साधारण चश्मा और टी-शर्ट पहन मेडल जीते यूसुफ़ की कहानी, जो रातोंरात बने इंटरनेट सेंसेशन!
Yusuf Dikec ने पेरिस ओलंपिक्स में कमाल कर दिया. उन्होंने टी-शर्ट पहन, जेब में हाथ डाले, साधारण चश्मा लगाकर सिल्वर मेडल जीत लिया. और इंटरनेट अब इस पर लहालोट है. लेकिन आपको इस 'एजेंट' की कहानी पता है?
Paris Olympics 2024 चल रहे हैं. भारत ने 1 अगस्त, गुरुवार की सुबह तक इसमें कुल दो मेडल्स जीते थे. दोनों ही मेडल्स 10 मीटर एयर पिस्टल में आए. और दोनों में कॉमन रहीं मनु भाकर. लेकिन अब इन्हीं में से एक इवेंट, 10 मीटर एयर पिस्टल मिक्स्ड टीम की एक तस्वीर वायरल है.
आपके चाचा-मामा या ताऊ जैसी उम्र का एक व्यक्ति. नज़र का चश्मा लगाए, साधारण सी टी-शर्ट में बंदूक ताने खड़ा है. पहली नज़र में ये तस्वीर साधारण लगती है. फिर आपको पता चलता है कि ताऊ Paris Olympics 2024 के सिल्वर मेडलिस्ट हैं. नाम यूसुफ़ डीकेच. उम्र पूरे 51 साल. तुर्की से आने वाले डीकेच पर पूरी दुनिया चर्चा कर रही है.
धरती के हर घुमाव पर बैठे मीमर इन पर मीम बना रहे हैं. इन मीम्स में कई का दावा है कि ये तुर्की के सीक्रेट एजेंट या ट्रेंड शूटर हैं. और ये अंत में इसलिए जानबूझकर हार गए, जिससे लोगों को शक़ ना हो. कि तुर्की ने एथलीट की जगह शूटर भेज रखा है. ख़ैर, हंसी-मजाक से इतर. शूटिंग में भाग लेने वाले सारे ही लोग ट्रेंड शूटर होते हैं. इसलिए इस पर तो चर्चा की जरूरत ही नहीं है.
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रही बात इनके एजेंट या सैनिक होने की बात. तो इसमें सच्चाई है. ओलंपिक्स की वेबसाइट बताती है कि डीकेच 1 जनवरी 1973 को पैदा हुए थे. और उनकी हॉबी नाचना है. अंकारा की गाज़ी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ फ़िज़िकल ट्रेनिंग और एडुकेशन से पढ़े हैं. जबकि सेलचुक यूनिवर्सिटी से इन्होंने कोचिंग में मास्टर्स किया हुआ है. अभी भी क्लब्स के लिए शूटिंग करने वाले डीकेच ने 2001 में शूटिंग शुरू की थी.
शूटिंग शुरू करने के पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने ओलंपिक्स वेबसाइट से कहा था,
'मैंने जोंडामरी जनरल कमांड में नॉन-कमीशंड ऑफ़िसर के रूप में जुड़ने के बाद शूटिंग शुरू की थी.'
आगे बढ़ने से पहले बता देते हैं कि ये ज़ोंडामरी जनरल कमांड क्या है. नेटो वाले बताते हैं कि ये सेंट्रल और प्रोविंशियल ऑर्गनाइजेशंस, इंटरनल सिक्यॉरिटी यूनिट्स जैसी तमाम ऑर्गनाइजेशंस को मिलाकर बनी यूनिट है. जो अलग-अलग तरह के काम करती है. ये लोग चौबीस घंटे और सातों दिन काम करते हुए तय करते हैं कि देश के नागरिकों का जीवन और संपत्ति सुरक्षित रहें.
यानी डीकेच ने सीधे सेना में काम नहीं किया. लेकिन हम ऐसा मान सकते हैं कि वह किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा जरूर थे. अब रही बात डीकेच के किसी तरह के खास चश्मे या कान में इयरप्लग ना पहनने की बात. तो शूटिंग पूरी तरह से ध्यान लगाने वाला गेम है. और हर व्यक्ति का ध्यान लगाने का तरीका अलग-अलग होता है. कई लोग म्यूज़िक बज़ाकर काम करते हैं, तो कई को एकदम सन्नाटा चाहिए. वैसे अंदर की बात बताएं, डीकेच ने इयरप्लग लगा रखे थे.
और क्या पता डीकेच को शोर से फ़र्क ना पड़ता हो. और रही बात चश्मे की, तो फिर वही बात है. डीकेच 23 साल से शूटिंग कर रहे हैं. पहली बार ओलंपिक्स मेडल जीते हैं. यानी ये वाला फंडा उनका काम कर गया. वह अपने रेगुलर चश्मे के साथ और इयरप्लग के बिना अपनी सबसे बड़ी कामयाबी हासिल कर चुके हैं. अरे हां, जेब में रखे हाथ की भी तो खूब चर्चा है. तो भैया पिस्टल शूटिंग तो ऐसे ही होती है. पिस्टल शूटर्स का एक हाथ जेब में ही रहता है. और जेब के इस हाथ पर भी डीकेच ने कुछ कहा था. वो बोले थे,
‘सफलता जेब में हाथ रखकर नहीं आती.’
चार बार के ओलंपियन डीकेच सात बार के यूरोपियन चैंपियन भी हैं. जबकि 2014 में वह 25 मीटर स्टैंडर्ड पिस्टल और 25 मीटर सेंटर फ़ायर पिस्टल के डबल वर्ल्ड चैंपियन थे.
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