कहानी डेब्यू पर ही सेंचुरी मारने वाले उस दिग्गज की, जिसे पहले सेलेक्टर और फिर फ़ैन्स भूल गए
वो गुस्ताख़ लबड़हत्था, जो अपने ही भाई से हार गया!
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शशि थरूर. राजनेता हैं. अक्सर अपनी अंग्रेजी के लिए चर्चा में रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र में अंडर-सेक्रेटरी जनरल रह चुके हैं. कई किताबें लिख चुके थरूर को साहित्य अकादमी जैसा अवॉर्ड भी मिल हुआ है. कुल मिलाकर बात ये है कि शशि जी पहुंचे हुए फ़कीर हैं. और अपनी तमाम क्वॉलिटीज के साथ वह क्रिकेट प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं.
और इन्हीं क्रिकेटप्रेमी शशि थरूर के एक आर्टिकल की कुछ लाइंस के जरिए मैं शुरू करने वाला हूं एक क़िस्सा. क़िस्सा उस प्लेयर का जो स्कूल के जमाने से ही दिग्गजों में शुमार हुआ. सालों इंतजार के बाद इंटरनेशनल डेब्यू किया. डेब्यू पर ही सेंचुरी मारी और फिर धीरे-धीरे खो गया. वो प्लेयर जिसके भाई को आप हाल ही में अपने नजदीकी सिनेमाघर में बैक टू बैक दो मैन ऑफ द मैच जीतते देखकर आए हैं.
अगर नहीं देखा तो मैं सच में आपको दिल से माफ नहीं कर पाऊंगा. इसी के साथ अब और भूमिका ना बांधते हुए क़िस्से की शुरुआत कर देते हैं. थरूर ने ये क़िस्सा साल 2011 में क्रिकइंफो के लिए लिखा था. थरूर लिखते हैं,
'साल 1967, लंदन के बेहद ठंडे समर की एक शाम. इंग्लैंड टूर पर आई भारतीय स्कूल टीम का मैच. आखिरी तीन गेंदें बाकी. जीत के लिए 11 रन की जरूरत. पहली गेंद. तेजी से स्विंग होती हुई आई और स्टंप बिखेर गई. अब आया एक गुस्ताख़ लबड़हत्था. माहौल से अविचल. पहली ही गेंद पर छक्का जड़ दिया. अब मैच की आखिरी गेंद. टीम को जीत के लिए अभी भी पांच रन चाहिए थे.फास्ट बोलर भागता हुआ आया. और इधर ये लेफ्ट हैंड बैटर भी बेखौफ क्रीज़ छोड़ उसकी ओर चल पड़ा. बोलर ने यॉर्कर मारने की कोशिश की थी जिसे इस दुस्साहसी ने फुलटॉस बना लिया. और ये फुलटॉस बल्ले से टकराकर चीत्कार करते हुए बाउंड्री के बाहर तैर गई. भारतीय स्कूली टीम ने मैच जीत लिया. अगले दिन भारत की सुबह में उस दौर के सबसे मारक स्कूली बैटर के क़िस्से घुले हुए थे.'अब आपको फट से इस मारक बल्लेबाज का नाम भी बता देते हैं. लोग इन्हें सुरिंदर अमरनाथ कहकर पुकारते हैं. और इनके छोटे भाई मोहिंदर अमरनाथ को 1983 वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल और फाइनल में मैन ऑफ द मैच चुना गया था. अब आप ये भी जान गए होंगे कि इनके पिताजी लाला अमरनाथ थे, जिन्हें इंडियन क्रिकेट के शुरुआती नायकों में से एक माना जाता है. # Surinder Amarnath कानपुर में 30 दिसंबर 1948 को पैदा हुए सुरिंदर शुरुआत में दाएं हाथ से बैटिंग करते थे. लेकिन लालाजी के समझाने पर उन्होंने बाएं हाथ से बैटिंग करनी शुरू कर दी. और एक बार शुरू की, तो चर्चा में आने में कुछ ही महीने लगे. स्कूल के वक्त से ही सुरिंदर को इंडियन क्रिकेट का अगला सुपरस्टार माना जा रहा था. और इससे पहले कि आप नेपोटिज़्म वाली बात लाएं, हम बता देते हैं कि यह प्योर टैलेंट बेस्ड था. सुरिंदर ने सिर्फ 15 साल की उम्र में नॉर्दर्न पंजाब की ओर से रणजी ट्रॉफी डेब्यू कर लिया था. ये बात थी 1964-65 सीजन की. और फिर उन्होंने 1967 में MCC की स्कूल टीम के खिलाफ जो किया, वो तो हम आपको बता ही चुके हैं. हालांकि इसके बाद भी सुरिंदर को टीम इंडिया से बुलावा आने में कई साल लग गए. डोमेस्टिक क्रिकेट में बोरा भरकर रन बनाने के बाद भी सुरिंदर के हिस्से विदेशियों को धुनने का सुख नहीं आ रहा था. फिर साल 1975 में आखिरकार उनका ये दुख भी दूर हुआ. सुरिंदर को श्रीलंका के खिलाफ अनऑफिशल टेस्ट सीरीज में मौका मिला. और सुरिंदर ने मौके का पूरा फायदा उठाते हुए सेंचुरी जड़ दी. और फिर अगले मैच में फिफ्टी भी मारी. और ये 'पेमेंट' उन्हें न्यूज़ीलैंड और वेस्ट इंडीज़ टूर का टिकट दिलाने के लिए काफी थी. अब बारी न्यूज़ीलैंड टूर की. पहला टेस्ट. ऑकलैंड में. और यहां बना वो रिकॉर्ड जो आज भी अमर है. सुरिंदर ने 1976 की 25 जनवरी को रिचर्ड कोलिंग की अगुवाई वाले कीवी अटैक को जी भर धुना. ऐसा धुना कि क्रिकेट की दुनिया ने एक अनोखा रिकॉर्ड देख लिया. सुरिंदर ने अपने डेब्यू पर ही सेंचुरी मार दी. और इसके साथ ही वह अपने पिताजी की तरह डेब्यू पर सेंचुरी मारने वाले इंडियन भी बन गए. और ये जोड़ी बनी ऐसा करने वाली पहली पिता-पुत्र जोड़ी.
इस पारी में सुरिंदर और गावस्कर के बीच हुई 204 रन की पार्टनरशिप ने भारत की चाय की दुकानें थोड़ी और आबाद कर दीं. लोग जलेबी से लेकर समोसे तक पर चर्चा कर रहे थे कि सेलेक्टर्स ने इस हीरे को अभी तक क्यों छिपाकर रखा था? हालांकि उनकी चर्चा बहुत लंबी नहीं चली. सुरिंदर टूर के बाकी मैचों में फ्लॉप रहे. और फिर वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ पहले दो टेस्ट मैचों में भी उनका बल्ला शांत ही रहा. और फिर सेलेक्टर्स ने उन्हें टीम से बाहर कर दिया. इंट्रेस्टिंग बात ये थी कि नंबर तीन पर अजित वाडेकर के उत्तराधिकारी घोषित किए गए सुरिंदर को उनके ही छोटे भाई ने रिप्लेस किया. इस सीरीज के बाकी मैचों में अच्छा स्कोर कर मोहिंदर अमरनाथ नंबर तीन पर टिक गए. हालांकि सुरिंदर की किस्मत फिर से पलटी. 1976-77 में न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड के खिलाफ इंडिया को तीन और पांच टेस्ट मैचों की होम सीरीज खेलनी थी. इंग्लैंड के खिलाफ भारत पहले तीनों टेस्ट हार गया. सेलेक्टर्स पगला गए. चौथे टेस्ट के लिए फटाफट छंटाई शुरू हुई. खराब फॉर्म से गुजर रहे मोहिंदर बाहर गए और उनकी जगह सुरिंदर को एंट्री मिली. सुरिंदर ने मौके का फायदा उठाया और बैंगलोर में फिफ्टी मारकर भारत को पहली जीत दिलाई. और फिर मुंबई में एक और फिफ्टी मारकर अपनी जगह पक्की कर ली. # Surinder vs Mohinder Amarnath लेकिन किस्मत के बारे में एक कहावत है- ये पलटती जरूर है. और सुरिंदर की किस्मत तो सिक्के से भी ज्यादा पलट रही थी. 1977-78 की सर्दियों में ऑस्ट्रेलिया टूर पर जाने वाली इंडियन टीम में सुरिंदर चुने गए. लेकिन पहले टेस्ट से पहले हुए वॉर्म अप गेम के दौरान एक गेंद उनके चेहरे पर लगी और वह पहले दो टेस्ट मैच से बाहर हो गए. और ऐसा होते ही मैनेजमेंट ने उन्हें वापस भारत भेज दिया.Today in 1976 Indian left-hander Surinder Amarnath on Test debut makes 124 (259m, 236b, 16f, 1s) v N Zealand @ Auckland. He emulated his father Lala Amarnath to become the only father-son combination to score Test 100s on debut. And like his father never scored a Test 100 again!
— Mohandas Menon (@mohanstatsman) January 25, 2020
एक बार फिर से सुरिंदर की जगह मोहिंदर को मिली. इसके बाद 1978 के पाकिस्तान टूर के लिए सुरिंदर फिर वापस आए. लेकिन इस बार बल्ले ने उनका साथ नहीं दिया. और वह एक बार फिर से टीम इंडिया से बाहर कर दिए गए. और इसके साथ ही सेलेक्टर्स ने उनकी ओर से आंख बंद कर ली. 1980 के ऑस्ट्रेलिया न्यूज़ीलैंड टूर के लिए टीम सेलेक्शन से पहले ईरानी ट्रॉफी का मैच हुआ. इसमें सुरिंदर ने कपिल देव, करसन घावरी, शिवलाल यादव और दिलीप दोशी जैसे दिग्गजों को मनचाहे अंदाज में धुना. उन्होंने इस पारी में 235 रन बनाए. लेकिन इसके बाद भी उनका सेलेक्शन नहीं हुआ. और फिर 1984-85 के डोमेस्टिक सीजन के बाद सुरिंदर ने भारी मन से क्रिकेट को अलविदा कह दिया. कई लोग मानते हैं कि उनके साथ गलत हुआ. और इस गलती में कहीं ना कहीं उनके पिता लाला अमरनाथ का भी रोल था. अपने अक्खड़ स्वभाव के लिए मशहूर लालाजी किसी का लोड नहीं लेते थे. और दबे स्वर में लोग कहते हैं कि उसका हर्जाना सुरिंदर ने भरा. सुरिंदर ने 10 टेस्ट में 550 रन बनाए थे. इसमें एक सेंचुरी और तीन हाफ सेंचुरी शामिल हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि उन्होंने 10 में से आठ टेस्ट विदेशी धरती पर, खतरनाक अटैक के आगे खेले थे. हालांकि कई लोग यह भी मानते हैं कि सुरिंदर आक्रामक खेल के पक्षधर थे और इसके चलते वह कई बार सेट होने के बाद आउट हो जाते थे. और यह बात उस वक्त के इंडियन मैनेजमेंट को नहीं पसंद थी.The Amarnath family produced three 🇮🇳 cricketers.
Lala Amarnath, who was the first India player to score a Test century, also gave birth to the hero of their 1983 World Cup final win, Mohinder Amarnath. His other son, Surinder Amarnath, also played 10 Tests and three ODIs. pic.twitter.com/zcxkyzfHre — ICC (@ICC) June 21, 2020