एक कविता रोज़ - बद्री नारायण की कविताएं
घण्टी अभी बजी भी नहीं थी कि मृत्यु आ गयी सारे नीति, नियम तोड़/ पर इसमें उस बच्चे का क्या दोष था जिसकी आंखे अभी सपने भी नहीं देख पाई थी.
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