ईस्ट यूपी के गैंगवार की अलग विधा है.एक तरफ मुसलमान 'गैंगस्टर' है. मुख्तार अंसारी. दूसरी तरफ हिंदू 'गैंगस्टर' हैब्रजेश सिंह. दोनों में कई बार गोलीबारी हो चुकी है. एक के डर से दूसरा जेल मेंरहता है. दूसरा पहले के डर से उड़ीसा भाग गया था. पूर्वांचल यूपी का वो एरिया हैजहां पर मुसलमानों की संख्या बाकी जगहों की तुलना में ज्यादा ही है. पर गैंगवार काये मुकाबला कभी भी सांप्रदायिक नहीं हुआ है. ये विशुद्ध माफिया स्टाइल है. जिसकीकोई जाति, कोई धर्म नहीं होता. गोलियां गिनी नहीं जातीं, निशाने लगाए नहीं जाते. बसफायरिंग होती है. जो जद में आ गया, छितरा के गिर गया. एकदम Mad Max: Fury Road. सबकुछ डिस्टोपियन है. यानी इसकी रेंज में आने वाली हर चीज खतरनाक है. चेहरे पर तनावलाने वाली.ये गैंगस्टर हैं, उन्मादी दंगाई नहीं. नाप-तौल के बोलते हैं. बोलते वक्त मुस्कुरातेहैं. उर्दू और हिंदी जबान बड़े सलीके से बोलते हैं. मुंह पर कभी किसी को नहींधमकाते. पर हनक इतनी कि आप सामने खड़े न रहे पाएं, घबरा के मैदान छोड़ दें. आप केमन का यही डर इनको ये गेम खेलने को मजबूर करता है. इससे ज्यादा मजा किस खेल मेंआएगा. इसी खेल का एक खिलाड़ी है ब्रजेश सिंह. 20 साल तक यूपी पुलिस के पास ब्रजेशका एक फोटो तक नहीं था. ये सिर्फ ददुआ और दाऊद के केस में हुआ है कि कहींझूठी-सच्ची एक फोटो मिल गई, उसी को हर जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर फ्लैश किया जाताहै. तो ब्रजेश के सिर पर इनाम 2 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया गया. लेकिन किसीको नहीं पता था कि वो अरुण कुमार सिंह के नाम से भुवनेश्वर में रहता था.एक काबिल एसीपी संजीव कुमार यादव को ब्रजेश के पीछे लगाया गया. फोटो नहीं है,वर्तमान में कोई गतिविधि नहीं है, कैसे पता करते? दो साल तक संजीव यूपी, बिहार,बंगाल, मध्य प्रदेश, मुंबई और उड़ीसा घूमते रहे. तब तक उत्तराखंड और झारखंड भी बनगए थे. सोचिए कि कितना दिमाग लगाया गया होगा. हर जगह की पुलिस और हर जगह के लोगहमेशा मदद नहीं करते. कई बार खुद को छुपा के पता लगाना होता है. घर-परिवार छोड़ केजहां लीड मिली, निकल जाओ. रात हो या दिन. सिर्फ नाम के आधार पर.ब्रजेश सिंहजनवरी 2008 में संजीव को पता चला कि ब्रजेश भुवनेश्वर और कोलकाता के बीच अप-डाउनकरता है. नई फोटो भी मिल गई. पर डर भी था कि कहीं कोई और न निकल जाए. गोली वगैरह चलगई, कोई मर-मरा गया तो पुलिस वालों की नौकरी गई. अपराधी भी हाथ से निकल भागेगा. 23जनवरी को भुवनेश्वर के बिग बाजार की पार्किंग में काले रंग की हॉन्डा CRVOR-O2-AK-1800 खड़ी थी. ब्रजेश सिंह को दूर से ही आइडेंटिफाई किया गया. जब इत्मिनानहो गया तो पुलिस ने धावा बोल दिया. पर 'गैंगस्टर' को पकड़ना आसान नहीं था. दूसरेलोगों के लिए खतरा हो गया. पर अंत में वो पकड़ लिया गया. ब्रजेश के पास से अरुण नामसे पासपोर्ट मिला था.बाप के हत्यारे के बाप को पैर छूकर मारा था ब्रजेश नेब्रजेश सिंह एक एवरेज लड़का हुआ करता था. बनारस से बीएससी कर रहा था. 1984 में इंटरकी परीक्षा में ब्रजेश के बढ़िया नंबर आए थे. गाजीपुर के धरौरा से था. गाजीपुरवालों के लिए सब कुछ बनारस में ही मिलता है. खाली गुंडई की ट्रेनिंग छोड़ के. वोगाजीपुर में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. रोज अखबार पढ़ने वाले भी खुद को माइकलकॉर्लियोन समझते हैं. जिसे जिले की हत्याओं और हत्यारों के नाम याद होते हैं, वोगंभीर हो जाता है दैनिक जीवन में. आप मार्केट में उसके साथ निकले हैं, वो दुकान परखुद के लिए पान लेगा. छुट्टे पैसों से आपके लिए टॉफी ले लेगा. क्योंकि आप तो कोईनशा नहीं करते हैं.बनारस में मोदी की रैलीये 80 के दशक की बात है. बनारस में कांग्रेस कमजोर हो रही थी. भाजपा चढ़ रही थी.मंदिर का मुद्दा उठ रहा था. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. पंजाब में आतंकवाद होरहा था. अफगानिस्तान में रूस घुस आया था. पाकिस्तान का सहारा लेकर अमेरिकाफिदायीनों को ट्रेन कर रहा था. अटल बिहारी वाजपेयी अपनी आइडियॉलजी में गांधी कोलेकर आ चुके थे. उसी वक्त गाजीपुर में ब्रजेश के पिता रविंद्रनाथ सिंह की हत्या करदी गई. प्रधानी के चुनाव और जमीन की रंजिश में सिंचाई विभाग के कर्मचारी रवींद्रसिंह की दिनदहाड़े चाकू मारकर हत्या कर दी गई. आरोप लगा हरिहर सिंह और पांचू सिंह,लातूर सिंह उर्फ ओम प्रकाश ठाकुर और नरेंद्र सिंह पर. ग्राम प्रधान रघुनाथ यादव औरकुख्यात पांचू गिरोह पर भी आरोप था. सियासी सरपरस्ती में पल रहे पांचू गिरोह पर हाथडाल पाना पुलिस के लिए लगभग नामुमकिन था. ब्रजेश ने पढ़ाई छोड़ दी. ये वो वक्त थाजब जनता सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में छोड़ा करती थी. क्योंकि कोई सिस्टम ही नहीं थाकि दिक्कत होने पर आप किसके पास जाएंगे? पढ़ाई ऐसी थी नहीं कि आपको विचारक बना दे.आप अपराध के खिलाफ जंग छेड़ दें. गांधी बन जाएं. नितांत अकेले और बनारस-गाजीपुरकरते-करते काफी संभावना थी कि आपके अपने लोग ही आपको बहका दें कि खून का बदला खूनसे नहीं लिया तो मर्द कैसा. ब्रजेश के साथ यही हुआ.कहते हैं कि फिल्मी अंदाज में ब्रजेश सिंह ने पिता की चिता पर बदले की कसम खाई.ब्रजेश सिंह और पांचू का घर अगल बगल है. दुश्मनी के बावजूद दोनों में रिश्तों कालिहाज था. बदले की आग में जल रहा ब्रजेश एक दिन पांचू के पिता हरिहर सिंह के पासपहुंचा. उनके पांव छुए. उनको शाल भेंट की और बताया जाता है कि ये कहते हुए उन्हेंगोलियों से भून दिया कि मुझे पिता के कत्ल का बदला लेना है. ये साल 1985 था. उसवक्त तक पांचू गिरोह और रघुनाथ यादव को अंदाजा भी नहीं था कि उनके एक अपराध नेकितने खूंखार इंसान को जन्म दिया है.गाजीपुर में मुलायम की नवंबर रैलीपुलिस के मुताबिक फिर उसने कचहरी में धौरहरा के ग्राम प्रधान रघुनाथ को भी सरेआमगोलियों से भून दिया. ये पूर्वांचल की पहली घटना थी, जब कत्ल में एके47 का इस्तेमालहुआ था. इसके बाद प्रशासन सक्रिय हुआ. गैंगवार रोकने की कोशिश की जाने लगी. इसी मेंएक एनकाउंटर हुआ, जिसमें नामी बदमाश पांचू भी मारा गया. इसके बाद और हत्याएं हुईं.1985 में ही बनारस के चौबेपुर पुलिस थाने के सिकरौरा गांव में 6 लोगों को मार दियागया था. उस गैंगवार में ब्रजेश को भी गोली लग गई थी. इस बार वो पकड़ा गया. पुलिसकस्टडी में वो अस्पताल में भर्ती रहा. और वहीं से भाग निकला. उसके बाद हाथ नहींआया.फिर रास्ते इतने खुले कि 'दाऊद के बहनोई की हत्या का भी बदला लिया'दाऊद इब्राहिमफिर इस रास्ते से वापस लौटना नामुमकिन था. उस एरिया में ब्रजेश को कथित तौर पर कईहत्याएं करनी पड़ीं, 'सरवाइव' करने के लिए. बताया जाता है कि इसके साथ हत्याओं सेजुड़े कारोबार में भी ब्रजेश का हाथ हो गया. रेलवे स्क्रैप के ठेके, शराब, कोयला,प्रॉपर्टी के बाजार में वो आ गया.इसी दौरान ब्रजेश की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव में त्रिभुवन सिंह से हुई.बताया जाता है कि त्रिभुवन के राजनैतिक-आपराधिक संपर्क अच्छे थे. दोनों साथ हो गए.इसी दौरान एक और गैंग उभर रहा था. त्रिभुवन सिंह के पिता के हत्यारोपी मकनू सिंह औरसाधु सिंह का गैंग. त्रिभुवन सिंह का भाई हेड कॉन्स्टेबल राजेंद्र सिंह वाराणसीपुलिस लाइन में तैनात था. रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 1988 में साधू सिंह नेकांस्टेबल राजेंद्र को मार दिया. इस हत्या के इस मामले में कैंट थाने पर साधू सिंहके अलावा मुख़्तार अंसारी को भी नामजद किया गया था.हसीना पार्कर.इसके बाद साधू जेल में रहने लगा था. उसे मारना आसान नहीं था. पर एक मौका मिला. साधुसिंह पुलिस कस्टडी में अस्पताल पहुंचे थे. अपनी बीवी और नवजात बच्चे को देखने.पुलिस के मुताबिक ब्रजेश ने उनको वहीं मार गिराया. उस वक्त ब्रजेश पुलिस यूनिफॉर्ममें पहुंचा था. उसी दिन साधु सिंह के भाई और मां समेत 8 लोगों को उनके गांव मुदियारमें ही मार दिया गया. इस गैंगवार में मुदियार गांव के 21 लोग घायल हुए थे.जून 1992 में गुजरात के मेहसाणा में ब्रजेश ने कथित तौर पर त्रिभुवन सिंह और हरियाके साथ मिलकर रघुनाथ यादव (दूसरा) को बस स्टैंड पर मार दिया. रघुनाथ अपने घर काअकेला इंसान था. उस वक्त सब-इंस्पेक्टर झाला ने ब्रजेश को पकड़ने की कोशिश की थी.पर पुलिस के अनुसार ब्रजेश ने उनको भी गोली मार दी. झाला पैरालाइज्ड हो गए. ब्रजेशसिंह धीरे-धीरे अपना नेटवर्क बढ़ाने लगा. बिहार, झारखंड से लेकर गुजरात, महाराष्ट्रतक अपना जाल बिछा दिया. कोल माफिया सूरजदेव सिंह हो या बिहार का माफिया सूरजभान, हरकोई ब्रजेश से जुड़ गया. माना जाता है कि इसी दौरान ब्रजेश ने छोटा राजन के सबसेकरीबी माने जाने वाले अंडरवर्ल्ड डॉन सुभाष ठाकुर से हाथ मिला लिया. सुभाष दाऊद कानजदीकी था. आरोप है कि दाऊद के कहने पर ब्रजेश ने मुंबई में दिनदहाड़े जेजे हॉस्पिटलशूटआउट को अंजाम दिया. जेजे अस्पताल में अरुण गवली गिरोह का हल्दंकर भी मारा गया.क्योंकि ब्रजेश ग्रुप का ऐसा मानना था कि दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के पतिकी हत्या में यही शामिल था. इसी शूटआउट में एक सब-इंस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबल भीमारे गए. ब्रजेश उस वक्त दाऊद इब्राहिम का शॉर्प शूटर माना जाता था. बेहद नजदीकी औरप्यारा.मुंबई धमाके के बाद दाउद और सुभाष ठाकुर अलग हो गए. तब बनारस के गैंगवार में भी एकतरफ दाउद तो दूसरी तरफ सुभाष ठाकुर का दखल दिखने लगा. फिर तो ब्रजेश ने धनबाद कीकोइलरी से लेकर उड़ीसा की खदानों तक में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया. गिरोह चलानेके लिए चाहिए था पैसा, लिहाजा दोनों ही माफियाओं में पैसे कमाने की होड़ मच गई.शराब, खनन और रंगदारी टैक्स की वसूली के लिए भी ये गिरोह आपस में टकराने लगे.मुख्तार और ब्रजेश की दुश्मनी की कहानीब्रजेश और मुख्तार#शुरुआत दोस्ती से हुई थीः इन सारी घटनाओं से पहले सैदपुर में एक प्लॉट को हासिलकरने के लिए गैंगस्टर साहिब सिंह के नेतृत्व वाले गिरोह का एक दूसरे गिरोह के साथजमकर झगड़ा हुआ था. ये इस इलाके में गैंगवार की शुरुआत थी. ब्रजेश सिंह साहिब सिंहसे जुड़ा हुआ था. इसी क्रम में उसने 1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों परकब्जा करना शुरू कर दिया. अपने काम को बनाए रखने के लिए बाहुबली मुख्तार अंसारी काइस गिरोह से सामना हुआ.एक वक्त पर मऊ से विधायक मुख्तार अंसारी ब्रजेश का दोस्त हुआ करता था. पर कई ऐसेकाम हो गए जिसमें एक-दूसरे से पूछा तक नहीं गया. अभी बनारस के पिंडरा से विधायक अजयराय के भाई अवधेश राय की हत्या 1991 में हो गई थी. इसमें मुख्तार ग्रुप का नाम आयाथा. ये लोग ब्रजेश के नजदीकी थे. इसी के बाद ब्रजेश से मुख्तार की तल्खी बढ़ गई.इसके अलावा ब्रजेश के नजदीकी त्रिभुवन और मुख्तार शुरू से ही एक-दूसरे के जानीदुश्मन थे. बस यहीं से शुरू हो गई मुख्तार और ब्रजेश की गैंगवार. एक के बाद एक करलाशें गिरने लगीं.मुख्तार अंसारी#फिर फिल्मी अंदाज में मुख्तार पर हमला हुआः ब्रजेश ने मुख्तार को कम आंक लिया था.1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए. उसके बाद से हीउन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया. मुख्तार का दबदबा पुलिस औरराजनीति में भी था. पुलिस ब्रजेश को परेशान करने लगी. साथ ही इनके नजदीकी लोगों परहमला भी होने लगा. इनके एक करीबी अजय खलनायक पर भी हमला हुआ. इससे ये लोग बौखलागये. बड़े-बड़े प्लान बनने लगे कि मुख्तार को ही मार दिया जाए. टंटा खत्म हो.जुलाई 2001 में गाजीपुर के उसरी चट्टी में मुख्तार अंसारी अपने काफिले के साथ जारहा था. प्लान के मुताबिक एक कार और एक ट्रक से मुख्तार की गाड़ी को आगे-पीछे सेघेरने की कोशिश की गई. लेकिन रेलवे फाटक बंद हो जाने के चलते हमलावरों की एक गाड़ीपीछे रह गई. अब ट्रक आगे था. और मुख्तार की गाड़ी पीछे. हमले की दूसरी कार रेलवेफाटक के पार थी. तभी ट्रक का दरवाजा खुला. दो लड़के हाथ में बड़ी-बड़ी बंदूकें लिएखड़े थे. दनादन फायरिंग होने लगी. इनके पीछे भी कई हथियारबंद थे. मुख्तार किसी तरहगाड़ी से निकलकर गोलियां चलाते हुए खेतों की तरफ भागा. बताया जाता है कि उसने दोहमलावरों को मार भी गिराया. इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए. ब्रजेश सिंहइस हमले में घायल हो गया था. तभी उसके मारे जाने की अफवाह उड़ गई थी. इसके बादबाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेला गैंग लीडर बनकर उभरा.कृष्णानंद राय#फिर इस लड़ाई में मारे गए विधायक कृष्णानंद रायः अब ब्रजेश को भी राजनीतिक मददचाहिए थी. कहते हैं कि भाजपा विधायक कृष्णानंद राय ने ये मदद दी. पर मुख्तार पीछानहीं छोड़ रहा था. उस वक्त मुख्तार अंसारी जेल में बंद था. तभी एक खतरनाक घटना कोअंजाम दिया गया. 2005 में गाजीपुर-बक्सर के बॉर्डर पर विधायक कृष्णानंद राय को उनके6 अन्य साथियों के साथ सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी गई. कहते हैं कि हमलावरों नेछह एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थीं. मारे गए सातों लोगों के शरीरसे 67 गोलियां बरामद की गईं. इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय 2006 मेंरहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पाया गया था. उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमलाकरने वालों में से अंसारी और बजरंगी के निशानेबाजों अंगद राय और गोरा राय को पहचानलिया था. राय हत्याकाण्ड में मुख्तार के शार्पशूटर मुन्ना बजरंगी की बेहद खासभूमिका मानी जाती है. बताया जाता है कि कृष्णानंद राय की हत्या के बाद ब्रजेश सिंहगाजीपुर-मऊ क्षेत्र से भाग निकला था.कई साल बीत गए. कई कहानियां बन गईं. कि ब्रजेश तो कब का मर चुका है. टेटनस हो गयाथा. गोली लग गई थी. पर 2008 में पुलिस ने जब गिरफ्तार किया तो एक बार फिर पूर्वांचलमें कयास लगाए जाने लगे कि अब क्या होगा? पब्विक प्रेशर गैंगस्टरों पर इतना था किहत्या हो सकती थी. लोग दिल थामे चहकते रहते थे कि भाई अब तो गैंगवार होगा. ब्रजेशबचते रहे, क्योंकि जेल में थे. पर इनके नजदीकी नहीं बच पाए.ब्रजेश सिंह#ब्रजेश के वापस आने के बाद खून एक बार फिर बहने लगाः 4 मई 2013 को ब्रजेश सिंह केबेहद खास कहे जाने वाले अजय खलनायक पर जानलेवा हमला हुआ. अजय खलनायक की गाड़ी मेंदर्जनों गोलियां दागी गई थीं. पुलिस के मुताबिक अजय खलनायक को कई गोलियां लगीथीं और उनकी पत्नी को भी एक गोली लगी थी. 3 जुलाई 2013 को इनके चचेरे भाई सतीश सिंहकी बनारस के थाना चौबेपुर क्षेत्र में ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर हत्या कर दी गई. सतीशवाराणसी के चौबेपुर में एक दुकान पर चाय पी रहा था. उसी वक्त बाइक पर सवार होकरवहां पहुंचे चार लोगों ने उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं. जिसकी वजह से उसकी मौकेपर ही मौत हो गई थी. हत्या की इस वारदात के बाद सभी को यह डर सताने लगा था कि फिरइन दोनों के बीच गैंगवार न शुरू हो जाए.तेरहवीं में शामिल होने पैतृक गांव धौरहरा पहुंचे ब्रजेश सिंह घरवालों को देखकर रोपड़े. इस कांड से मुख्तार का नाम आने के साथ हट भी गया था. ब्रजेश ने कहा किहत्याकांड से मुख्तार अंसारी का नाम हटाकर पुलिस ने उसका मान बढ़ा दिया है. कहा कि'अजय खलनायक पर हमले के बाद अगर पुलिस ने अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया होता तोसतीश की हत्या न होती, लेकिन उसे कानून पर पूरा भरोसा है. उम्मीद है पुलिस ही उसकेपरिवार को न्याय दिलाएगी'. ये इक्कीसवीं सदी की अद्भुत बात थी. दो दशक बाद पुलिस केहत्थे चढ़ने वाला कथित गैंगस्टर अपने परिवार के लिए पुलिस से न्याय की उम्मीद कररहा था. इन बातों से भरोसा बना रहता है कि प्रशासन चाहे तो सबकी सुरक्षा कर सकताहै.#सुपारी तो अभी भी दी जाती हैः ब्रजेश गुट को लगातार कमजोर करने की वारदातों के बीचजब 3 फरवरी 2014 को लखनऊ के किंग जाॅर्ज मेडिकल काॅलेज में अलग-अलग जेलों से आएमुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी मिले तो पूर्वांचल में फिर गैंगवार को लेकर अटकलेंलगाई जाने लगीं. हालांकि इसके बाद मुख्तार खेमे ने कोई बड़ी अपराधिक वारदात तो नहींकी, पर एक बहुत रोचक डेवलपमेंट हुआ है. अजय राय और मुख्तार के बीच समझौते की खबरेंआने लगी हैं. ये गजब है. कृष्णानन्द राय की पत्नी अलका राय भी इसी वजह से अजय रायके विरोध में लगातार लोगों से मिल रही हैं.मुन्ना बजरंगीऐसा नहीं था कि ब्रजेश ग्रुप शांत बैठा हुआ था. मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए भीएक बड़ी साजिश रची गई थी. जिसका खुलासा 2014 में हुआ था. कहा गया कि ब्रजेश सिंह नेअंसारी को मारने के लिए लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपए की सुपारी दी थी. ये खुलासालंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद हुआ था. इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जेल मेंअंसारी की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. सुपारी के खुलासे के बाद पूर्वांचल में यूपीपुलिस क्राइम ब्रांच और स्पेशल टास्क फोर्स ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी. अभी भीपेशी पर या विधानसभा सत्र के लिए जाते समय मुख्तार की सुरक्षा बहुत कड़ी रखी जातीहै.फोटो में दिख रहे बिहार के सुनील पांडे पर भी सुपारी का आरोप था.मुख्तार की राजनीति बेहद मजबूत हैबसपा प्रमुख मायावती ने एक बार मुख्तार अंसारी को रॉबिनहुड कहा था. उसे गरीबों कामसीहा भी कहा था. मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए बसपा के टिकट पर वाराणसी से2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा मगर वह भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से 17,211 वोट से हारगया. उसे जोशी के 30.52% वोटों की तुलना में 27.94% वोट हासिल हुए थे. मुख्तारअंसारी विधान सभा सदस्य के तौर पर मिलने वाली विधायक निधि से 20 गुना अधिक पैसाअपने निर्वाचन क्षेत्र में खर्च करता रहा है. उसने मऊ में बतौर विधायक सड़कों,पुलों और अस्पतालों के अलावा एक खेल स्टेडियम का निर्माण भी कराया है. साथ ही अपनीनिधि का 30% निजी और सार्वजनिक स्कूलों और कॉलेजों पर भी खर्च करता आया है.पूर्वांचल के एक लेखक गोपाल राय के मुताबिक अंसारी ने व्यक्तिगत रूप से उनके बेटेको एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाने में कैसे उनकी मदद की वे कभी नहीं भूल सकते. ऐसे हीएक और आदमी की पत्नी के दिल का ऑपरेशन के लिए उसने पूरा पैसा दिया था.मुख्तार अंसारी का पूरा परिवार क्षेत्र में होने वाली गरीबों की बेटियों की शादी केलिए दहेज का पूरा भुगतान करता है. एक कथित गैंगस्टर का लोगों के बीच यूं खैरातबांटना उसे वैधता देता है. यही वो जगहें हैं, जहां पर सरकार लोगों को फेल करती हैऔर गैंगस्टर टेकओवर कर लेते हैं. गरीब को क्या पता कि जो पैसा गैंगस्टर दे रहा है,वो गरीब के हिस्से का ही पैसा है.पर अंसारी के राजनीतिक करियर को कानूनी उथल-पुथल ने हिलाकर रख दिया था. अक्टूबर2005 में मऊ में दंगे हुए थे. अंसारी पर खुली जीप में घूमते हुए दंगे भड़काने काआरोप था. हालांकि कोर्ट में इन आरोपों को खारिज कर दिया गया था. उसी दौरान उसनेगाजीपुर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था. वो तब से जेल में बंद है. पहले उसेगाजीपुर से मथुरा जेल भेजा गया था. लेकिन बाद में उसे आगरा जेल में भेज दिया गयाथा. वो तब से आगरा जेल में ही बंद है.राजनीति तो देखिए कि सपा में अंसारी को शामिल करने को लेकर अखिलेश और शिवपाल में ठनगई. यहीं से शुरू हुआ झगड़ा कि सपा पर अखिलेश ने कब्जा जमा लिया. मुख्तार अंसारी अबबसपा में शामिल हो गये हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में मऊ से लड़ेंगे. मायावती नेउनको शामिल करते हुए कहा कि उन पर कोई चार्ज अभी तक प्रूव तो नहीं हुआ है.ब्रजेश सिंह को भी सुकून राजनीति में ही मिलाब्रजेश सिंह एमएलसी2002 में चीफ मिनिस्टर मायावती ने आरोप लगाया था कि ब्रजेश उनको मारने के षड़यंत्रमें शामिल था. माया ने वाजपेयी और आडवाणी को इस मामले में लेटर भी लिखा था. अभीब्रजेश सिंह यूपी विधान परिषद में एमएलसी है. एमएलसी चुनाव से ठीक एक दिन पहलेब्रजेश सिंह को शाहजहांपुर जेल भेज दिया गया था. इसके पहले शासन के ही आदेश परशाहजहांपुर से सहारनपुर कारागार में शिफ्ट कराया गया था. चौंकाने वाली बात ये है किमाफिया डॉन को किशोर कारागार में भेजा गया था.बनारस एमएलसी सीट पर सबसे पहले ब्रजेश के भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह नेभाजपा से कब्जा जमाया था. वो दो बार बने थे. ट्रिब्यून इंडिया की मानें तो चुलबुलभी अपराधी हुआ करते थे. उसके बाद पिछले चुनाव में ब्रजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंहने बसपा से जीत हासिल की थी. 2016 में खुद ब्रजेश ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में3038 वोट पाकर जीत हासिल की. जानकारी के मुताबिक ब्रजेश ने अपनी प्रतिद्वंद्वी सपाकी मीना सिंह को 1986 वोट से हराया.इस जीत से ब्रजेश ने विधानसभा चुनाव में मनोज सिंह डब्ल्यू से मिली हार का हिसाबपूरा कर लिया. 2012 विधानसभा चुनाव में मनोज सिंह डब्ल्यू ने ब्रजेश को चंदौली कीसैयदराजा सीट से हराया था. मीना सिंह मनोज की बहन हैं.(पुलिस रिपोर्ट और जनता की कहानियों पर आधारित. कभी-कभी कहानियां सच के ज्यादा करीबहोती हैं और रिपोर्टें कल्पना के. सच क्या है, वो करने वाला ही बता सकता है. )--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़िएःकहानी उस कत्ल की, जिसने यूपी में माफियाराज स्थापित कर दियाकिस्सा महेंद्र सिंह भाटी के कत्ल का, जिसने UP की सियासत में अपराध घोल दियायूपी का वो आदमी जिसके कंधे पर बंदूक रख अखिलेश यादव हीरो बन गए25 साल का डॉन जिसने CM की सुपारी ली थीमधुमिता शुक्ला: जिसके क़त्ल ने पूर्वांचल की राजनीति को बदल दिया