी अस्पताल की लोकेशन बदलते हैं तो गूगल मैप की टीम उसको चेक करती है. सही हुआ तो फिर बदल देती है.
इसके साथ डेटा कलेक्शन का एक और बड़ा जरिया गूगल की कार भी है. गूगल स्ट्रीट व्यू इसी कार का कारनामा है. अपने सिर पर बड़ा कैमरा बांधे ये कार हर जगह घूमती है. इमारतों से लेकर सड़कों की तस्वीरें लेती है और फिर स्क्रीन पर उस जगह का लाइव व्यू नजर आता है.
डेटा कलेक्शन समझ आ गया, लेकिन मैप हमें रास्ता कैसे बताता है?
जीपीएस की मदद सेजैसे हमने कहा कि लोकेशन सर्विस कई बार ऑन करना ही पड़ती है. भले मैप आपको नहीं चलाना हो. खाना ऑर्डर करने से लेकर दवाईयां मंगाने के लिए ऐसा करना पड़ता है. लोकेशन ऑन मतलब जीपीएस कनेक्ट. आप जब भी मैप से कोई रास्ता पूछते हैं तो गूगल पहले से मौजूद डेटा और उस समय उस रूट पर चल रहे फ़ोन की मदद से आपको सबसे फ्री रूट का सुझाव देता है. रास्ते तय करने में लगने वाले समय और ट्रैफ़िक कंडीशन की सटीकता इस बात पर निर्भर करती है कि उस इलाक़े में कितने फ़ोन एक्टिव हैं. कितने फ़ोन पर लोकेशन ऑन है. मतलब जितने ज़्यादा स्मार्टफ़ोन होंगे उतना पक्का डेटा मिलेगा.
जब भी किसी इलाक़े में कम स्मार्टफोन होते हैं या फिर बेसिक फ़ोन की संख्या ज्यादा होती है तो मैप का मामला ढीला हो जाता है. अब तो मैप रूट बताने के लिए AI का भी इस्तेमाल करता है. मसलन एक तय समय पर तय इलाके में ट्रैफिक का प्रेशर कितना है, उसी के हिसाब से भी रूट बताया जाता है. ऐसे में एक सवाल फिर उठता है. अगर किसी जगह कोई आदमी हजारों स्मार्टफोन की लोकेशन ऑन करके रख दे तो क्या गूगल वहां लाल-लाल दिखाएगा?
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दरअसल, ऐसा वाक़ई में हुआ था. साल 2020 के शुरुआत में Simon Weckert नाम के एक व्यक्ति ने 99 स्मार्टफोन एक साथ रखकर बर्लिन की ख़ाली सड़क पर वर्चुअल ट्रैफ़िक बना दिया था. मैप उस जगह को स्लो मूविंग दिखा रहा था. गूगल ने इस झोल से सबक लिया और अब वो इससे निपटने पर काम कर रहा है.
बरेली में क्या हुआ?मामले की जांच जारी है, मगर पहली नजर में मामला अपडेट से जुड़ा लगता है. नदी पर बना पुल टूट गया था तो उस पर आवजाही नहीं थी. इसलिए मैप पर रास्ता दिखता रहा. गूगल मैप से लेकर mapmyindia और इसरो के bhuvan में भी रास्ता दिख रहा है. अगर इसको अपडेट किया गया होता तो शायद हादसा नहीं होता. लेकिन लापरवाही तो हुई है. अब किसकी, वो जांच के बाद ही पता चलेगा. मगर हमारी आपसे गुजारिश है कि गूगल मैप या किसी और मैप के भरोसे कभी मत रहिए. अपनी इन्द्रियों मतलब आंख, कान, दिमाग़ और सेंस पर भरोसा कीजिए. मैप से इतर अगर आपने कारों में लगे बैक कैमरे पर लिखी एक चेतावनी पर गौर किया होगा, तो वो भी यही बात कहती है.
स्क्रीन पर लिखा होता है कि कैमरा का व्यू आपकी समझ के लिए है. आप आसपास सब देखकर ही गाड़ी चलाएं. यही आपको मैप के साथ भी करना होगा. गूगल पर जब आपने पहली बार लॉगिन किया था, तभी उसने तमाम टर्म्स एंड कंडीशन पर हमसे हामी भरवा ली थी. इसी वजह से अभी तक तो लीगल केस में फंसा नहीं.
गूगल मैप से जुड़े कई डिटेल मसलन Maxar Tech से लेकर Keyhole पर हमें Raj Bhagat ने एक्सपर्ट के तौर पर मदद की. राज WRI India में Senior Program Manager हैं और Sustainable Cities, Transport सहित मैप्स से जुड़ी तकनीक पर काम करते हैं.
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