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एक कविता रोज़ - बद्री नारायण की कविताएं

घण्टी अभी बजी भी नहीं थी कि मृत्यु आ गयी सारे नीति, नियम तोड़/ पर इसमें उस बच्चे का क्या दोष था जिसकी आंखे अभी सपने भी नहीं देख पाई थी.

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मयंक
2 जून 2021 (Updated: 2 जून 2021, 12:18 IST)
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