90 के दशक में एक नेता तेजी से उभरा, तीन साल में ही देश के बड़े-बड़े नेता उसकेकरीबी हो गए. कहा जाता है कि मुलायम सिंह जैसे दिग्गज ने भी उसके चक्कर में अपनीसीट बदली. उसे अगला मुख्यमंत्री माना जा रहा था. मगर तभी एक रात उसकी हत्या हो गई.बात कर रहे हैं भाजपा के नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी और उनकी हत्या की. एक हत्याकांडजिसके तार खुद भाजपा के नेताओं तक जाते हैं. वो हत्याकांड जिसे इंडिया टुडे ने 90के दशक का सबसे बड़ा पॉलिटिकल मर्डर कहा था.जब बसंत काला पड़ गया10 फरवरी 1997. बसंत पंचमी का दिन था. बसंत फर्रुखाबाद शहर के सबसे बड़े त्योहारोंमें से एक है. सुबह पतंगबाजी होती है, शाम को आतिशबाजी. पूरा शहर छत पर होता है औरआसमान पतंगों से अटा पड़ा रहता है. उस रोज़ शहर के पतंगबाज अपने-अपने मांझे कीचरखियों को तैयार कर रहे थे कि खबर ने लोगों को सदमे में डाल दिया. औरतें, बच्चे,बूढ़े सब के सब हैरान और सब की ज़ुबां पर एक ही बात. ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्याहो गई . इसके बाद दिन भर शहर पर हैलीकॉप्टर मंडराते रहे. अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे तमाम दिग्गज सारे काम छोड़कर उत्तर प्रदेश केछोटे से शहर फर्रुखाबाद पहुंच रहे थे.कौन थे ब्रह्मदत्त?ब्रह्मदत्त की बात करने से पहले बात मायावती की. 3 जून 1995 को मायावती भाजपा केसमर्थन से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं. इससे कुछ घंटे पहले वो लखनऊ केमीरा गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में बंद थीं. डरी, सहमी और घबराई. समाजवादी पार्टीके हथियारबंद समर्थकों ने गेस्ट हाउस को घेर रखा था. एक औरत और एक दलित औरत होने केकारण जो गालियां दी जा सकती हैं, जो कुछ करने की बातें की जा सकती हैं बाहर वो सबकुछ हो रहा था और मायावती अंदर से भाजपा के नेताओं को फोन मिला रहीं थी. इसके बादइस घटना के दो वर्जन हो जाते हैं.गेस्ट हाउस कांड के अगले दिन की तस्वीरमायावती पर लिखी गई किताब बहनजी से, अजय बोस लिखते हैं कि मायावती ने जिन नेताओं कोफोन मिलाया था उनमें से एक ब्रह्मदत्त द्विवेदी थे. मदद मांगी गई. पुलिस एसपी औरडीएम से बात की गई. जिलाधिकारी राजीव खेर ने आकर स्थिति संभाली.कहानी जो सिर्फ कही गईये कहानी का वो वर्जन है जो लोग सुनाते हैं. इसमें कथ्य कितना है और तथ्य कितना हैइसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है. मगर धुंआ है तो थोड़ी बहुत आग भी होगी. कहाजाता है कि डीएम और एसपी के पहुंचने के पहले ब्रह्मदत्त खुद पहुंच गए थे. शख्सियततो कद्दावर थी ही तो दोनों पक्षों के बीच दीवार बन गए. पुलिस के आने तक मायावती कीहिफाज़त की. मायावती इसके बदले ब्रह्मदत्त को अपना भाई मानती रहीं. इस वर्जन सेजुड़ी खास बात ये है कि 2007 में जब मायावती ने अनंत कुमार मिश्रा को फर्रुखाबाद सेचुनाव लड़वाया तो उस समय बहनजी के सबसे खास सतीश मिश्रा ने भाषण दिया कि ब्रह्मदत्तद्विवेदी ने मायावती की गेस्ट हाउस कांड में जान बचाई थी और हम उनका अहसान मानतेहैं.हत्या के समीकरणब्रह्मदत्त द्विवेदी एक नेता थे, कवि थे, और जनता पर गहरी पकड़ रखते थे. इन सारीबातों के कारण अटल बिहारी वाजपेयी के काफी खास माने जाते थे. वकील भी थे और राममंदिर आंदोलन में अपनी इस खासियत का उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया. पार्टी में इनसब वजहों से उनका कद बहुत तेजी से बढ़ गया था. और गेस्ट हाउस कांड के बाद तो सरकारमें सहयोगी बसपा के लिए भी ब्रह्मदत्त एक फैमिलियर चेहरा थे. पर जब कोई कुर्सी परबैठता है तो पहले से मौजूद किसी को जगह छोड़नी पड़ती है. कहा जाता है कि कुछ लोगोंको द्विवेदी से भी यही डर लगा कि कहीं उनके लिए कुर्सी खाली न करनी पड़ जाए.# 10 फरवरी 1997 को ब्रह्मदत्त अपने घर से करीब आधा किलोमीटर दूर एक तिलक समाहरोहमें शामिल होने गए. # बाहर निकलते समय बाइक सवार दो लोगों ने उन पर गोली चलाई. #आस-पास के लोगों ने हॉस्पिटल पहुंचाया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. # हत्याका आरोप आया उनके सियासी दुश्मन विजय सिंह पर. दोनों के बीच की रंजिश जग-जाहिर थी.मगर इसमें एक और नाम था जिसने चौंकाया. अभी भाजपा से सांसद साक्षी महाराज का.ब्रह्मदत्त की अंतिम यात्राउस समय की इंडिया टुडे की रिपोर्ट सेब्रह्मदत्त के तेजी से बढ़ते कद की वजह से भाजपा के गैर ब्राह्मण नेताओं का पूराग्रुप खार खाया हुआ था. तीन साल में भाजपा को अपने आस-पास के इलाकों में स्थापितकरके वो केंद्र के नेताओं के भी करीबी बन चुके थे. कहा जाता है कि इनकी ही वजह सेमुलायम सिंह ने 1996 के चुनावों में अपनी सीट बदली थी. खैर, आरोपी विजय सिंह का उसवक्त फर्रुखाबाद से भाजपा सांसद साक्षी महाराज और सपा नेता उर्मिला राजपूत के यहांरोज़ का आना-जाना था. हत्या से दो दिन पहले ही विजय सिंह, साक्षी महाराज और उर्मिलाराजपूत ने एक साथ खाना खाया था. वैसे टुडे की ही खबर के मुताबिक उस समय राजनाथ सिंहऔर कल्याण सिंह ने भी राजनीतिक कारणों से ही ब्रह्मदत्त की हत्या का शक जताया था.ब्रह्मदत्त की पुण्यतिथि पर हर साल आयोजन होते हैं लोग नॉस्टैल्जिया में भी चलेजाते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्रह्मदत्त के सुपुत्र मेजर ने जीत का स्वादचखा, जबकि ब्रह्मदत्त की हत्या के दोषी सपा नेता विजय सिंह पहले तीन बार जीत दर्जकर चुके हैं. विजय सिंह को 2003 में हाईकोर्ट से जमानत मिली थी, लेकिन 26 अप्रैल2017 को हाई कोर्ट ने सीबीआई कोर्ट की सजा बरकरार रखते हुए विजय सिंह को जेल भेजदिया. 2012 के चुनाव में मेजर विजय सिंह से 147 वोट से हारे थे. बड़ा कारण था अपनेही परिवार के अंदर भितरघात.महाभारत सीरियल में भीष्म पितामह एक जगह बोलते हैं "ये किंतु और परंतु ही तोहस्तिनापुर के दुर्भाग्य का कारण है वत्स"राही मासूम रज़ा साहब के लिखे इस डायलॉग से बाकी सब हटा दीजिए, किंतु और परंतु रखलीजिए. सोचिए अगर मायावती यूपी की मुख्यमंत्री न बनतीं तो हिंदुस्तान की राजनीतिमें दलितों की सियासत कैसी होती. सोचिए कि मुलायम सिंह मुख्यमंत्री न बनते तो आजअखिलेश यादव का काम कैसे बोल रहा होता. इन दो 'किंतु' और 'परंतु' के बीच में यूपीकी पिछले बीस साल की पूरी सियासत आ जाती है. सियासत में किस्सों की अपनी मकबूल जगहहै और ऐसे ही तमाम किस्सों के लिए बने रहिए लल्लनटॉप के संंग.यूपी चुनाव के सबसे चौकस और चौचक किस्से देखिए हमारे साथ :https://youtu.be/qk0alksFn7o--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें :फ़र्रुख़ाबाद से ग्राउंड रिपोर्ट: कहानी बाप की हत्या के आरोपी से लड़ रहे फौजी औरबाहुबली कीग्राउंड रिपोर्ट मैनपुरी : सड़क बन गई विकास हो गया, कैंसर से जो मर रहे हैं उनकीफिक्र नहींग्राउंड रिपोर्ट बुढ़ाना : क्या मुज़फ्फरनगर में अब भी कुछ बाकी है?फर्जी डिग्री के आरोप में फंसे AAP के विधायक ने ऐसा क्या किया कि BJP भी तारीफ केपुल बांधने लगी?