पश्चिम बंगाल में हो रही हैं बच्चों की मौतें, क्या कोरोना जितना ही खतरनाक है एडिनोवायरस?
पश्चिम बंगाल में एडिनोवायरस से 11 बच्चों की मौत.
बंगाल में कई बच्चे एक वायरस से बीमार पड़ रहे हैं. हालात गंभीर हैं. सरकारी और प्राइवेट, दोनों अस्पतालों में बच्चों को भर्ती करने के लिए बेड नहीं मिल रहे हैं. किसी-किसी बच्चे को इलाज के बाद भी फिर से एडिमट करना पड़ रहा है. इस बीच कुछ टेस्ट हुए तो पता चला कि बच्चे एक नए वायरस की चपेट में आ रहे हैं. नाम है एडिनोवायरस (Adenovirus).
क्या है एडिनोवायरस?नाम से तो जाहिर है एडिनोवायरस एक विषाणु है. वैसे तो आंखों से किसी भी वायरस को देखना संभव नहीं है. फिर भी आकार के हिसाब से एडिनोवायरस एक मीडियम साइज का वायरस है. 90 से 100 नैनोमीटर के बीच. बोले तो बहुत से भी बहुत छोटा. आपके सिर का एक बाल भी उससे लाखों गुना मोटा है. डॉक्टर लोग जो जुगत लगा कर इसको देखते हैं, उसे माइक्रोस्कोप बोलते हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एडिनोवायरस पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता और राज्य के दूसरे कई जिलों में फैल रहा है. कोलकाता में ‘राष्ट्रीय कॉलेरा और आंत्र रोग संस्थान (ICMR-NICED)’ है. इसको आगे हम ICMR-NICED बोलेंगे. वहां हैजा और दस्त जैसी बीमारियों पर रिसर्च होता है. बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनवरी से अब तक वहां 500 से ऊपर सैंपल भेजे हैं. लगभग 30 प्रतिशत में एडिनोवायरस मिला है. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है!
एडिनोवायरस के दो टाइप चर्चा में हैं. टाइप-7 और टाइप-3.
टाइप-7 को एडिनोवायरस का सबसे खतरनाक ‘स्ट्रेन’ माना जाता है. इस ‘स्ट्रेन’ को आगे समझाते हैं. इस स्ट्रेन से निमोनिया भी हो सकता है. वहीं टाइप-3 बच्चों में सांस की सीरियस बीमारियां फैलाने वाला ‘स्ट्रेन’ है. अगर किसी बच्चे के शरीर में ये दोनों ‘स्ट्रेन’ घुस जाएं, तो मामला बहुत सीरियस हो सकता है.
अलर्ट जारी हो गया हैवायरस की बनावट का छोटा सा अंतर ही इस बात में बहुत फर्क डाल देता है कि वो कितना जल्दी फैलेगा और कितने लोगों को बीमार करेगा. ज़ुकाम भी देने वाला वायरस है और जो दुनिया को अपने घुटनों पर ले आया था, वो कोरोना भी एक वायरस ही है.
खैर, ICMR-NICED के वैज्ञानिकों ने उन 500 सैंपल में से 40 उठाए और रिसर्च की. पता चला कि उनमें से अधिकतर में टाइप-7 और टाइप-3 दोनों हैं. बात इतनी बिगड़ गई है कि अस्पतालों में बच्चों के वॉर्ड तेज़ी से भर रहे हैं. वेंटिलेटर तो खाली ही नहीं हैं. सरकार की तरफ से अभी कुछ जानकारी नहीं आई है, लेकिन बताया जा रहा है अभी तक इस वायरस की चपेट में आने से 11 बच्चों की मौत हो गई है. ऑफिशियल नंबर बाद में पता चलेगा.
कुछ जगह तो ये भी देखा गया कि बच्चे पेट की बीमारी की शिकायत के साथ भर्ती हुए. ठीक हुए. डिस्चार्ज हुए. लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें सांस की बीमारी के चलते फिर से भर्ती करना पड़ा. अब बंगाल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉक्टरों के लिए अलर्ट जारी किया है. कहा है कि जिन बच्चों में इस वायरस के लक्षण दिख रहे हैं, उनकी निगरानी की जाए. दो साल से कम उम्र के बच्चों को इस वायरस से ज़्यादा खतरा है.
बच्चे ही क्यों?क्योंकि बच्चों की इम्युनिटी बड़ों से कमज़ोर होती है. इसलिए पांच साल और उससे कम उम्र के बच्चों में इस वायरस के फैलने का ज़्यादा खतरा है. हालांकि, ये वायरस किसी को भी बीमार कर सकता है.
अब तक वैज्ञानिकों ने कोई 50 तरह के एडिनोवायरस की पहचान की है, जो इंसानों को बीमार कर सकते हैं. जिन लोगों की इम्युनिटी पहले से कमजोर है या जिनको सांस या दिल से संबंधित कोई समस्या है, उनको इससे ज़्यादा खतरा है.
इसके कई तरह के लक्षण हो सकते हैं. लेकिन ऊपर-ऊपर से देखने में कुछ बड़ा नहीं होता, जो हमारा ध्यान खींच ले. हल्की सर्दी या बुखार हो सकता है. इन लक्षणों को लोग आमतौर पर लोग नजरअंदाज कर देते हैं.
कैसे फैलता है एडिनोवायरस?अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) की मानें तो ये एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में फैलता है. फैलने के कई कारण हो सकते हैं.
- छूने या हाथ मिलाने से
- खांसने और छींकने से
- एडिनोवायरस से पहले से संक्रमित किसी चीज़ या सतह को छू लेने के बाद अपने मुंह, नाक या आंखों को छू लेने से
कुल मिलाकर वही कोरोना जैसे कारण हैं. ये बच्चों, खासकर शिशुओं में इसीलिए ज़्यादा फैलता है क्योंकि वो खेल-खेल में कुछ भी उठाकर खाने लग जाते हैं. बच्चों के हाथ भी घर के बड़े लोग ही धुलवाते हैं.
एडिनोवायरस के लक्षण क्या हैं?आमतौर पर सांस लेने वाली दिक्कतें होती हैं. जैसे बहती नाक, सर्दी, निमोनिया. फेफड़ों के पाइप में सूजन, जिससे सीने में ठंडक महसूस हो सकती है. कुछ मामलों में छोटे बच्चों के पेट में इन्फेक्शन भी हो सकता है, जिससे दस्त भी हो सकता है.
न्यूज़ एजेंसी ANI से बातचीत में डॉक्टर सयान चक्रवर्ती ने इस वाइरस के ये लक्षण बताए-
- तेज़ बुखार
- लगभग दो सप्ताह तक खांसी का रहना
- लाल आंखें
- जी मिचलाना
- शरीर पर निशान या रैशेज़
डॉक्टर सयान चक्रवर्ती ने ये भी कहा कि अगर पेरेंट्स को अपने बच्चों में ऐसे लक्षण दिखें तो घर पर नुस्खे आज़माने की जगह तुरंत अपने बच्चों को किसी डॉक्टर के पास लेकर जाएं. खुद डॉक्टर नहीं बनना है.
क्या है बचाव?एडिनोवायरस के बचाव के तरीके भी कोरोना के बचाव वाले तरीकों से मिलते जुलते हैं-
- अपनी आंखों, नाक और मुंह को छूने से पहले अपने हाथों को धो लें
- अपने और अपने बच्चों के हाथों को साबुन से धोएं
- साबुन नहीं है तो सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करें
- अपने आस-पास सफाई रखें
- बीमार व्यक्तियों के संपर्क में आने से बचें
- जहां ज़रूरत पड़े वहां मास्क लगाएं बच्चों को मास्क पहनाएं
नहीं. इस वायरस का कोई इलाज नहीं है. इसकी कोई वैक्सीन भी कहीं अप्रूव नहीं की गई है. और ना ही इसका कोई ब्लड टेस्ट होता है. हालांकि, डरने की जरूरत नहीं है.
ज़्यादातर केस में मरीज़ को गंभीर तरह का संक्रमण होता ही नहीं है. लेकिन लक्षण गंभीर हों या आपको पहले से ही कोई दूसरी बड़ी बीमारी हो, तो इसे हल्के में न लें और तुरंत ही डॉक्टर को दिखाएं.
प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण कुमारेंदु सिंह ने न्यूज एजेंसी PTI को बताया,
“एडिनोवायरस से पैनिक करने की ज़रुरत नहीं है. एडिनोवायरस संक्रमण पूरे वर्ष होते हैं, लेकिन ठंड में और बसंत की शुरुआत में केस थोड़े बढ़ जाते हैं. लगभग 90 प्रतिशत मामले सीरियस नहीं होते. आराम करने के अलावा मरीज़ भाप लेने और पैरासिटामोल जैसी दवा लेने से राहत पा सकता है. चुनिंदा गंभीर मामलों में ही बच्चों को अस्पताल में भर्ती करवाने की ज़रूरत पड़ती है.”
जाते-जाते सार यही कि ज़रा भी कोई लक्षण दिखे, तो हल्के में ना लें. डॉक्टर के पास जाएं. उनकी सलाह के मुताबिक ही दवाइयां लें.
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